Self repair material
नई दिल्ली, 27 जुलाई, 2021: आज के युग में हमारा दैनिक जीवन विभिन्न उपकरणों पर इतना निर्भर हो चला है कि थोड़ी देर के लिए उनके खराब हो जाने पर भी अनेक परेशानियां खड़ी हो जाती हैं
भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) कोलकाता और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर (Indian Institute of Technology (IIT) Kharagpur) के शोधकर्ताओं ने दुनिया का एक ऐसा कठोरतम पदार्थ खोज निकाला है जो अपनी मरम्मत स्वयं कर लेने में सक्षम है। शोधकर्ताओं ने ऐसे पाईजोइलेक्ट्रिक मॉलिक्यूलर क्रिस्टल (piezoelectric molecular crystal) विकसित किये हैं जो बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के अपनी यांत्रिक क्षति को स्वयं ही ठीक करते हैं।
पाईजोइलेक्ट्रिक क्रिस्टल क्या है ?
पाईजोइलेक्ट्रिक क्रिस्टल पदार्थों का एक समूह है जो यांत्रिक प्रभाव से गुजरने पर विद्युत उत्पन्न करता है। पाईजोइलेक्ट्रिक मॉलिक्यूलर को बाइपाइराज़ोल ऑर्गेनिक क्रिस्टल भी कहा जाता है जो यांत्रिक टूटफूट के बाद मिली सेकंड में, खुद ही फिर से जुड़ जाते है।
अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता सी मल्ला रेड्डी, आईआईएसईआर बताते हैं हमारे द्वारा ढूंढे गए पदार्थ को उपयोग टीवी या मोबाइल फोन के स्क्रीन
इसके साथ ही अंतरिक्ष अभियानों में, चंद्रमा या मंगल पर लैंडिंग के समय क्षतिग्रस्त हो जाने की आशंका वाले उपकरणों में भी स्वयं मरम्मत की ये तकनीक उपयोगी सिद्ध हो सकती है। इस नये पदार्थ को हाई-एंड माइक्रो चिप, ऊंची परिशुद्धता वाले मैकेनिकल सेंसर, माइक्रो रोबोटिक्स में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। भविष्य में ऐसे पदार्थों को लेकर और शोध द्वारा स्मार्ट गैजेट्स भी विकसित हो सकते हैं जो खुद ही क्रैक और स्क्रेच को ठीक कर सकने में सक्षम होंगे।
इस अध्ययन के दौरान आईआईएसईआर कोलकाता के प्रोफेसर निर्माल्य घोष ने पाईजोइलेक्ट्रिक ऑर्गेनिक क्रिस्टल की उत्कृष्टता को जांचने और मापने के लिये विशेष रूप से तैयार अत्याधुनिक पोलराईजेशन माइक्रोस्कोपिक सिस्टम का उपयोग किया। आईआईटी खड़गपुर के प्रोफेसर भानु भूषण खटुआ और डॉ सुमंत करण ने यांत्रिक ऊर्जा उत्पन्न करने में सक्षम उपकरणों के निर्माण के लिए नए पदार्थ के प्रदर्शन का अध्ययन किया। अध्ययन के अनुसार
यह अध्ययन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) और विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) द्वारा वित्त-पोषित है। यह शोध हाल ही में शोध पत्रिका 'साइंस' में प्रकाशित किया गया है।
(इंडिया साइंस वायर)
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