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मसीहुद्दीन संजरी

ट्रम्प अपने चुनाव अभियान के दौरान आरोप लगाते रहे थे कि आईएसआईएस को ओबामा और हिलरी क्लिंटन ने पैदा किया है।

यह आरोप अमरीका पर कई बार और कई दिशाओं से लगाया जा चुका है और आईएसआईएस के तेल की खरीद और हथियारों की बिक्री में अमरीकी कंपनियों के शामिल होने के प्रमाण भी मिल चुके हैं। लेकिन उसे खत्म करने के लिए वह अफगानिस्तान पर बम्बारी का आदेश देते हैं। पैदा करने वालों के खिलाफ कोई कारवाई नहीं। उन कंपनियों के खिलाफ भी कोई कारवाई नहीं की गई जो इस दानव से तेल खरीदती और हथियार बेचती रहीं हैं। इस वास्तविक्ता के बावजूद अमरीकी समर्थन के अभिलाशी ट्रम्प के इस कदम को आतंकवाद के खिलाफ बड़ा अभियान मानते हैं।

सच्चाई तो यह है कि पूंजीपरस्त अमरीका के लिए अपने आर्थिक हित और दुनिया पर अपनी दादागिरी कायम रखने के सामने न तो कोई मूल्य है और सिद्धांत। और यह कभी नहीं रहा है। वह अपने हित के लिए जिहादी ग्रुपों की मदद भी कर सकता है, लोकतांत्रिक सरकारों का तख्ता पलट भी करवा सकता है, हथियार बेचने के लिए आतंकवाद के भस्मासुर को भी पैदा कर सकता है और दो देशों के बीच युद्ध भी करवा सकता है। और ऐसा उसने विगत में भी किया है और कर भी रहा है।

अपने हितों के आधार पर ही अमरीका अपने देश की आज़ादी के लिए लड़ने वालों को आतंकवादी और आतंकवादियों को अपने अधिकार के लिए लड़ने वाले योद्धा के बतौर भी पेश करता रहा है।

अफगानिस्तान में बमबारी में अमरीकी हित के साथ अमरीका में स्वीकार्यता के संकट से गुज़र रहे ट्रम्प का व्यक्तिगत हित भी शामिल है।

अमरीका ने जो गैर नाभिकीय बम अफगानिस्तान में गिराया है उसका धमाका क्षेत्र अपने केंद्र के चारो तरफ एक किलोमीटर है। उस क्षेत्र में कुल 95,000 लोग रहते हैं। खबर है कि मरने वालों में

20 भारतीय भी हैं।

अफगानिस्तान पर अमरीका ने सबसे बड़े गैर नाभिकीय बम आईएस को तबाह करने के लिए नहीं बल्कि अमरीकी जनता के विरोध प्रदर्शनों को ठगने के लिए किया है। कई देशों की अलोक प्रिय सरकारें अपने अस्तित्व को बचाए रखने और जनता के मूल भूत सवालों को हल करने में असफल होने पर इस तरह के हथकंडे अपनाती रही हैं। यह सिलसिला आज भी जारी है। अमरीका के पास जन संहार के कई हथियार हैं उनमें यह "मदर आफ आल बाम्ब्स" भी है और साथ ही ट्रम्प की समस्याएं भी बड़ी हैं तो उसका हल भी तो बड़ा ही निकालना पड़ेगा। सीरिया और अफगानिस्तान से भी अमरीकी जनता काबू में नहीं आई ताे बाकी की कमी उत्तर कोरिया से पूरी की जाएगी।

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