लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी, 17 फरवरी 2017: वैसे तो गांधी परिवार (Gandhi family) की हिन्दुस्तान की जनता (People of india) में अलग ही क़द्र है क्योंकि जिस तरह से गांधी परिवार ने देश के लिए क़ुर्बानियाँ (Sacrifice for country) दी हैं और इस देश का नवनिर्माण किया है, सुई से लेकर परमाणु तक बनाने में सफलता प्राप्त की, इसमें कोई शक नहीं है। यही कारण है कि हिन्दुस्तान की अवाम गांधी परिवार को अपने प्यार से नवाज़ती आ रही है। इतिहास यही बताता है, लेकिन आजकल देश के सियासी हालात पर धर्म की आड़ लेकर सियासत करने वाले हावी हो चले थे, परन्तु राहुल गांधी ने धर्म का चोला पहन कर सियासत करने वालों के बीच में रह कर ही अपनी जगह बनाई और पार्टी को खड़ा करने में सफल होते दिखाई दे रहे हैं।
राहुल गांधी ने जब कांग्रेस की कमान सँभाली थी तो पार्टी बहुत बुरे दौर से गुज़र रही थी। हर तरफ़ हार ही हार का सामना करना पड़ रहा था। साम्प्रदायिक पार्टी एक के बाद एक राज्यों पर भगवा फहराती जा रही थी, लेकिन राहुल गांधी ने हार नहीं मानी और लगे रहे अपनी और पार्टी की विचारधारा को समझाने में कि यह देश सबको साथ लेकर चलेगा न कि नफ़रतों की दीवार खड़ी करने से। आखिरकार राहुल गांधी की इसी सोच पर हिन्दी भाषी तीन राज्यों की जनता ने अपनी मोहर लगाई और कांग्रेस मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान जीतने में कामयाब रही। बस यहीं से साम्प्रदायिक पार्टी भाजपा के पतन की शुरूआत मानी जा रही है, क्योंकि पन्द्रह-पन्द्रह साल से इन राज्यों पर स्वयंभू भगवा पार्टी का राज था। हालाँकि कांग्रेस को 2014 में देश की अवाम ने सबसे कम सीटें दी थी, लेकिन राहुल गांधी ने उन्हीं कम सीटें के साथ सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभाई,
आमतौर पर देखा जाता है कि जब भी देश में कोई आतंकी घटना होती है तो विपक्ष सरकार की आलोचना करता है, जैसे पूर्व में होता था। मनमोहन सिंह सरकार के दौरान नरेन्द्र मोदी ख़ूब मज़ाक़ बनाया करते थे। ऐसी संवेदनशील स्थिति में भी मोदी ने देश के साथ खड़े होने के बजाय सरकार की आलोचना की थी, लेकिन राहुल गांधी ने सबसे अलग शुरूआत करने की पहल की है। यूपीए की चेयरमैन सोनिया गांधी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरीखे नेता सरकार के साथ खड़े हैं। जो आज सरकार में हैं वह जब विपक्ष में हुआ करती थीं तो आलोचनाओं के अलावा कुछ नहीं करती थी, लेकिन जो आज विपक्ष में हैं वह सरकार की आलोचनाएँ भी करती हैं और जब साथ खड़े होने की ज़रूरत होती है तो साथ भी खड़ी होती है। राहुल गांधी यह फ़र्क़ महसूस कराने में कामयाब रहे कि कांग्रेस और भाजपा में यह फ़र्क़ है। केन्द्र सरकार ने अपने कार्यकाल में पहली बार ऐसी घटना के बाद सर्वदलीय बैठक बुलाई जो मोदी के अंहकारी होने को साबित करता है, लेकिन राहुल गांधी के द्वारा लिए गए इस फ़ैसले की चारों ओर चर्चा है कि राहुल गांधी एक ज़िम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं, जिससे उन्होंने देश की अवाम का दिल जीत लिया है। इसे कहते हैं सियासत, जो सबके दिलो पर राज करें।
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