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गांधी हत्या का सच और फेक न्यूज

शुभम जायसवाल 

 

30 जनवरी, 1948 शुक्रवार की शाम में महात्मा गांधीजी की नाथुराम गोडसे द्वारा हत्या कर दी गई। इस महान आत्मा की विदाई इस तरीके से होगी यह किसी ने नहीं सोचा था। उस समय भी बापू के पास न संपत्ति, न पद, न उपाधि और न ही कोई कलात्मक, दैवीय या वैज्ञानिक तकनीक। फिर भी इस अठ्ह्तर वर्षीय आदमी को उन सभी लोगों ने श्रधांजलि दी जिनके पास वो सब कुछ था जिनके पीछे आज का समाज पागल हुआ है। भारत के अधिकारियों को विदेशों से 3441 शोक संदेश प्राप्त हुए।

अमरीकी राज्य-सचिव जनरल जार्ज मार्शल ने कहा था –

“महात्मा गांधी सारी मानव जाति की अंतरात्मा के प्रवक्ता थे।”

फ्रांस के समाजवादी लियो ब्लम ने लिखा

“मैंने महात्मा को कभी नहीं देखा, मैं उनकी भाषा भी नहीं जानता। मैंने उनके देश कभी पाँव भी नहीं रखा; परंतु फिर भी मुझे शोक महसूस हो रहा है, मानो मैंने कोई अपना और प्यारा खो दिया हो। इस असाधारण मनुष्य के मृत्यु से सारा संसार शोक में डूब गया है।”

गांधी जी की हत्या से सारे भारत में व्याकुलता और वेदना की लहर दौड़ पड़ी थी मानो वह तीन गोलियों ने करोड़ों भारतीयों के दिलों को भेद डाला हो। आखिर उस पुरुष के पास समाज को देने के लिए सत्य, अहिंसा व नैतिकता के संदेश के अलावा क्या था? जिसका प्रयोग उन्होंने खुद पर किया था । गांधी हत्या के पीछे कुछ कारण थे या कोई विचार-प्रणाली का परिणाम था ? देश का विभाजन पाकिस्तान को दिए गये पचपन करोड़ रुपये तथा गांधीजी द्वारा किया गया मुस्लिमों का तुष्टीकरण आदि कारण सामने रखकर हिन्दुत्ववादी गांधी-हत्या का समर्थन करने का प्रयास करते हैं।

 

 नयी पीढ़ी की इतिहास की प्रति अनभिज्ञता तथा पुरानी पीढ़ी की विस्मरण के कारण विभाजन, पचपन करोड़ रुपये एवं मुस्लिमों का अनुनय इसी को

गांधी-हत्या का कारण मानते हैं। नेहरु जी के समय साम्प्रदायिक ताकतें दबी हुई थीं, पर सामूल नष्ट नहीं हुई थी। इन्दिरा जी के कार्यकाल में तानाशाही रवैया, उसके बाद राजीव गांधी की नेतृत्व अपरिपक्वता व दूरदृष्टि के अभाव ने कुछ तात्कालिक लाभों के कारण जल्दबाजी ने एक अलग ही हवा को जन्म दिया जिसमें साम्प्रदायिक ताकतों को फिर से उठने का मौका मिल गया। शाहबानो केस के माध्यम से तलाक पीड़ित मुस्लिम महिलाओं के हित में न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय मौलवी व धनी मुस्लिमों के प्रभाव में आकर गरीब मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने वाला कानून ही राजीव गांधी द्वारा पलट देने से साम्प्रदायिक नेताओं व संगठनों को यह मुद्दा मिल गया जो मुस्लिम तुष्टिकरण की ओर इशारा करता है। जिसके बाद हिन्दुओं को खुश करने के लिए विवादित बाबरी मस्जिद का ताला खुलवा कर शिलान्यास की इजाजत दे दी। इस परिस्थिति की पृष्ठभूमि पर गांधी-हत्या का जोर शोर से समर्थन किया जाने लगा। विभाजन तथा पचपन करोड़ रूपये पाकिस्तान को दिए जाने के लिए गांधीजी जिम्मेदार हैं, यह लोगों के मन में बैठ जाये इसकी पूरी कोशिश शुरु हुई जो अब तक जारी है।

आज की नयी पीढ़ी जो हाथो में एक मोबाइल क्लिक से दुनिया को देखने का नजरिया रखने वाली ख़ुद को मानती है, उसने सूचनाओं को ही आखरी सत्य मानना शुरू कर दिया है। जिससे इन साम्प्रदायिक ताकतों को बहुतायत मात्रा में लाभ हो रहा है। जिसका असर आज आप अपने आस पास झूठी खबरों का एक जाल आ गया है, जो अनेक प्रकार के हिंसा को बढावा दे रही है और व्यक्ति दिन प्रतिदिन आक्रामक होता जा रहा है। ऐसे समय में बुद्धिजीवियों व व्यक्ति की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे वर्तमान व आने वाली पीढ़ी के लिए एक समरसता भरा समाज बनाने के लिए प्रयासरत रहें।

 

