आदरणीय महोदय,
आप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता रहे हैं। पिछले चार दशकों से अधिक समय से आपकी सैद्धांतिक प्रतिबद्धता लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष भारत के प्रति रही है। आप देश के राष्ट्रपति पद को सुशोभित कर चुके हैं, जो कि देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद है।
महोदय, 7 जून, 2018 को आपने नागपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के रेशम बाग, स्थित मुख्यालय पर संघ के चुनिंदा स्वयंसेवकों की एक सभा को संबोधित किया। इस सभा में मुख्य अतिथि के तौर पर आपने संबोधन किया तथा मुख्य संबोधन संघ के सर्वोच्च प्रमुख मोहन भागवत ने किया। इस संबोधन में आपने संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार का स्मरण किया और आगंतुक पंजिका में उनकी प्रशंसा में लिखा,‘‘आज मैं भारत माता के महान सपूत के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करने और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने आया हूं‘‘।
मान्यवर, इससे बड़ा झूठ और कोई नहीं हो सकता। एक ऐसे शख़्स को ‘‘भारत माता का महान सपूत‘‘ बताना, जिसने समावेशी भारत के निर्माण के लिए संयुक्त स्वतंत्रता संघर्ष का विरोध करने के लिए ही 1925 आरएसएस की स्थापना की थी। हेडगेवार ने देश की आजादी के आंदोलन में इसलिए भाग नहीं लिया क्योंकि यह संघर्ष समावेशी भारत के लिए लड़ा जा रहा था न कि हिंदू राज्य के लिए। उन्होने घोषित किया था कि भारत के दुश्मन, धार्मिक अल्पसंख्यक, खास तौर पर मुसलमान हैं, न कि ब्रिटिश। वे कट्टर जातिवादी थे। 1930 के बाद बरतानिया साम्राज्य से भारत की मुक्ति के संघर्ष का परचम बना तिरंगे झंडे के प्रति हेडगेवार शत्रुतापूर्ण थे। उनका हिंदुत्व का आदर्श विनायक दामोदर सावरकर हिंदू महासभा के नेता थे। 1942 में जिस समय
महोदय, हेडगेवार को ‘‘भारत माता के महान सपूत‘‘ बता कर आपने जो चरित्र प्रमाणपत्र दिया है, वह न केवल भारत के महान औपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष का अपमान है बल्कि भगत सिंह, अशफाकुल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद, जतीन दास, और अन्य हजारों क्रांतिकारियों की कुरबानियों का निरादर करता है, जिन्होंने धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक भारत के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए और अकूत कुरबानियां दी हैं। भारतीय गणराज्य के लिए यह एक दुखद दिन था, जब हेडगेवार को आदर्श के रूप में प्रतिष्ठित करने वाला आप एक ऐसे वयक्ति थे जिसने देश की आजादी की लड़ाई की अगुआई करने वाली कांग्रेस में रहकर भारतीय संवैधानिक राजनीति के श्रेष्ठतम प्रतिफलों का रसास्वादन किया है।
