क्या अखिलेश कांग्रेस से मध्य प्रदेश में अपने अपमान का बदला ले रहे हैं?

Has UP Congress crawled in front of Akhilesh?

अमलेन्दु उपाध्याय

समाजवादी पार्टी (सपा), कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के गठबंधन में सपा की अत्यधिक तेज़ी या तो उसके उत्साह को दिखाती है या उसके संशय को। दोनों ही स्थितियाँ स्वाभाविक तो कतई नहीं कही जा सकती हैं। मसलन, ये कैसे हो सकता है कि जब सपा और कांग्रेस के बीच सीटों पर बातचीत चल ही रही है तब अपनी तरफ से अखिलेश यादव ने लखनऊ सीट से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया।

अब अखिलेश यादव ने ट्वीट कर दिया कि

“कांग्रेस के साथ 11 मज़बूत सीटों से हमारे सौहार्दपूर्ण गठबंधन की अच्छी शुरुआत हो रही है… ये सिलसिला जीत के समीकरण के साथ और भी आगे बढ़ेगा।

‘इंडिया’ की टीम और ‘पीडीए’ की रणनीति इतिहास बदल देगी।”

जबकि ‘इंडिया’ में कांग्रेस और सपा के बीच किसी तालमेल की सूचना अभी तक नहीं है।

यह क़दम न सिर्फ़ गठबंधन में अखिलेश यादव के बड़े भाई के रूप में बने रहने की उत्सुकता दिखाती है, बल्कि इससे यह भी लगता है कि वो हाल में मध्य प्रदेश में किए अपने प्रयोग को यहाँ भी दोहराना चाहते हैं, जब उन्होंने गठबंधन की बातचीत के बीच में ही 7 सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिये थे। जिसके बाद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने गठबंधन की किसी भी संभावना को न सिर्फ़ खत्म कर दिया बल्कि उनमें जुबानी जंग इतनी ज़्यादा हो गयी कि चुनाव परिणाम आने के बाद भी हफ़्तों तक जारी रही।

तो क्या यूपी में कांग्रेस को कमज़ोर पा कर अखिलेश मध्य प्रदेश का बदला ले रहे हैं, जैसा कि उन्होंने उस समय कहा भी था। और क्या इस पूरी प्रक्रिया में कांग्रेस की तरफ से सीट बंटवारे के लिए नियुक्त किए गए लोगों की अपनी कमज़ोरी या उनका इस काम के लिए उपयुक्त न हो पाना भी अखिलेश के पक्ष में है?

लखनऊ सीट पर सपा कभी नहीं जीती है। यहाँ तक कि अपने चरम पर भी वह कभी अटल बिहारी बाजपेयी या राजनाथ सिंह को टक्कर नहीं दे पायी थी। फ़िर भी आजमगढ़, रामपुर, मुरादाबाद या फ़िरोज़ाबाद जैसी मजबूत सीट के बजाए अखिलेश यादव लखनऊ से अपने पहले प्रत्याशी के बतौर रवि दास मेहरोत्रा का नाम घोषित करके क्या वो कांग्रेस को अपने सामने बौना साबित करना चाहते हैं? या क्या वो बिहार और बंगाल में कांग्रेस की उलझन का फ़ायदा उठाकर कांग्रेस का सर दर्द और बढ़ाना चाहते हैं?

सबसे बड़ा सवाल कि आख़िर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय या सीट बंटवारे के लिए नामित पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद या मुकुल वास्निक या नए प्रभारी महासचिव अविनाश पांडेय की तरफ से इस पर कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं आ रही है? अब सपा के सहयोग से अपनी बेटी आराधना मिश्रा को विधायक बनाने वाले प्रमोद तिवारी से तो किसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं की जा सकती। क्या कांग्रेस ने पहले ही सपा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है?

क्या इससे यह संदेश नहीं जाएगा कि अखिलेश के सामने यूपी कांग्रेस झुकने के बजाए रेंगने की मुद्रा में आ गयी है?

क्या इस गिरे मनोबल के साथ यह गठबंधन भाजपा को चुनौती दे पाएगा? सबसे बड़ी बात कि क्या बसपा भी गठबंधन में होती तो अखिलेश का यही रवैया रहता?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)