अड़ गये जोशी तो बिगड़ जायेगा भाजपा के दिग्गजों का गणित
अड़ गये जोशी तो बिगड़ जायेगा भाजपा के दिग्गजों का गणित
जोशी ने यह तो बता ही दिया कि वे आडवाणी नहीं है
अंबरीश कुमार
वाराणसी, 7 मार्च। बनारस में बनारसी अंदाज में राजनीति हो रही है। भाजपा यहाँ से नरेंद्र मोदी को मैदान में उतार कर इस बार के चुनाव में अपने पुराने नारे अयोध्या, मथुरा, काशी के जरिए अघोषित हिन्दुत्व को तो उभारना ही चाहती थी साथ ही पढ़े लिखे शहरी समाज को अपने विकास का एजंडा दिखाना चाहती थी। हालाँकि बनारस और विकास दो विरोधाभाषी तथ्य नजर आते हैं। भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी इस 'विकसित' नगरी का प्रतिनिधित्व सांसद में करते हैं। वे अड़ गये हैं कि चुनाव यही से लड़ेंगे और पांच साल लापता रहने के बाद नए पोस्टर से बनारस में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे है। पोस्टर पर लिखा है 'बोले काशी विश्वनाथ, डॉ. जोशी का देंगे साथ।' जवाब में नरेद्र मोदी के भक्त कहें या भाजपा में जोशी विरोधी खेमा भी सड़क पर उतर आया है। उनका नारा है 'काशी नगरी करे पुकार-नरेंद्र मोदी अबकी बार।'
अब संघ परिवार की आठ मार्च की बैठक में फैसला होगा। जोशी ने यह तो बता ही दिया है कि वे आडवाणी नहीं हैं। अंत तक भिड़े रहेंगे। अगर वे जमे रहे तो राजनाथ सिंह का राजनैतिक समीकरण बिगड़ जायेगा।
स्टेशन से उतरते ही बाबा विश्वनाथ की इस नगरी का चाल चरित्र और चेहरा सामने आ जाता है। रांड सांड सीढी सन्यासी.... वाली पुरानी कहावत आज भी इस शहर पर सही उतरती है। इस कहावत का हर किरदार हर जगह मौजूद है। जिस जीप से शहर के भीड़-भाड़ वाले इलाके से गुजर रहा था उसका बुजुर्ग ड्राइवर कभी भी पीटा जा सकता है, यह आशंका उसके गाड़ी चलने के अंदाज से महसूस हो रही थी। वह ऑटो, रिक्शा, ठेला सबको ठेलता हुआ चल रहा था। रास्ते में शी से लेकर मोदी तक पोस्टरों से झांक रहे थे।
पत्रकार धनंजय सिंह की इसपर टिप्पणी थी- इस शहर का सामान्य घोष है हर हर महादेव, कोई भी देसी विदेशी मेहमान आये लोग स्वागत में हर हर महादेव का नारा जरुर लगाते हैं। पान बनारस की पहचान है, सड़क चलते आपको सावधान रहना पड़ता है कि कब कौन किधर से पच्च से पान थूक दे और आप भी लाल हो जाएँ। हालाँकि शहर के लोगों को इसकी आदत पड़ चुकी है और वो किसी की बॉडी लैंग्वेज से ही अंदाजा लगा लेते हैं कि अगला थूकने वाला है और उसके बर्थ राइट का ख्याल रखते हुये खुद सावधान हो जाते हैं।
पिछले चुनाव के वक्त बेनियाबाग में भाजपा की रैली थी तो भाजपा नेता राजनाथ सिंह ने पान की महिमा पर भी बोला और कहा था कि अटल जी जब भी इधर आते थे तो पान की फरमाईश जरूर करते थे। जब मुरली मनोहर जोशी की बारी आई तब उन्होंने कहा था कि पान तो राजनाथ सिंह को भी पसंद है लेकिन ये पान खाकर सरकार चलाते रहे पर अगर भांग खा कर सरकार चलाये होते तो हालत कुछ और होती।
अब मंच से ऐसे भाषण को भी बनारस वालों ने हवा में उड़ा दिया लेकिन जोशी जी के संकेतों को पकड़ने की कोशिश जरूर की। कुछ लोगों का मानना है कि अच्छी सरकार चलाने के लिये भांग खाना बहुत जरूरी है क्योंकि भांग सीधे दिमाग पर असर करती है।
इस टिप्पणी से बनारसी अंदाज को कुछ हद तक समझा जा सकता है। पर यह बहुत आसान नहीं है। बनारस के एक साथी का कहना था-जब तक आप इस शहर में कुछ समय ना गुजारें, चौराहे पर सुबह का नाश्ता करने से लेकर शाम को जब तक द्रव्य का आचमन न करें, बनारसी अंदाज को समझ नहीं सकते हैं। ऐसे शहर में जिसकी गलियाँ सीवेज के पानी में डूबी हों। सड़क, अगर सही सलामत मिल जाये तो उसपर कुछ समय किसी भी वाहन से चल ना ले इस प्राचीन नगरी के विकास की यात्रा को समझ नहीं सकते। जिन दो नदियों वरुणा और असी के नाम यह नगर है उसमे एक नदी लुप्त होती जा रही है। बिजली, पानी और नाला-नाली सब भगवान् भरोसे है।
इसी शहर से भाजपा विकास के प्रतीक नरेंद्र मोदी को पार्टी चुनाव लड़ाना चाहती है। पर जोशी इसके लिये तैयार नहीं हैं। जोशी वाराणसी से लादे गये तो मोदी फिर लखनऊ और राजनाथ पुरानी सीट पर वापस होंगे। पर अभी संघ की बैठक पर लोगों की नजर है। भाजपा का अंतिम राजनैतिक निर्णय 'सांस्कृतिक संगठन' राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ करता है, यह जरुर ध्यान रखना चाहिए। और वे बंगलूर में बैठ चुके हैं। हालाँकि आरएसएस के दिग्गज नेता मनमोहन वैद्य ने कहा है कि इस बैठक में कोई भी राजनीतिक निर्णय नहीं लिया जायेगा। जनादेश न्यूज़ नेटवर्क