महोदय, मैं आरएसएस अभिलेखागार से कुछ तथ्यों को पुनः प्रस्तुत कर रहा हूं जो यकीनी तौर पर साबित करते हैं कि आपने हेडगेवार को ‘भारत माता के महान सपूत‘ घोषित कर भारत के गौरवशाली स्वतंत्रता संग्राम पर कीचड़ उछालने और उसे ज़लील करने का काम किया है। आप, कृपया, आरएसएस के इन दस्तावेजों की सच्चाई की जांच कर स्वयं आत्ममंथन करें। अगर मैं गलत साबित हुआ, तो आप जैसा उचित समझें कार्यवाही कर सकते हैं।
मान्यवर, आपको स्मरण होगा कि तिरंगा झंडा, एकताबद्ध और संयुक्त भारतीय राष्ट्रवाद का प्रतीक है। इसके बावजूद, आजादी के संघर्ष के दौरान आरएसएस को इससे सख्त नफरत रही । कांग्रेस ने कराची अधिवेशन में भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए प्रस्ताव पारित करते हुए तिरंगा झंडा फहराकर 26 जनवरी1930 को स्वतंत्रता दिवस मनाने का (और उसके बाद से हर 26 जनवरी को तिरंगे झंडे को सलाम कर स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने का) आह्वान किया था। हेडगेवार ने अत्यंत शातिराना अंदाज में इसका विरोध किया। उन्होंने आरएसएस के स्वयं सेवकों को निर्देश दिया कि वे तिरंगे झंडे की जगह भगवा ध्वज के सम्मुख शीश नवा कर ध्वज प्रमाण करें। यह निर्देश सभी शखाओं के प्रमुखों को प्रेषित कर कहा गया कि सभी शाखाओं से संबंधित स्वयं सेवक 26 जनवरी 1930 रविवार शाम 6 बजे जहां शाखाएं लगती हैं (संघस्थान पर) एकत्रित हों और भगवा ध्वज ही राष्ट्रीय ध्वज है इसे समझाएं:1
तिरंगे झंडे के प्रति नफरत की यही परंपरा थी कि आरएसएस के अंग्रेजी साप्ताहिक मुखपत्र ‘आर्गनाइजर‘ ने स्वतंत्रता की पूर्व संध्या (14 अगस्त ए 1947) पर राष्ट्रीय ध्वज की तौहीन करते हुए लिखा :
“वे लोग जो किस्मत के दांव से सत्ता तक पहुंचे हैं वे भले ही हमारे हाथों में तिरंगे को थमा दें, लेकिन हिंदुओं द्वारा न इसे कभी सम्मानित किया जा सकेगा न अपनाया जा सकेगा। तीन का आंकड़ा अपने आप में अशुभ है और एक ऐसा झण्डा जिसमें तीन रंग हों बेहद खराब मनोवैज्ञानिक असर डालेगा और देश के लिए नुक़सानदेय होगा।“
हेडगेवार ने आरएसएस की स्थापना की कियोंकी वे हिंदू-मुस्लिम एकता के खिलाफ थे
महोदय, मुझे उम्मीद है कि आप अभी भी मानते हैं कि भारत के हित के लिए हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एकता होनी चाहिए, लेकिन आपके इस ‘भारत माता के महान सपूत‘ को हिंदू-मुस्लिम एकता से ज़बरदस्त नफ़रत थी। आरएसएस दस्तावेजों से स्पष्ट है कि कांग्रेस से हेडगेवार के मोहभंग का विशेष कारण यह था कि कांग्रेस हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एकता की हिमायती थी। आरएसएस द्वारा प्रकाशित हेडगेवार की आधिकारिक जीवनी में से एक में यह स्पष्ट बताया गया है कि हेडगेवार कांग्रेस नेतृत्व के स्वतंत्रता संघर्ष से क्यों अलग हुए:
‘‘2
हेडगेवार इस तथ्य को कभी छुपा नहीं पाए कि कांग्रेस से उनकी दूरी की वजह यह थी क्योंकि कांग्रेस हिंदू-मुस्लिम एकता में विश्वास रखती थी। 1937में महाराष्ट्र के अकोला में मध्यप्रांत और बेरार (अब महाराष्ट्र में) हिंदू महासभा के प्रांतीय अधिवेशन (सावरकर की अध्यक्षता में) से लौटने पर, कांग्रेस छोड़ने की वजह पूछे जाने पर हेडगेवार का जवाब था ‘‘क्योंकि कांग्रेस हिंदू-मुस्लिम एकता में विश्वास करती है।‘‘3
