अच्छे दिन - ब्रांड मोदी’ इसी अफ़वाह का कुलीन नाम है
अच्छे दिन - ब्रांड मोदी’ इसी अफ़वाह का कुलीन नाम है
‘ अच्छे दिन ’ बनाम चौथी आज़ादी का एक साल
देश के इतिहास को हिंदू श्रेष्ठता की अफ़वाह बना देने का बीड़ा उठाया है सरकार ने
‘ अच्छे दिन ’ आए हुए एक साल हो गया! अखबार में जब मोदी जी की घोषणा पढ़ी कि अब देश के बुरे दिन लद गए तो मन में शंका हुई। भई हमारा हाजमा तो बुरे दिनों पर सेट है। इस तरह अचानक अगर बुरे दिन लद गए, तो अपना हाजमा खराब हो सकता है। प्रधानमंत्री जी को हमारे हाजमे की फ़िक्र करनी चाहिए। अखबार में प्रधानमंत्री जी का देश के नाम संदेश भी है। कहा है कि उनकी सरकार ‘अंत्योदय’ के सिद्धांत पर चल रही है। हमें इस पर भरोसा है। कुछ साल पहले अडानी जी को कौन जानता था भला! आज दुनिया जानती है। यही तो है ‘अंत्योदय’। आपका भी नंबर आएगा, भरोसा रखिए।
‘ अच्छे दिन ’ के एक साल का जश्न धूमधाम से मनाया जा रहा है। अखबारों के पहले से लेकर आखिरी पन्ने तक यही एक साल छाया हुआ है। लू लगने से आठ सौ से ज्यादा लोग देश में मर गए, यह कहीं पीछे है। लू लगने से मरना भी भला कोई मरना है कि पहले पन्ने पर रहे! यह तो शर्मनाक है। जब देश गौरव का एक साल मना रहा हो तो ऐसी बाते नहीं करनी चाहिए। हमने तो मान लिया है। यह कोई छोटा-मोटा क्षण नहीं है। मै इसे ‘चौथी आज़ादी’ कहूंगा। पहली आज़ादी 1947 वाली थी – अंग्रेजों से। हालांकि उस समय कम्युनिस्टों ने उसे ‘झूठी आज़ादी’ कहा था। फ़ैज़ ने तो कविता ही लिख दी ‘ये दाग़-दाग़ उजाला’। वे मेहनतकशों का राज चाहते थे लेकिन हुआ कुछ और। दूसरी आज़ादी जेपी लाए थे कांग्रेस से। तीसरी आज़ादी अण्णा और केजरी ले आए भ्रष्टाचार से। और अब ‘चौथी आज़ादी’ - मोदी जी वाली आज़ादी। शर्म से आज़ादी। छ्प्पन इंच सीना फ़ुलाने की आज़ादी। गोमांस खाने वालों को पाकिस्तान भेजने की आज़ादी। ‘घर-वापसी’ की आज़ादी।
यह मोदी सरकार की ही नहीं इक्कीसवीं सदी में हमारे देश की सबसे बड़ी उपलब्धि है। ‘गिनीज़ बुक’ में हमारा नाम दर्ज होना चाहिए कि हम इतने कम समय में चार बार आज़ाद हुए। औसतन हर पंद्रह साल में एक बार आज़ादी।
‘ अच्छे दिन ’ वाली मोदी सरकार की इस एक साल की दूसरी बड़ी उपलब्धि क्या है? इतिहासकार हमें बताते हैं कि अक्सर बड़ी ऐतिहासिक घटनाओं के विकास की प्रक्रिया में जटिल सामाजिक कारकों के अलावा एक खास भूमिका होती है अफ़वाहों की। आज के इस ऐतिहासिक क्षण में मोदी सरकार की दूसरी बड़ी उपलब्धि है अफ़वाहें। इसमें भी प्रधानमंत्री जी का व्यक्तित्व सबसे बड़ी अफ़वाह है – ‘ब्रांड मोदी’ इसी अफ़वाह का कुलीन नाम है।
