रणधीर सिंह सुमन
एक एतिहासिक फैसले में साढ़े चार साल पुराने माछिल फर्जी एनकाउंटर केस (machil fake encounter case) में दोषी पाए गए कर्नल समेत सात सैन्यकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों से मीडिया में आई रिपोर्ट्स में बताया गया है कि सैन्य सेवा से बर्खास्त किए जा चुके इन सैनिकों को सेवा से जुड़ा कोई लाभ भी नहीं मिलेगा।

30 अप्रैल 2010 को हुई इस फर्जी मुठभेड़ के मामले में सेना की उत्तरी कमान ने पिछले साल ही एक कर्नल और एक मेजर समेत सात सैन्यकर्मियों को दोषी पाते हुए उनके खिलाफ कोर्ट मार्शल का फैसला किया था। माछिल फर्जी मुठभेड़ मामले के बाद कश्मीर घाटी में दो माह तक आंदोलन चला था जिसमें 123 लोगों की जान जाने की ख़बरें आई थीं। उस समय सेना ने दावा किया था कि उसने माछिल सेक्टर में तीन घुसपैठियों को मार गिराया गया है। मृतकों के रिश्तेदारों की ओर से की गई शिकायत के बाद पुलिस ने प्रादेशिक सेना के एक जवान और दो अन्य को गिरफ्तार किया था।

अपनी जान जोखिम में डालकर कर्त्तव्यनिष्ठा की पराकाष्ठा का परिचय देते हुए अदम्य शौर्य व साहस का प्रदर्शन करते हुए आतंकवादियों द्वारा की जा रही गोलाबारी का मुंहतोड़ जवाब देते हुए तीन आतंकवादियों को मार गिराया गया तथा दो आतंकवादी भागने में कामयाब रहे। बड़ी मात्रा में गोला बारूद हथियार व विस्फोटक बरामद जैसी खबरें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व प्रिंट मीडिया पर दिखाई देती हैं। इस तरह की घटनाओ में 95 % घटनाएं लोगों को घरों से कई-कई महीने पहले पकड़ कर अघोषित जेलों में रखकर प्रताड़ित करने के बाद पुरस्कार, सम्मान, इनाम, आउट ऑफ़ टर्न प्रमोशन, साहस और शौर्य का बखान करने जैसे शब्दों के लिए बराबर हत्याएं की जाती रही हैं।

सेना के मुठभेड़ों की जांच कराना बेहद कठिन कार्य है वहीँ पूरे देश में पुलिस, स्पेशल सेल, एस टी एफ़ तथा ए टी एस जैसे सरकारी संगठन आये दिन मुठभेड़ों के नाम पर फर्जी मुठभेड़ करते रहते हैं तथा बेगुनाह लोगों को गंभीर अपराधों में निरुद्ध करने का काम पुरस्कार, सम्मान, इनाम , आउट ऑफ़ टर्न प्रमोशन, साहस और शौर्य का बखान करने जैसे शब्दों के लिए करते रहते हैं जिसकी सुनवाई आसानी से होना संभव नहीं है।

उत्तर प्रदेश के कचहरी सीरियल बम विस्फोट कांड के आरोपी तारिक कासमी व मृतक खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी व आर डी एक्स, डेटोनेटर की बरामदगी की जांच इन्क्वारी एक्ट तहत आर डी निमेष कमीशन ने किया तो पाया कि गिरफ्तारी व बरामदगी दोनों संदिग्ध हैं उसके बावजूद भी तारिक कासमी व अन्य सात वर्षों से लखनऊ जेल की स्पेशल सेल में बंद हैं।