आखिर आप मोदी कितना विरोध क्यों करते हो ? ये एक ऐसा सवाल है जो मुझसे अनगिनत बार पूछा जाता है। कभी मुझे कांग्रेसी तो कभी कम्युनिस्ट घोषित किया जाता है और कभी-कभी तो देशद्रोही। ये एक अजीब सी स्थिति है जहाँ सत्ता और सरकार की आलोचना करने का अर्थ या तो किसी अन्य पार्टी के समर्थक होना है या देशद्रोही होना है, जहाँ आपके एक निष्पक्ष और जागरूक नागरिक होने की सारी संभावनाओं को ख़ारिज कर दिया जाता है।
ये निश्चित एक भयावह स्थिति है जहाँ आपके एक नागरिक होने के अधिकार और संभावना को छीना जा रहा है और आपको एक पार्टी या विचारधारा से ज़्यादा एक व्यक्ति का पपेट बनने पर मजबूर किया जा रहा है क्योंकि अगर आप पपेट नहीं हैं तो देशद्रोही हैं।
2014 में जब मोदी जी को प्रधानमंत्री के प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा था, उस वक़्त उनकी इमेज एक कट्टर हिंदुत्ववादी नेता और एक बेहतर प्रशासक के रूप में बेहद लोकप्रिय थी। विशेषकर हिंदुत्ववादी रुझान वाले उत्तर भारतीय उन्हें बेहद पसंद करते थे। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में भी उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। गोधरा काण्ड में उनकी संदिग्ध भूमिका ने हिन्दू राष्ट्र का सपना देखने वाले एक ख़ास वर्ग को उनका मुरीद बना दिया था।
इतना ही नहीं पूर्व की सरकारों के भ्रष्टाचार, जनता की समस्यायों के प्रति उनकी उदासीनता और कुछ नेताओं के बड़बोलेपन व जनता से सीधे संवाद न कर पाने की अक्षमता के चलते लोग ऊबे और चिढ़े हुए थे, वे बदलाव चाहते थे। वे एक ऐसा नेता चाहते थे जो उनकी आकांक्षाओं को शब्द दे। जो उनके अपने बीच का नेता हो। जो सरकारी कामकाज में
ऐसे वक़्त में नरेंद्र मोदी का प्रोजेक्शन जिस तरह से किया गया उसमें जनता को ये सारी अपेक्षाएँ पूरी होती दिखाई दे रही थीं। वे एक ऊर्जावान नेता हैं, शब्दों की बाजीगरी उन्हें आती है। भावुकता और गुस्से का कब कहाँ कितना उपयोग करना है वे जानते हैं। वे किसी राजनैतिक परिवार से नहीं आते और न ही उनके अपने परिवार के बारे में लोगों को कोई विशेष जानकारी थी। इन सभी फैक्टर्स ने उनके पक्ष में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लोग तत्कालीन सरकार से निराश तो थे ही और एक बेहतर विकल्प की तलाश में थे। मोदी जी ने इस अवसर का भरपूर लाभ उठाया।
उन्होंने अपने भाषणों में सिर्फ उनकी आलोचना ही नहीं की बल्कि उनका चरित्र हनन भी किया। लोकतान्त्रिक मर्यादाओं की धज्जियाँ उड़ाते हुए, आलोचना प्रत्यालोचना से आगे बढ़ते हुए उन्होंने दूसरे विपक्षी दलों और उसके सदस्यों के व्यक्तिगत जीवन को भी निशाना बनाया। ये सब कुछ इस तरह से किया गया कि लोग विवेकवान ढंग से किसी विशेष दल या व्यक्ति के प्रति आलोचनात्मक रवैया अपनाने के बजाय उससे नफरत करने लगें। इस काम में उनका साथ झूठ और अफवाहों के हथियारों से लैस भाजपा की आई टी सेल ने खूब दिया। इन्होंने तकनीक का भरपूर उपयोग करते हुए फोटोशॉप और अन्य तरीको से ऐसे ऐसे संदेश समाज में प्रसारित किये जिनकी सत्यता की जांच करने का न तो आम जनता के पास समय था और न उसकी रूचि। उसे तो घर बैठे बिठाये सिर्फ एक स्मार्ट फोन के ज़रिये उसके जीवन में आई एकरसता और ऊब को मिटाने का बेहतरीन ज़रिया मिल गया था। एक औसत ज़िंदगी से निराश हो रहे मध्यवर्ग को सीना फुलाने गर्व करने की कोई वजह मिल रही है। आप कहेंगे इसमें बुरा क्या है ?
