अंतिम संस्कार शुचिता की राजनीति का
अंतिम संस्कार शुचिता की राजनीति का

शुचिता की राजनीति - देश को बदलने चले थे, खुद बदल गए
Funeral Of purity politics
नई दिल्ली। जो लोगों को बदलने चले थे, देश को बदलने चले थे, राजनीति को बदलने चले थे वे आज खुद बदल गए। आज सही मायनों में अरविंद केजरीवाल नेता बन गए। अब वे लालू, दिग्विजय, पासवान, मुलायम और मोदी जैसे नेताओं की कतार में शामिल हो गए। हम लोग अस्सी के दशक में अपने विश्वविद्यालय की राजनीति के दौर में छात्र नेता चुने जाने के लिए जिस तरह की निर्णायक बैठके करते थे, उसका इंतजाम करते थे वह सब आज आप की बैठक में दिखा। तब हम लोग परम्परागत राजनीति को बदलने का नारा नहीं देते थे और वे सब हथकंडे इस्तेमाल करते थे जो शक्ति प्रदर्शन के लिए जरूरी होता था। पर ये तो साफ सुथरे भारत, भ्रष्टाचार मुक्त भारत और स्वराज की बात कर रहे थे। ये तो शुचिता की बात कर रहे थे। किताब नकल की गांधी की तो नारा चुराया जयप्रकाश का। एजेंडा दिखाया समाजवाद का और विलेन बनाया मौजूदा सभी नेताओं को। आज तो वे वही लाठी वाली, गाली वाली, हुडदंग वाली राजनीति में सने दिखाई पड़े। अब बेहयाई से ये आनंद कुमार, योगेंद्र यादव, अजित झा से लेकर प्रशांत भूषण पर कोई भी आरोप लगाएं, कोई फर्क नहीं पड़ता।
आम आदमी पार्टी की शुचिता की राजनीति का आज अंतिम संसार कर दिया गया। और यह काम किया आम आदमी के नेता अरविंद केजरीवाल ने जो आज खास भी बन गए। वे अब सरकार चलाएं और बाउंसर लेकर राजनीति करें कोई फर्क नहीं पड़ता। पिछले दो महीने से जो-जो कहा जा रहा था वह एक एक कर सच साबित होता गया। पहले पीएसी से निकाला गया फिर एनसी से भी। एक बार भी केजरीवाल ने मोहल्ले के किसी आदमी से राय नहीं ली जो हर काम राय लेकर करते थे। वह लोकतंत्र और स्वराज की बात करते थे, उनका स्वराज आज सामने आ गया। कल उनकी भाषा सामने आई थी, आज उनकी राजनीति भी सामने आ गई। आज पार्टी का विभाजन हो गया। केजरीवाल हरियाणा के अपने पुराने लठैतों के साथ पार्टी का झंडा डंडा ले गए।
आम आदमी पार्टी की छननी में राजनीति पूरी तरह छन चुकी है। एनजीओ वाली राजनीति पाक साफ होकर निकल आई है, जिसको अरविंद केजरीवाल का अब कुशल नेतृत्व मिलेगा तो समाजवादी फिर सड़क पर हैं।
पर अब मंथन का समय इन समाजवादियों का है। कल तक इनके प्रमुख नेता राजनैतिक विचारधारा को अप्रासंगिक बता रहे थे, अब जरा सोचें इनके पास बचा क्या है। अब इनकी पहचान क्या है। बिना किसी विचारधारा की राजनीति, कभी लाठी गोली से चलती है तो कभी बाउंसर से।
अन्ना आंदोलन के दौर में इस बिना विचार की राजनीति के खिलाफ खूब लिखा पर बाद में लगा कि कुछ बदलेगा।
बदला भी जब अरविंद केजरीवाल ने किसान और मजदूर की बात की, अन्ना ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ अभियान छेड़ा। पर यह सब सिर्फ रणनीति रही। केजरीवाल ने अपना रास्ता अपनी राजनीति आज सार्वजनिक कर दी तो अन्ना हजारे बिना किसी से राय लिए भूमि अध्यादेश के खिलाफ इकतीस मार्च से शुरू होने वाली यात्रा स्थगित कर चुके हैं। यह विचार विहीन राजनीति का चरम है जो कभी टोपी से चली तो कभी टीशर्ट से तो कभी तिरंगे से। अब आप से निकाले गए लोगों की बारी है। वे जैसा कद चाहते थे मीडिया बना चुका है, अब वे जो राजनीति चाहते हैं, उससे एक बड़ी लकीर खींच कर दिखाए। राजनीति में कोई विराम नहीं होता है वह चलती आई है नए नए प्रयोगों के साथ तो फिर चलेगी।
अंबरीश कुमार
जनादेश
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