पहले अफ़वाहें मुंह-ज़बानी फैलती थी। इक्कीसवीं सदी में इसके लिए इंटरनेट है। फ़ेसबुक-वाट्सऐप की अफ़वाहें। ये अफ़वाहें प्रधानमंत्री जी की कुछ सुपरमैन जैसी छवि बनाते हैं। एक मिसाल देखिए – “जो व्यक्ति/ पीएम बनने से पहले/ यदि अमरीका को झुका सकता है,/ भूखे नंगे देश / पाकिस्तान में / हड़कंप मचा सकता है,/ चीन जैसे गद्दार देश के/ अखबारों की / सुर्खियों में आ सकता है / तो भाई / वह भारत को विश्व गुरु / बना सकता है / यह बात पक्की है! /- देश की जरुरत है मोदी (अगर देश के लिए कुछ करना है तो यह सन्देश तीन लोगों को भेजना है)।” इंटरनेट इस तरह की अफ़वाहों से पटा पड़ा है।
यह मुल्क हालात का ऐसा मारा है कि किसी भी अफ़वाह पर यकीन करने को तैयार है। जब हम ग़ुलाम थे तो कुछ लोगों ने अफ़वाह फैला दी कि हम ‘विश्वगुरु’ हैं। तब से आज तक इसी उम्मीद में हैं कि कब हमें ‘विश्वगुरु’ का सर्टिफिकेट मिलेगा। पिछली सरकार में घोटालों से क्षुब्ध थे तो ‘ईमानदारी’ की अफ़वाह उड़ा दी गई और हम उसमें बहते रहें। इसके बाद फैलाई गई ‘अच्छे दिनों’ की अफ़वाह। कोई हमें चेताए कि पिछली बार ‘गरीबी हटाओ’ की अफ़वाह फैलाने वालों ने आपातकाल (एमरजेन्सी) भी लागू किया था।
योजनाओं के नाम पर सरकार पूरे साल अफ़वाहें परोसती रही। ‘स्वच्छ भारत’ की अफ़वाह उड़ाई गई और प्रधानमंत्री समेत पूरा केंद्रीय मंत्रीमंडल नई झाड़ू और नए कचरे के साथ सफ़ाई में जुट गया। झाड़ुओं के साथ गर्व से फ़ोटो खिंचवाए गएं। देश साफ हो गया। ‘जन धन योजना’ से ‘मेक इन इंडिया’ तक सरकार अफ़वाहों के बूते ही चल रही है। किसानों की जमीने छीनने के लिए सरकार अध्यादेश पर अध्यादेश लाती है और अफ़वाह फैलाई जाती है कि ये किसानों के हित में है।
अफ़वाहों का दूसरा इलाका है इतिहास। प्रधानमंत्री जी की पार्टी और उसके ‘पितृ संगठन’ (यानी संघ परिवार) का प्रिय विषय। गए एक साल में इतिहास के नाम पर अफ़वाहों का अंबार लगा दिया गया। प्राचीन भारत में ‘प्लास्टिक सर्जरी’ का विज्ञान खुद प्रधानमंत्री जी ने खोज निकाला। इस मामले में पूरा मंत्रिमंडल ही ‘एक्सपर्ट’ है। कभी विदेश मंत्री कहती हैं भगवत गीता को ‘राष्ट्रीय ग्रंथ’ का दर्जा दिया जाए, कभी गृहमंत्री कहते हैं हम विदेशियों का लिखा इतिहास पढ़ रहे हैं। देश के इतिहास को हिंदू श्रेष्ठता की अफ़वाह बना देने का बीड़ा उठाया है सरकार ने। इस बीच मानव संसाधन विकास मंत्री देश के लिए नई शिक्षा नीति बनवा रही हैं। हमें मालूम है यह शिक्षा नीति नहीं, अफ़वाहों की नीति होगी।
बाकी इस एक साल के संदर्भ में भुखमरी, कुपोषण, मजदूरों की बदहाली, किसानों की आत्महत्याएं, मंहगाई, बेरोज़गारी, मलेरिया-हैजा से होने वाली मौंतों, गरीबों-दलितों-आदिवासियों-महिलाओं के खिलाफ़ हुई हिंसा आदि-आदि की बात करना बेमानी है। ये तो इस देश की पुरानी समस्याएं हैं। इनसे ‘अच्छे दिनों’ का मजा किरकिरा नहीं होने दिया जा सकता है। प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में महाशक्ति बनने को आतुर देश में ये सब सिर्फ पिछड़ेपन की अफ़वाहें हैं।
लोकेश मालती प्रकाश