   भारत विभाजन व पचपन करोड़ रूपये पाकिस्तान को दिया जाना यह गांधी हत्या का कारण है ही नहीं, महात्मा गांधी ने 13 जनवरी, 1948 से उपवास शुरू किया था। वह पचपन करोड़ दिए जाने के लिए नहीं था। आजादी के बाद गांधी हत्या का दो बार प्रयास हुआ इनमें से एक सफल भी हुआ। इससे पहले चार बार असफल प्रयास हुआ था। पुणे के एक जानलेवा हमले के बाद गांधी जी ने ही कहा था, “ईश्वर कृपा से सात बार मृत्यु के मुहं से सही सलामत बचा हूँ।”

पुणे में 1934 में हत्या का प्रयास फिर सेवाग्राम तथा उस समय के उपायुक्त जे. डी. नगरवाला के द्वारा अपरह्ण तक की बात का जिक्र। ये सभी बातें उस समय हो रही थीं जब पचपन करोड़ व विभाजन जैसी बातें थी ही नहीं।

उपवास के समय सरदार पटेल द्वारा अपने सचिव वी. शंकर को भेजने पर गांधी जी ने पचपन करोड़ देने की बात कही थी, लेकिन गांधी जी के सचिव प्यारेलाल और तेन्डूलकर ने गांधीजी पर कई खंड लिखे जिनमें कहीं भी जिक्र नहीं है। पर हिन्दुत्ववादियों द्वारा यह प्रचार किया गया कि यह उपवास गांधी जी ने पचपन करोड़ रूपये के लिए रखा है।

दिल्ली के दंगों के सन्दर्भ में नेहरु ने पटेल की दंगों में सकारात्मक भूमिका को लेकर नाराजगी जाहिर की, तब सरदार पटेल ने कहा कि मुस्लिमों ने दिल्ली पर कब्ज़ा करने के लिये हथियार जमा किये हैं। लार्ड माउन्टबेटन ने उन हथियारों में से दो चाकू उठा कर बोले “तरकारी व पेन्सिल छीलने के हथियारों से जो दिल्ली पर कब्ज़ा करने की सोच रहे हैं, उन्हें युद्ध के दावं पेच मालूम ही नहीं”।

इस घटना का वर्णन ‘इण्डिया विन्स फ्रीडम’ में विस्तार से दिया गया है। गांधीजी ने मौलाना से कहा कि “दिल्ली में शांति स्थापित करने के लिए उपवास ही एक मात्र अस्त्र मेरे पास बचा है”।

 

 

 

15 जनवरी को ही पचपन करोड़ देने का निर्णय लिया गया, जबकि गांधीजी का उपवास 18 जनवरी को दोपहर में समाप्त हुआ। अगर यह उपवास पचपन करोड़ के लिए होता तो यह तीन दिन पहले ही खत्म हो गया होता। पचपन करोड़ रूपये देने के निर्णय के बाद भी उपवास जारी रहा क्योंकि उपवास इसके लिए नहीं बल्कि, दिल्ली में शान्ति स्थापना के लिए था।

 

शान्ति स्थापना व गांधी जी का उपवास समाप्त हो इसके लिए डा. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में सब धर्मों के 130 प्रमुखों की समिति गठित की गई थी। इस समिति में राष्ट्रीय स्वयं सेवक व् हिन्दू महासभा के प्रतिनिधि भी थे। इस समिति ने दिल्ली में 17 जनवरी को एक सभा रखी थी। गांधी जी द्वारा उपवास समाप्त करने की सात अनिवार्य शर्तें रखी गई थीं। ये सातों शर्ते स्वीकृत हुई ऐसा राजेंद्र प्रसाद द्वारा सभा में जाहिर किया गया। इन सातों शर्तों में भी कहीं पचपन करोड़ की बात नहीं कही गई है। इन सब बातों से यह सिद्ध होता है कि गांधी जी का उपवास उसके लिए न होकर शान्ति स्थापना के लिए था।

 

गांधी हत्या के पीछे एक विचार प्रणाली थी जो आज भी अपने उस हत्या को वध व हत्यारे को महिमामंडित करने का प्रयास जारी रखा है, लेकिन उस महान आत्मा के पीछे हत्या के कारण व 20 जनवरी को आश्रम मे ब्लास्ट होना और उसके बाद भी हुई गिरफ़्तारी व् पूछताछ में पता चले साक्ष्यों से क्या गांधी हत्या को टाला जा सकता था? ये कई प्रश्न हैं जो उस समय के परिस्थितियों को समझने का एक नजरिया प्रस्तुत करती है।

वर्तमान समय में जिस प्रकार से गांधी व् नेहरु के कार्यों व उनके धारणाओं के प्रति जो झूठा प्रचार किया जा रहा है यह वर्तमान समय के राजनीतिक संस्कृति को परिलक्षित कर रही है। जिसका प्रभाव युवाओ में आपसी आक्रामकता को बढावा मिल रहा है। अलग-अलग साम्प्रदायिक संगठनों द्वारा अपनाने जाने वाली नीतियां भारतीय समाज में भय को पैदा कर रही हैं। बेरोजगारी, भुखमरी,शिक्षा व् किसानों की समस्या से अधिक हम जाति, धर्म, गोत्र में उलझे हुए हैं, अगर इन सब से जल्द हमें ऊपर उठ कर एक स्वच्छ व् सकारात्मक सोच के साथ राजनीतिक व सामाजिक संस्कृति को बढावा देना चाहिए।

 

  

शुभम जायसवाल

शोधार्थी

गांधी व शान्ति अध्ययन विभाग, वर्धा

महाराष्ट्र (442001)

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