अच्छे दिन-बच्चों के कार्यक्रमों के लिए बजट में भारी कटौती
अच्छे दिन-बच्चों के कार्यक्रमों के लिए बजट में भारी कटौती
नई दिल्ली, 6 मई। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के बजट में भारी कटौती की गयी है।
वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा था कि इस मंत्रालय के लिए इस साल 1500 करोड़ रूपये की अतिरिक्त व्यवस्था की गयी है। अधिकारियों ने समझा था कि 2014-15 में जो केंद्रीय बजट में 21000 करोड़ का प्रावधान महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के लिए किया गया था, यह भाषण वाला धन उसके अतिरिक्त किया गया है, लेकिन ऐसा नहीं है। भाषण के बाद जब कागज़ देखे गए तब पता चला कि 2015-16 में मूल प्रावधान की रक़म को ही 10287 करोड़ रूपये कर दिया गया है। तब जाकर समझ में आया मूल प्रावधान की रक़म को आधा पर दिया गया है और मंत्रालय के अधिकारियों के पास वित्त मंत्री के बजट भाषण के अलावा ऐसा कुछ भी नहीं है जिसको लेकर वे आगे बढ़ सकें।
जब राजीव गांधी 1985 में भारी बहुमत से लोकसभा का चुनाव जीतकर आये थे तो उनके साथ काम करने वालों ने बहुत सारे नए प्रयोग किये थे। उन्हीं प्रयोगों में से एक था शिक्षा मंत्रालय को मानव संसाधन विकास मंत्रालय नाम देना। इसी मंत्रालय में एक विभाग बनाया गया था - महिला और बाल विकास विभाग। करीब बीस साल बाद 2006 में तरक्की दे दी गयी और इस विभाग को मंत्रालय बना दिया गया। इस मंत्रालय के पास आबादी के सत्तर प्रतिशत लोगों की ज़रूरतों को संबोधित करने का ज़िम्मा है। इसका उद्देश्य महिलाओं का सशक्तिकरण है जिसके बाद वे आत्मसमान और गर्व से जीवन यापन कर सकें। इसी मंत्रालय के जिम्मे बच्चों को माता पिता की गरीबी के बंधन के बावजूद अच्छे इंसान के रूप में विकसित होने के अवसर उपलब्ध करवाने का ज़िम्मा भी है।
लेकिन मौजूदा सरकार ऐसा नहीं समझती। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से सम्बद्ध संसद की स्थाई समिति ने पता लगाया है कि सरकार का रुख महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रति बिलकुल लापरवाही का है। अपनी 268वीं रिपोर्ट में समिति ने सारी बात का खुलासा किया है। कमेटी को आश्चर्य है कि बच्चों और महिलाओं के कल्याण की योजनाओं में बजट प्रावधानों की भारी कमी की गयी है। वित्त मंत्री ने लोकसभा में बजट भाषण के वक़्त कहा था कि 1500 करोड़ की अतिरिक्त व्यवस्था की गई है लेकिन मंत्रालय के अधिकारियों को वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने बता दिया है कि यह रक़म आधी कर दी गयी है। तर्क यह दिया जा रहा है कि 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद राज्यों के पास पैसा आ जाएगा और वे सब संभाल लेगें। हालांकि अभी यह पता नहीं है कि यह सब कब तक होगा लेकिन सबको मालूम है कि केंद्रीय योजनाओं के लिए राज्य सरकारें किस तरह से धन का इंतज़ाम करती हैं।
सरकार के इस रुख के चलते महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अधिकारियों की समझ में नहीं आ रहा है कि सरकार के अति महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को किस तरह से चलाया जाए क्योंकि बजट के आधा हो जाने के बाद तो बहुत मुश्किल हो जायेगी। यानी आँगनवाड़ी, मिड डे मील जैसे कार्यक्रमों के सामने भी मुश्किल पेश आने वाली है। अधिकारी सन्नाटे में हैं कि बजट भाषण में प्रावधान बढ़ाने की बात करके इतनी भारी कटौती का क्या औचित्य है।
शेष नारायण सिंह


