कांग्रेस के संघी :- ( मुरादाबाद ईदगाह में फायरिंग)
कांग्रेस को अपने अंदर के स्लीपर सेल के ऐसे संघियों को पहचानना होगा
कांग्रेस के संघियों में सबसे बड़ा नाम विश्वनाथ प्रताप सिंह का है , राजा मांडा के नाम से मशहूर यह फकीर कांग्रेस के साथ साथ मुसलमानों और इस देश का सबसे बड़ा खलनायक है।
वाममोर्चा और भाजपा की मदद से प्रधानमंत्री बने वीपी सिंह काश्मीर में संघी जगमोहन को कत्लेआम की छूट देने से लेकर संघ और भाजपा के देश में फैलने का भी एक मात्र ज़िम्मेदार हैं।
इनका सबसे बड़ा कारनामा मुरादाबाद ईदगाह में नमाज़ियों पर फायरिंग कराना रहा है।
13 अगस्त 1980 के दिन जब मुरादाबाद के ईदगाह में ईद की नमाज़ अता की जा रही थी, तभी ईदगाह के गेट के भीतर सुअर घुस जाने को लेकर नमाज़ियों और PAC के जवानो में झड़प हो गयी थी।
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नमाज़ियों ने PAC के जवानों पर सुअर को घुसने से रोकने की जगह ईदगाह में सुअर घुसाने की शिकायत की और बहस और तनाव के बीच PAC के जवानों ने ईदगाह को घेरकर कई राउंड गोलियां चलाईं। ईदगाह में ही कोई 82 -83 नमाज़ी मारे गए और पूरी ईदगाह ईद के दिन ही नमाज़ियों के खून से लाल हो गयी।
फिर मुरादाबाद में ईद के दिन इसी कारण कई दिनों की भड़की हिंसा में PAC के जवानों के राईफल से निकलती गोलियों से करीब 250-300 मुसलमान और मारे गए।
राजा के नाम का धुर्त वीपी सिंह उस वक़्त यूपी के मुख्यमंत्री था और इंदिरा गाँधी देश की प्रधानमत्री।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भ्रमित करके उत्तर प्रदेश की
बाद में इसे पीएसी-मुसलमान की जगह हिन्दू-मुस्लिम दंगे का रूप दिया गया और कई दिनों तक मुरादाबाद को मुसलमानों के खून से तर बतर किया गया।
इसके लिए भाँड मीडिया का सहारा लिया गया।
खासकर "टाइम्स ऑफ़ इंडिया" ने अपनी रिपोर्टिंग में कहा था कि मुसलमानो के पास हथियार थे और उन्होंने पीएसी पर ज़बरदस्त हमला किया था।
सोचिगा कि ईद की नमाज़ कौन हथियार लेकर पढ़ने जाता है ?
दरअसल इंदिरा गाँधी को गुमराह करने के लिए वीपी ने ली टाइम्स ऑफ़ इंडिया से मदद ली और प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को असलियत न पता लगे इसलिए वीपी सिंह ने फटाफट टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अपने एक खास पत्रकार से संपर्क किया और झूठी खबर प्रकाशित कराई।
वामपंथी रोमिला थापर के भाई रोमेश थापर ने भी तब एक नई थ्योरी गढ़ी और उन्होंने कहा कि मुसलमानो को भारत में अस्थिरता फैलाने के लिए सऊदी अरब से आर्थिक सहायता मिली जिसके नतीजे में कई दिन तक मुरादाबाद में खूनी खेल चलता रहा।
तब सिर्फ सैय्यद शहाबुद्दीन ऐसे नेता रहे जिन्होंने कहा कि पुलिस ने मुसलमानो पर खुलकर गोली चलाई जबकि नमाज़ के वक़्त किसी भी मुसलमान के पास कोई हथियार नहीं थे।
प्रत्यक्षदर्शी पत्रकार हिसामुल इस्लाम सिद्दीकी बताते हैं कि नमाज़ियों की पीएसी वालों से शिकायत केवल सुअर के ईदगाह में घुसने को लेकर थी और फिर पीएसी ने पूरे ईदगाह को घेर कर निहत्थे नमाज़ियों पर फायरिंग को तब लाशों के ढेर लग गए थे।
ईदगाह में पुलिस फायरिंग के बाद मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने उसी रात यूपी के दो कैबिनेट मंत्री अब्दुर रहमान नश्तर और जगदीश प्रसाद को मौके पर भेजा था।