हेडगेवार के आधिकारिक जीवनी के लेखक सीपी भीष्कर ने हेडगेवार के कांग्रेस से अलग होने के कारणो पर प्रकाश डालते हुए लिखा है:‘‘.‘‘4
इस प्रकार आरएसएस के अनुसार मुसलमान सांप थे। सांप जहां नजर आता है उसे अक्सर मार देना होता है।
महोदय, आपके पसंदीदा हेडगेवार सांप्रदायिक गोलबंदी के लिए एक गुंडे की तरह व्यवहार करने वाले और सांप्रदायिक दंगों को भड़काने वाले शख्स के रूप में जाने जाते थे। उनकी एक जीवनी में बताया गया है कि जब कभी-कभी बैंड (संगीत) बजाने वाली टोली मस्जिद के सामने बैंड बजाने में हिचकिचाती तो हेडगेवार ‘‘खुद ड्रम लेते और शांतिप्रिय हिंदुओं को उत्तेजित कर उनकी मर्दानगी को ललकारते थे।‘‘5
गौर तलब है कि1926 तक, मस्जिदों के बाहर ढोल-बाजे बजाना सांप्रदायिक दंगों के उकसाने की मुख्य वजह था। हेडगेवार ने हिंदुओं में आक्रामक सांप्रदायिकता उकसाने में निजी तौर पर भूमिका अदा की । इस तथ्य को उनके घनिष्ठ और आरएसएस के संस्थापक सदस्यों मे रहे नागपुर के इस्पात मिल मालिक अन्नाजी वैद का कथन पुष्ट करता है। उन्होंने बताया है:‘‘‘6
मान्यवर, आपने आरएसएस मुख्यालय में बहुत सी बातों के बारे में बताया लेकिन जातिवाद के अभिशाप पर आप मौन रहे जो कि आरएसएस की मौलिक मान्यताओं में से एक है। आप शायद इस लिए इस विषय पर खामौश रहे कि आप अपने जातिवादी मेजबानों को शर्मिंदा नहीं करना चाहते थे। आप की इस मुद्दे पर चुप्पी, आज ऐसे माहौल में है जब आरएसएस और भाजपा शासन में पिछले चार वर्षों के दौरान दलितों पर हमले कई गुना बढ़े हैं, एक शर्मनाक बात ही थी।
बहरहाल, समकालीन आरएसएस साहित्य इस बात को प्रमाणित करता है कि हेडगेवार जातिवाद में विश्वास करते थे और अस्पृश्यता जैसी अपमान जनक, पतित और अमानवीय प्रथा से उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि वे उच्च जाति के हमदर्दों को नाखुश नहीं करना चाहते थे। नासिक में हेडगेवार कृष्ण राव वाडेकर और भास्कर राव निनवे के साथ डॉ. गढ़ानी नामक एक ब्राह्मण के घर गए। इनमें निनवे निम्न जाति से संबंधित थे। जब भोजन का वक्त आया तो निनवे ने हेडगेवार से पूछा कि क्या उन्हें भोजन के लिए अलग बैठना चाहिए, जैसा कि आमतौर पर होता था। वाडेकर ने सुझाव दिया कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि गढ़ानी जानते ही नहीं थे कि निनवे की जाति क्या है। हेडगेवार ने वाडेकर का सुझाव से असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि निनवे को ब्राह्मणों से अलग बैठना चाहिए। हेडगेवार का तर्क था कि अगर साथ बैठाकर भोजन किया गया तो वास्तविकता ज्ञात होने के बाद गढ़ानी को भारी संताप होगा। हेडगेवार ने अपने साथ आये आरएसएस सदस्यों को हिन्दू राष्ट्रवादी ज्ञान बांटते हुए फ़रमाया:‘‘‘‘7
