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नई दिल्ली, 18 जनवरी। “सुप्रीम कोर्ट कोई प्राइवेट संस्था नही है संवैधानिक संस्था है, जो समस्त भारतीयों की गाढ़ी टैक्स की कमाई से चलती है। माननीय सुप्रीम कोर्ट का कोई भी मसला जो जनतंत्र को प्रभावित करता हो निजी नही हो सकता। ये और भी तब गंभीर हो जाता है जब माननीय सुप्रीम कोर्ट भारतीय न्याय व्यवस्था में सर्वोच्च हो।“

यह कहना है सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ता मनोज चौधरी का।

मेल से भेजे एक वक्तव्य में मनोज चौधरी ने कहा कि

“सुप्रीम कोर्ट में फैंसले एक-दो एवं अधिक जज सुनवाई करते हैं एवं उनके फैंसले नजीर होते हैं। ऐसे में उन 4 जजों की सूझ-बूझ पर सवाल नही उठाए जा सकते ना ही प्रथम दृष्टया माननीय चीफ जस्टिस पर ही आम जन उंगली उठा सकता है। लेकिन ये तय है कि जनमानस को माननीय सुप्रीम कोर्ट में हो रही उठा पटक को जानने का अवश्य अधिकार है, क्योंकि आमजन ही सीधे तौर पर न्याय व्यवस्था के प्रभावित होने पर प्रभावित होता है।“

उन्होंने कहा कि

“चूंकि अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट का आंतरिक नही रहा अतः इस संबंध में माननीय चीफ जस्टिस साहब को आगे आकर देश को संबोधित करना चाहिए तब भी जब इस मसले को आपस में सुलझा लिया जाए ऐसे में सम्बंधित माननीय जजों को भी साथ बैठा कर संबोधित करना चाहिए । उसके बाद एक प्रेस वार्ता आयोजित कर पत्रकारों के जबाब दिए जाएं। ऐसा करने से मौजूदा प्रकरण पर विश्वास बहाली का रास्ता बनता है।“

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