जब से जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने की घोषणा (Declaration to remove Article 370 from Jammu and Kashmir) हुई है तब से प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, न्यूज़ चैनल पर आने वाले पार्टी प्रवक्ता और केंद्र सरकार के नुमाइंदे के रूप जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल कश्मीरियों से नौकरी, विकास आदि के वायदे कर रहे हैं. राज्यपाल ने तो वहां शीघ्र ही 50 हजार सरकारी नौकरी देने का वायदा किया है. ऐसा लग रहा है, जैसे वो कश्मीरियों को कह रहे हों: “तुम मुझे अपनी आजादी दो मैं तुम्हे विकास दूँगा”.
स्क्रोल में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार (https://scroll.in/article/935245/raids-at-night-handbills-by-day-army-siege-in-south-kashmir-escalates-after-special-status-revoked ) सैनिक जहाँ रात में घरों में छापामारी कर रहे हैं, वहीं वो दिन के समय लोगों के बीच एक पर्चा बाँट रहे हैं. इसमें, धारा 370 एवं 35 (अ) के हटने से उन्हें 11 तरह के फायदे का लालच दिया जा रहा है; यह हैं: शिक्षा के अधिकार कानून के तहत मुफ्त शिक्षा (Free education under Right to Education Act), महिलाओं के लिए अनिवार्य शिक्षा (Compulsory education for women), स्कूलों में मध्यान्ह-भोजन (Mid-day meal in schools), कोचिंग सेंटर (Coaching Center in Kashmir), आयुष्यमान योजना के तहत इलाज और नए अस्पताल (Treatment and new hospitals under the Ayushyaman scheme in Kashmir), और टूरिज्म की योजना के तहत नए होटल खोलने का लालच भी दिया जा रहा है.
इस सूची में नए कारखाने एवं उद्योग खोलने के वायदे के साथ पिछड़ी जातियों का विकास, सूचना के अधिकार कानून का पालन, केंद्र के व्दारा एक लाख करोड़ रुपए खर्च कर विकास करने का वायदा भी है .
सरकार का कहना कश्मीर में जमीन की कीमत आसमान छूने लगेगी. एवं यहाँ से भ्रष्टाचार मिटाने एवं केंद्र के नियन्त्रण में होने से इसे पौण्डिचेरी जैसा विकसित किया जाएगा.
तुम मुझे अपनी आजादी दो मैं तुम्हें विकास दूँगा
सुभाषचंद्र बोस का एक बहुचर्चित नारा है: “तुम मुझे
दुनिया का इतिहास आजादी को लेकर हुए संघर्ष से भरा पड़ा है; आज भी यह संघर्ष जारी है, और दुनिया के अस्तित्व रहने तक जारी रहेगा. इसके मायने अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हो सकते हैं.
(http://thewirehindi.com/91126/world-indigenous-day-india-adivasi-tribals-society/).
आज़ादी विकास की पहली सीढ़ी है, पर्याय नहीं Freedom is the first step of development, not synonymous
आजादी सबसे पवित्र और बुनियादी इंसानी अहसास है. यह किसी से अलग होने का जरिया ना होकर सबके साथ रहकर भी अपने स्वतंत्र अस्तित्व को बनाए रखने का मामला है. स्त्री परिवार और समाज में अपनी अलग पहचान के लिए सदियों से संघर्षरत है. लेकिन इसका मतलब वो उससे अलग होना चाहती है, ऐसा नहीं है. वो तो बस उस परिवार और समाज के अन्दर अपने स्वतंत्र एवं बराबरी के अस्तित्व का अहसास चाहती है. और जबतक वो यह बराबरी का स्थान नहीं पा लेती है, तब-तक उसे एक विशेष दर्जा और छूट देनी होगी. अगर हम इस विशेष दर्जे को ही गलत ठहराकर अपने एकतरफा ताकत और बहुमत के दम पर उसे खत्म कर देंगे, तो फिर बराबरी कैसे आएगी?
यह बात दलितों, आदिवासी, पिछड़े हर विशेष वर्ग के बारे में लागू होती है, सबको बराबरी तक पहुँचने के लिए विशेष दर्जा दिया है. विशेष दर्जे को गैर-बराबरी मान लेना ही अपने आप में ही गैर-बराबरी को कायम रखने की चाल है.