यह सुविदित तथ्य है कि हेडगेवार ने अस्पृश्यता के खिलाफ सहभोज को हतोत्साहित किया था। सुधारवादी हिंदुओं के द्वारा छूआछूत के विरोध में ये सहभोज आयोजित किए जाते थे। इन सहभोज में सभी जातियों के लोग बिना किसी भेद-भाव के साथ-साथ बैठकर भोजन करते थे।8
महोदय, आपका मनभावन भारत माता का यह महान सपूत ब्रिटिश शासन दुवारा ढाये जा रहे अभूतपूर्ण दमन और लूट का मूक दर्शक मात्र था। कांग्रेस के आह्वान पर हेडगेवार ने दो बार निजी तौर पर जेल गए। परंतु आरएसएस को ऐसे किसी भी आंदोलन से दूर रहने का उनका निर्देश था, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ हो सकता है। आरएसएस के ही एक प्रकाशन के मुताबिकः‘‘9
हेडगेवार ने अपने ब्रिटिश आकाओं के खिलाफ चुप्पी के लिए मजेदार बहाना तलाशा था। जब लोगों ने उससे इस बारे में सवाल किया तो उनका जवाब था,
हेडगेवार ने गांधी जी के नेतृत्व में नमक सत्याग्रह में आरएसएस के कार्यकर्ताओं के स्वतः सफूर्त तरीके से सम्मिलित होने से रोकने के लिए आरएसएस के कार्यकर्ताओं को स्पष्ट कहा11
श्रीमान, हेडगेवार के ऐसे सभी राष्ट्र-विरोधी और मानवता विरोधी कृत्यों और मान्यताओं के बावजूद आपने उन्हें ‘‘भारत माता का महान सपूत‘‘ घोषित कर दिया। अगर वे ऐसे थे तो गांधी जी कौन थे जिन्होंने आरएसएस का विरोध किया था और हिंदुत्ववादी हत्यारों ने उन्हें मार डाला था। ये हत्यारे भी आरएसएस की ही तरह खुद को हिंदू राष्ट्रवादी कहते थे। तथ्य यह है कि या तो गांधीजी या फिर आपके नए पसंदीदा हेडगेवार में से कोई एक ही ‘‘भारत माता का महान सपूत‘‘ हो सकता है। कृपया हिंदूत्व के इस कट्टर पंथी को आपने जो यह चरित्र प्रमाण पत्र जारी किया है इसे वापस ले लें और भारत मां और इसको प्यार करने वाले देश.भक्त भारत वासियों से माफ़ी माँगें। आपका यह कृत्य स्वतंत्रता सेनानियों के उन सपनों की तौहीन है जो उन्हों ने स्वतंत्र भारत के बारे में देखा था और महान क़ुर्बानियां दी थीं।
महोदय,
मैं बिना संकोच यह कहकर अपनी बात ख़त्म करना चाहता हूँ की आप ने हेडगेवार को मादर.ए.हिन्द का महान सपूत बताकर भारत मां का घोर अपमान किया है। इतिहास आप को कभी माफ़ नहीं करेगा।
देश का एक नागरिक,
8 जून 2018
References:
H. V. Seshadri (ed.), Dr.. Hedgewar, the Epoch-Maker: A Biography, 61.
3. H. V. Pingle (ed.), Smritikan: Param Pujiye Dr.. Hedgewar Ke Jeewan Kee Vibhin Gahtnaon Ka Sankalan
4. C. P. Bhishikar, Keshav Sangh Nirmata (Delhi: Suruchi, 1980), 7, cited in Tapan Basu and others, Khaki Shorts Saffron Flags: A critique of the Hindu Right (Delhi: Orient Longman, 1993), 14.
H. V. Pingle (ed.), Smritikan: Param Pujiye Dr.. Hedgewar Ke Jeewan Kee Vibhin Gahtnaon Ka Sankalan
H. V. Pingle (ed.), Smritikan-Param Pujiye Dr.. Hedgewar Ke Jeewan Kee Vibhin Gahtnaon Ka Sankalan
C. P. Bhishikar, Sangh-viraksh Ke Beej: Dr.. Keshav Rao Hedgewar