पत्रकारिता क्षेत्र वह, दिखलाता है साँच.
कठिन घड़ी कितनी रहे लेता है सब बाँच..
सत्य खोज हित छानता पर्त-पर्त वो बात.
तब ही तो है आँकता सही ग़लत औकात..
बड़ी बात भी सूक्तिमय लघु को करे प्रधान.
भाष्य कला को पारखी, करे नजर प्रदान..
सत्य शोध हित छानता गली-गलीचे धूल. तब ही पाता शोथ वह, सच्चाई के फूल..
पग - पग पर चैलेंज हैं, लिए हथेली जान.
फिरता है बन बावला दे तब जन तह ज्ञान.
जैसी स्याही हो कलम, वैस ही दे रंग .
पत्रकारिता भाँति इस नियम न करती भंग.
डॉ.कमला माहेश्वरी 'कमल' बदायूँ (उप्र).
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