इसी तर्ज पर आज़ादी के समय हिन्दुओं के परम्परा से चले आ रहे सयुंक्त परिवार के व्यापार के तरीके को विशेष स्थान देते हुए “हिन्दू अविभाजित परिवार” का एक विशेष वर्ग इनकम टैक्स एक्ट में बनाया गया ; यह छूट अन्य धर्मों के लोगों को नहीं है. उस समय हिन्दू व्यापारियों से यह नहीं कहा गया कि देश के विकास का हिस्सा बनना है, तो यह पुराना तरीका छोड़ो. अब नए व्यापार और एकल परिवार के दौर में वो धीरे-धीरे अपने आप अपना अस्तित्व खो दे तो वो अलग बात है. लेकिन, इसे आज भी “एक जैसे कानून” के नाम पर जबरिया खत्म नहीं किया गया.
370 के बदले भौतिक सुविधा का वायदा आज़ादी की भावना का अपमान है
The promise of material convenience in lieu of 370 is an insult to the spirit of freedom
अगर हम पौराणिक भारत की बात धर्म ग्रंथों तक सीमित रखें, तो राजनीतिक सच्चाई यह है कि आजादी के बाद का जो भारत था, उसमें 565 रियासतें तथा अनेक जाति और धर्म के लोग थे. अगर भारत भी धर्म के आधार पर बना होता, तो उसके कई हिस्से हुए होते.
पाकिस्तान भले ही धर्म के आधार पर बना, लेकिन भारत तो धर्मनिरपेक्षता की बुनियाद पर बना. इसलिए कश्मीर मुस्लिम बाहुल्य होने के बावजूद पाकिस्तान के साथ जाने की बजाए भारत के साथ आया.
सभी 550 रियासतों ने भारत में शामिल होने के लिए जिस इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन- Instrument of accession (अंगीकार पत्र) पर हस्ताक्षर किए थे, उन्हीं शर्तों पर जम्मू-कश्मीर भी भारत का हिस्सा बना था. यह थीं : विदेश, संचार और रक्षा मामले के साथ छोटे-मोटे मामलों में दिल्ली की सरकार का दखल होगा. यानी उसकी कोई अलग शर्त नहीं थी. लेकिन, संविधान बनने के बाद जहाँ बाकी सभी रियासतों ने फिर एक और अंगीकार पत्र पर हस्ताक्षर कर भारत के संविधान को पूरी तरह से स्वीकार कर लिया था, वहीं जम्मू-कश्मीर ने इस मामले में यह शर्त रखी कि पहले की संधि में शामिल तीन मामलों को छोड़कर बाकी मामलों में राज्य सरकार की मंजूरी के बाद ही उन मामलों में दिल्ली की सरकार का दखल होगा. इस तरह धारा 370 अस्तित्व में आई. http://epaper.indianexpress.com/2309594/Mumbai/September-1-2019#page/13/1
इसी तरह अन्य क्षेत्रों की विशेष परीस्थिति, भावना और मांग को समझते हुए अन्य राज्यों को संविधान में धारा 371 के तहत और, आदिवासी इलाकों को अनुच्छेद 5 और 6 के तहत यह विशेष दर्जा दिया गया. धारा 371 में तो 70 के दशक तक अनेक बिन्दु जोड़े गए.
लेकिन, आजादी के बाद इन आदिवासी इलाकों को अपना अलग अहसास और संविधान के प्रावधान के तहत संरक्षण देने और उनके विशेष दर्जे का सम्मान करने की बजाए विकास के नाम पर इन इलाकों में संसाधनों की लूट मची.
आज आप देश के किसी भी आदिवासी इलाके में चले जाए, वहां आपको बाँध मिलेंगे लेकिन कहीं और सिंचाई, बिजली और पानी देने के लिए. वहां का खनिज कहीं और उद्योग लगाने के लिए.
आज छतीसगढ़, उडीसा और झारखंड में खनिज निकलने के बाद खदान के गड्ढे और उनमें बहता लालपानी विकास की असली कहानी कहता है. यहाँ के लोग पलायन के जरिए रोजगार पाकर अपना पेट जस-तस भरते हैं. इसलिए, आज वहां विकास नहीं भुखमरी पसरी रहती है.
आज भी सरदार सरोवर बाँध विस्थापितों के सुप्रीम कोर्ट व्दारा आदेशित पुनर्वास की मांग को लेकर तीस साल से आन्दोलन जारी है. यह लेख लिखे जाने तक नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेता अनिश्चित कालीन अनशन पर हैं.
संविधान के तहत संरक्षण और हक़ देने की बजाए इस लूट के कारण ही जहाँ कश्मीर में 1989 में हिंसात्मक आन्दोलन ने जड़ पकड़ी, वहीं उत्तर-पूर्वी राज्यों और तेलंगाना में इसका लम्बा इतिहास रहा है.
