अगुआ का अगवा
अगुआ का अगवा
जुगनू शारदेय
बड़ा अजीब और मार्मिक नजारा था । घोंघा प्रसाद लालू प्रसाद को संभाल रहे थे । रोते रोते लालू प्रसाद की आंख से भ्रष्टाचार के आंसू बह रहे थे ।
कुत्ता घसीटी फोंफा पार्टी को देख कर वह दहाड़ मार कर रोने लगते थे । कभी कभी तो लगता था कि वह रो कम रहे हैं , चैन की सांस ज्यादा ले रहे हैं ।सिद्दीकी ( अब्दुल बारी – नेता प्रतिपक्ष ,बिहार विधान सभा ) मुस्कराते हुए भी बहुत गंभीर थे । कुछ कुछ ऐसा ही दृश्य मुख्य मंत्री निवास में भी था । वहां वसंत लाल मौजूद थे और साथ में बिना उर्जा के उर्जावान विजेंद्र प्रसाद यादव भी । आरसीपी सिंह खड़े खड़े किसी तिकड़म के बारे में सोच रहे थे । चंचल कुमार ने एक कागज मुख्य मंत्री को पढ़ने के लिए दे दिया । कागज पढ़ कर मुख्य मंत्री की मुद्रा सवर्ण आयोग जैसी हो गई थी ।
अनेक दरबारी , अमूल प्रसाद , मक्खन लाल , चम्मच नारायण दोनों समूहों में मौजूद थे । मसला बड़ा गंभीर था । इतना बड़ा अपहरण बिहार में अब तक नहीं
हुआ था । यह भी कह सकते हैं कि यह व्यक्ति का नहीं बिहार का अपहरण था । आप तो जानते ही हैं कि घोंघा प्रसाद और वसंत लाल लालू जी और नीतीश जी दोनों के कभी मित्र हुआ करते थे । आज कल दरबारी कहलाते हैं । दोनों शिविरों में पाए जाते हैं । ऐसे कुछ लोग राज्य सभा में भी पाए जाते हैं । राज्य सभा वाले विदेश के दौरे पर थे । उनका प्रतिनिधित्व नीतीश जी के शिविर में रामचंद्र प्रसाद सिंह कर रहे थे और लालू जी शिविर में रामकृपाल यादव ।
जैसा कि आप जानते हैं कि लालू जी किसी की राय नहीं लेते , बल्कि राय मांगने की जब बात करते हैं तो अपनी राय थोप देते हेँ । फिर भी उन्होने घोंघा प्रसाद से राय मांगी की , देखिए इस मामले में नितिसवा का हाथ है , बिना उसकी मर्जी के कैसे कोई हमारे अगुआ को अगवा कर सकता है । यह सही समय है कि उखाड़ फेंके नीतीश की सरकार को जहां सुशीसलवा जो चाहे वह कर लेता है । बताइए घोंघा भाई आपकी राय क्या है । घोँघा जी ने लोहा सिंह का नाटक पढ़ा भी था और देखा भी था सो उसी की प्रेरणा से बोले , जे बा से बीच के बगल वाला काम करे के चाहीं लालू भाई ! लालू जी तब तक सो चुके थे और सिद्दिकी जी अपनी किस्मत पर रो रहे थे ।
उधर मुख्य मंत्री के शिविर में संचिका मंथन और बैठक योग से अलग संकट था कि अगुआ का अगवा राजनीतिक विषय है या प्रशासनिक विषय है । यह सबको पता था कि अगुआ का अगवा सुशील कुमार मोदी के नेतृत्व में हुआ है । पर मुख्य मंत्री को इसकी लिखित रिपोर्ट नहीं मिली थी । हमारे मुख्य मंत्री का फंडा बड़ा साफ है कि अगर लिखित में नहीं है तो यह अगुआ का अगवा नहीं हो सकता ।
हो सकता है अगुवा अपने मन से अगवा हो गए हों । आस पास देखा तो सिर्फ वसंत लाल ही पद हीन पुराने चमचा जैसे दिखे । आम तौर पर नीतीश जी भी किसी की
राय नहीं लेते । संचिका मंथन और बैठक योग से जो राय बनती है , उसे अपनी राय बना कर पेश कर देते हैं । वैसे भी राय देने का अधिकार सिर्फ अधिकारियों का होता है । अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ था कि यह प्रशासनिक विषय है , इसलिए राजनीतिक विषय मान कर भी उन्होने रामचंद्र प्रसाद सिंह से राय नहीं ली क्योंकि खतरा था कि वह प्रशासनिक सलाह दे देते । सो उन्होने वसंत लाल से पूछा कि अगुआ के अगवा मामले में क्या करना चाहिए ।
वसंत लाल जानते थे कि नीतीश जी को हर विषय को प्रशासनिक बनाना अच्छा लगता था । इसलिए कर्पूरी जी से प्रेरणा ले कर वसंत लाल जी ने राय दी , अगर
अगुआ का अगवा हुआ है तो यह हमेशा एक प्रशासनिक मामला है , मगर अगुआ का आचरण बताता है कि वह स्वेच्छा से भी अपना अगवा हो जाने देते थे । लेकिन
अगवा होना एक गंभीर मामला है । किंतु इस अगवापन में भी विरोधी की पराजय है , परंतु यह अनिवार्य है कि पता लगा लिया जाए कि अगुआ का अगवा हुआ है
य़ा नहीं ।
अब बिहार की सड़कों पर एक तरफ लालू प्रसाद और दूसरी तरफ नीतीश कुमार अगुआ कर्पूरी ठाकुर की तलाश कर रहे हैं । उन पर भारतीय जनता पार्टी ने कब्जा
कर लिया है । भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि वह हमेशा से अतिपिछड़ों की पार्टी रही है । और कर्पूरी जी हमेशा से संघ परिवार के आदमी रहे हैं ।