दरअसल कोई भी देश, समाज या व्यक्ति तब उन्नति करता है जब वो खुद से टकराने वाले किसी भी मुद्दे के प्रति एक क्रिटिकल अप्रोच रखता है। पिछले पांच सालों में इस देश की जनता के इसी अप्रोच पर सबसे ज़्यादा हमला हुआ है। आम जनता की तर्कणा शक्ति उसके विवेक और सत्ता से प्रश्न पूछने के उसके विशेषाधिकार को जान बूझकर एक षड्यंत्र के तहत छीना गया है। लेकिन एक औसत बुद्धि और सामान्य सी जानकारी रखने वाली एक नागरिक के तौर पर अगर मुझे मोदी जी से सीधे संवाद करना हो तो मैं उनसे ये कहूँगी कि "मोदी जी आपने देश को बेहद अस्थिरता और नकारात्मकता की ओर धकेल दिया है।
आपने पांच साल में वो किया है जो लोग सौ साल में नहीं पाते। आपने इस देश की जनता को बेहद असंवेदनशील, अधीर और उग्र बना दिया है। संवेदना के तल पर आपने समाज को पंगु बनाया है। आपने बार-बार अहिंसा, धैर्य, समानता, बंधुत्व जैसे मूल्यों को ख़ारिज करके उसकी जगह गुस्सा, नफरत और शारीरिक बल को सामाजिक और सबसे महत्वपूर्ण मूल्य की तरह स्थापित किया है।
आपने सच और झूठ को इस तरह से आपस में मिला दिया है कि सच सिर्फ एक भ्रम बन कर रह गया है। इतना तो निश्चित है कि ये सब थोड़े समय के लिए लोगों को ऊर्जा में भरेगा किन्तु अंतत: उन्हें खीज और निराशा की ओर ले जायेगा।
आप अपने भाषणों में पहली बार, पहली बार शब्द का प्रयोग बहुत करते हैं। ठीक ही करते हैं। आपके आने के बाद बहुत कुछ पहली बार हुआ है।
ये पहली बार हुआ है कि राह चलते किसी भी व्यक्ति को सिर्फ संदेह के आधार पर भीड़ इकट्ठा हो कर मार देती है।
ये पहली ही बार हुआ है कि जनता ने आपसे अलग मत रखने वाले लेखकों पत्रकारों और बुद्धिजीवियों के खिलाफ दुश्मनी ठान ली और सिर्फ अपशब्द ही नहीं कहे, उनकी हत्या तक कर दी।
गौरी लंकेश तो याद होंगी आपको ? आपने समाज में अभद्रता को, हिंसा को बढ़ावा दिया। आपने मतभेद को मनभेद में बदल दिया है।
मोदी जी ये पहली बार हुआ है कि अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदी को हराने के लिए आपको उनका चरित्र हनन करना पड़ा हो।
मोदी जी ज़रा सोचिये और बताइये कि इसके पहले ऐसा कब हुआ है जब किसी दल, व्यक्ति अथवा प्रधानमंत्री का विरोध करने पर आपके भाई बंधु दोस्त साथ में काम करने वाले आपको देशद्रोही साबित करने पर आमादा हो गए हों।
पिछले सत्तर सालों में ( जिसका आप अपने भाषणों में बार बार ज़िक्र करते हैं ) ऐसा कब हुआ है कि व्यक्ति प्रेम लोगों पर इतना हावी हो गया हो कि अपने से इतर विचार रखने वालों के लिए शाब्दिक और शारीरिक रूप से हिंसा की गई हो ? जब राजनीति घरों में इस तरह प्रवेश कर गई हो कि आपसी रिश्ते ही बिगड़ने लगे हों। बताइये कब हुआ ऐसा ?
मोदी जी आपने शासन के स्तर पर क्या किया और क्या नहीं वो एक अलग चर्चा का विषय है। आपने अपने कौन से वादे पूरे किए और कौन से नहीं इसकी पड़ताल करने का अभी मेरा कोई इरादा नहीं। लेकिन इतना ज़रूर है कि आपने इस देश के सामाजिक ढाँचे को बहुत नुक्सान पहुँचाया है। आपने इतना कुछ गलत किया मेरे देश के साथ और आप चाहते हैं कि मैं आपका विरोध भी न करूं, ये कैसे सम्भव है ?