मध्य-भारत के आदिवासी इलाके में भी यह अस्सी के मध्य के दशक में अपनी जड़ जमा चुका था. पंजाब में भी खालिस्तान का आन्दोलन/ आतंकवाद कश्मीर के काफी पहले ही शुरू हो गया था. इस सबके पीछे कारण उनके स्वतंत्र अस्तित्व को खत्म कर उनकी लूट और धोखे के अहसास था. यहाँ तक कि खालिस्तानी आन्दोलन को कुचलने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने जो “ऑपरेशन ब्लू स्टार” किया था, उसके चलते उन्हें अपने ही गार्ड के हाथों अपनी जान गंवानी पड़ी थी.
जहाँ तक विकास का सवाल है. केंद्र सरकार शेष भारत में गिरती उत्पादन दर और 45 सालों में सबसे ज्यादा महंगाई को नहीं संभाल पा रही है. हालात इस हद तक बदतर हो गए हैं कि केन्द्रीय बैंक, रिजर्व बैंक, के आकस्मिक कोष में से सरकार को लगभग एक लाख 23 हजार करोड़ रुपए लेना पड़ा, ऐसे में, वो जम्मू-कश्मीर के लोगों से विकास के बड़े-बड़े वायदे कैसे कर रही है? यह तो वो ही कहावत चरितार्थ करने की बात हो गई: “घर में नहीं हैं दाने और अम्मा चली भुनाने”.
विकास के बदले नागरिक की आजादी का सौदा करना असंवैधानिक है Dealing with civil liberties in exchange for development is unconstitutional
जो विकास शेष भारत के नागरिकों के लिए मृगमरीचिका साबित हो रहा है, वो जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को कैसे मिलेगा, यह बड़ा सवाल है?
और जो उद्योगपति भारत में पहले से ही बने अपने कारखानों और अन्य धंदों को चलाने के लिए सरकारी बैंको की ओर आशाभरी नजरों से देख रहे हैं; इसमें से कईयों का तो दिवाला निकल चुका है, वो जम्मू-कश्मीर में जाकर अपना पैसा लगाएंगे, यह एक दिवास्वप्न से कम नहीं लगता.
अंत: में यह जो कश्मीर में मिट्टी के मोल जमीन की कीमत बढ़ने की बात अमित शाह ने कही थी, वो तो एकदम भूमिपुत्र और किसान विरोधी है. हम देख रहे हैं किस तरह से देशभर में किसान आत्महत्या कर रहे हैं और उन्हें जमीन से बेदखल होना पड़ रहा है. और, जमीन की आसमान छूती कीमतों के चलते एकबार फिर अनुपस्थित जमींदार बढ़ते जा रहे है.
1952 में दिल्ली समझौते के बाद संसद को संबोधित करते हुए पं. नेहरू ने कहा था : कश्मीर के लोग अपनी जमीन पर अपना अधिकार सुरक्षित रखना चाहते हैं. कोई व्यक्ति की वहां जमीन खरीदने की पात्रता सिर्फ यह नहीं हो सकती कि उसके पास बहुत सारा पैसा है.
उनका कहना सही था. लेकिन अब लगता है मुम्बई के सारे नवधनाढ्य मुंबई के सटे इलाकों से किसानों को बेदखल करने के बाद अब कश्मीर में अपना बंगला बनाने का सपना (Dream of building your own bungalow in Kashmir) पूरा कर वहां कश्मीरियों को अपना नौकर रखेंगे. आज जमीन की कम कीमत के चलते ही वहां कोई भूमिहीन नहीं है. अगर देश में जो जोतें उसकी जमीन का सिद्धांत सही अर्थों में लागू हो जाए तो देशभर में जमीन की कीमत बढ़ना बंद हो जाए.
किसी भी राज्य और उसके लोगों को संविधान में मिले विशेष दर्जे - जिसे वो एक तरह से अपने हिस्से की आजादी मानते हैं – की तथाकथित विकास के लालच के बदले सौदेबाजी करना किसी भी लोकतांत्रिक देश की सरकार को शोभा नहीं देता.
देश के हर भाग और नागरिक को विकास के समान अवसर देना सरकार कि संवैधानिक जवाबदारी है. और, विकास के बदले नागरिक की आजादी का सौदा करना असंवैधानिक है. हम कश्मीरी लोगों की आज़ादी की परिभाषा से भले ही इक्तेफाक नहीं रखे, लेकिन हम उनकी इस भावना का सम्मान तो कर ही सकते हैं. कम से कम इतना सम्मान तो कर ही सकते कि उसे उसकी आजादी के अहसास से भौतिक सुख और सुविधा के बदले त्यागने को ना कहें. यह ना सिर्फ उसका अपमान होगा, बल्कि “आज़ादी” के मायने का भी अपमान होगा.
अनुराग मोदी