मौके का हाल लेकर लखनऊ लौटे दोनों मंत्रियों को वीपी सिंह ने अगले दिन अपनी प्रेस कान्फ्रेन्स में बैठाया। पत्रकार सिद्दीकी के अनुसार वह भी प्रेस कांफ्रेंस कवर कर रहे थे और वीपी सिंह ने अपनी सरकार और पुलिस को बचाने के लिए ईदगाह में मुसलमानों के आपसी झगड़े की नयी थीयरी गढ़ी तभी कैबिनेट मंत्री अब्दुर रहमान नश्तर ने प्रेस कांफ्रेंस के बीच में खुलासा किया कि मामला PAC जवानो की फायरिंग से भड़क गया था।
नश्तर ने आगे कहा कि मौके पर फैसला लेने वाला कोई जिम्मेदार अफसर नहीं था। उन्होंने सारा दोष PAC जवानो पर मढ़ दिया। नश्तर के कड़वे सच से वीपी सिंह तिलमिला गए और उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस वहीँ खत्म कर दी। कुछ देर बाद वीपी सिंह ने दोनों मंत्री-अब्दुर रहमान नश्तर और जगदीश प्रसाद को सरकार से बर्खास्त कर दिया।
उसी रात इंदिरा गाँधी ने फ़ोन पर नश्तर से बात की और जब उन्हें असलियत पता लगी तो नश्तर को दिल्ली बुला लिया"
वीपी सिंह सच दबा रहे थे , टाईम्स आफ इंडिया के सहारे झूठी कहानी गढी जा रही थी लेकिन उनके ही दो मंत्रियों ने पुलिस फायरिंग की असलियत बता दी।
तब टाइम्स ऑफ़ इंडिया की तूती बोलती थी और इंदिरा गाँधी भी अख़बार का संज्ञान लेती थीं। इसलिए वीपी सिंह ने लखनऊ के मशहूर पत्रकार विक्रम राव को हेलीकाप्टर से मुरादाबाद भेजा। राव ने लौटकर नई कहानी छापी। उन्होंने लिखा कि सऊदी अरब के पेट्रो डॉलर की कमाई दंगे के पीछे अहम वजह थी। सऊदी की आर्थिक सहायता से ही मुरादाबाद के कुछ मुसलमानो तक हथियार पहुंचे जिसके कारण इतनी बड़ी हिंसा हुई।
ये कहानी इंदिरा गाँधी ने भी पढ़ी और कुछ दिन के लिए वीपी सिंह की कुर्सी बच गयी।
इस बीच पुलिस फायरिंग के बाद मुरादाबाद में हिन्दू-मुस्लिम दंगे शुरू हो गए। इन दंगो के कारण ईदगाह की पुलिस फायरिंग से लोगों का ध्यान हट गया।
बाद में इंदिरा गाँधी ने केंद्रीय मंत्री पी शिव शंकर और सी के ज़ाफ़र शरीफ को मुरादाबाद भेजा। उसके बाद इंदिरा गाँधी खुद मुरादाबाद गयी परन्तु जब तक उन्हें सारी हकीकत पता लगती तब तक देर हो चुकी थी।
आज़ाद भारत की इस सबसे भयावह पुलिस फायरिंग काण्ड को दफन कर दिया गया जिसे जालियाँवाला बाग की तर्ज पर अंजाम दिया गया।
फिर एक सोची समझी रणनीति के तहत मुरादाबाद दंगो की जांच इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज एमपी सक्सेना के सुपुर्द कर दी गयी।
जस्टिस सक्सेना इस जांच के लिए कांग्रेस के 'कोल्ड स्टोरेज' इंचार्ज थे जो मामले को लीपापोती करके ठंडे बस्ते में डाल दिया करते थे और इस भयावह नरसंहार को भी उसी अंजाम तक पहुंचा दिए।
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वीपी सिंह आजाद भारत के सबसे धूर्त और झूठे व्यक्तित्व हैं जो ना कांग्रेस के हुए ना राजीव गाँधी के, ना उन्होंने बोफोर्स के संबन्ध में कोई सबूत दिया ना उस लोटस वाले खाते का नंबर दिया जिसमें बोफोर्स की दलाली की रकम जमा होने का आरोप लगाया, "लोटस अर्थात राजीव" के आरोप लगाकर प्रधानमंत्री बने और उनके कारण ही कांग्रेस दो फाड़ हुई और राजीव गाँधी को मौत मिली।
कांग्रेस को अपने अंदर के स्लीपर सेल के ऐसे संघियों को पहचानना होगा।
• अगली कड़ी में एक और कांग्रेसी संघी
Mohd Zahid की एफबी टाइमलाइन से साभार