राम पुनियानी
भाजपा, पाकिस्तान पर शाब्दिक हमले तभी करती है जब वह सत्ता में नहीं होती।
जब से भारत का बंटवारा हुआ है, तब से शायद ही कभी भारत और पाकिस्तान के आपसी रिश्ते मधुर रहे हों। किसी न किसी मुद्दे को लेकर, हमारे पड़ोसी से हमारे रिश्तों में कड़वाहट घुली ही रहती है। यहां तक कि आमजन, पाकिस्तान को हमारे ‘शत्रु’ के रूप में देखते हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथग्रहण समारोह में यद्यपि सभी सार्क देशों के प्रतिनिधि पहुंचे थे तथापि मीडिया और जनता का सबसे अधिक ध्यान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ पर केन्द्रित था। मोदी ने सभी सार्क देशों के प्रमुखों को अपने शपथग्रहण समारोह (16 मई 2014) में आमंत्रित किया था। यह समारोह बहुत शान-ओ-शौकत के साथ सम्पन्न हुआ।
नवाज़ शरीफ को भारत का निमंत्रण स्वीकार करने में काफी परेशानियां आईं। उनके परिवार, जिसमें उनकी पुत्री शामिल हैं, ने ट्वीट कर कहा कि उन्हें यह निमंत्रण स्वीकार करना चाहिए। उनकी पुत्री का कहना था कि कोई कारण नहीं कि भारत और पाकिस्तान, उत्तरी और दक्षिणी कोरिया की तरह हमेशा एक-दूसरे के प्रति बैरभाव पाले रहें। क्या कारण है कि इन दोनों देशों के बीच उस तरह के मधुर संबंध नहीं रह सकते जैसे कि यूरोपियन यूनियन के देशों के हैं। शरीफ की पुत्री, दरअसल, पाकिस्तान के बहुसंख्यक लोगों की भावनाओं को स्वर दे रहीं थीं, जो कि चाहते हैं कि पाकिस्तान में प्रजातंत्र मजबूत हो और उसके भारत से अच्छे रिश्ते रहें। पाकिस्तान की आम जनता का यह मानना है कि भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, पाकिस्तान में प्रजातंत्र की सफलता और देश के विकास की आवश्यक शर्त हैं। कुछ सालों पहले मैं पाकिस्तान गया था और मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वहां के लोगों में भारत के साथ दोस्ताना संबंध बनाने की कितनी उत्कट इच्छा है। जब भी कोई गैर-राजनीतिज्ञ भारतीय, पाकिस्तान जाता है, वहां के लोग जिस गर्मजोशी से उसका स्वागत करते हैं, उसमें भी यही भावना प्रतिबिम्बित होती है। पाकिस्तान और भारत के बीच यदि शांति व मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित नहीं हो पा रहे हैं तो उसका कारण वहां का शक्तिशाली सेना-मुल्ला गठजोड़ है। इस बार भी जिस समय मोदी के निमंत्रण को स्वीकार करने या न करने पर पाकिस्तान सरकार विचार कर रही थी उसी समय अफ़गानिस्तान के हैरात में भारत के वाणिज्य दूतावास पर आतंकी हमला हुआ। पाकिस्तान के हाफिज सईदों की भृकटियां तन गईं और उन्होंने अपनी पुरानी धमकियां एक बार फिर दोहराईं। हम सबको याद है कि किस तरह, जब भारत और पाकिस्तान के बीच शांति प्रक्रिया जोर पकड़ रही थी, उसी समय मुंबई पर 26/11 का आतंकवादी हमला हुआ था। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत-पाक शांति प्रक्रिया और आतंकी हमलों में सीधा संबंध है। ये हमले उन आतंकी समूहों द्वारा किए जाते हैं जिन्हें पाकिस्तान की सेना के एक हिस्से का समर्थन प्राप्त है।
इसी तरह, जब पिछली एनडीए सरकार के मुखिया अटलबिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के साथ शांति वार्ताएं शुरूर कीं और बस से लाहौर पहुंचे, तब पाकिस्तान की सेना ने इस पहल का विरोध किया और कारगिल पर चढ़ाई कर दी। उस समय परवेज़ मुशर्रफ सेना प्रमुख थे। कारगिल पर पाकिस्तानी सेना के कब्जे के बाद भारतीय सैन्यबलों ने उसके खिलाफ कार्यवाही की। अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भी कड़े शब्दों में पाकिस्तान से कारगिल पर कब्जा छोड़ने के लिए कहा। अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान मैं ऐसे कुछ नागरिक कार्यकर्ताओं से भी मिला जो भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के प्रति प्रतिबद्ध हैं। ये लोग भारत में अपने साथियों के साथ मिलकर, पाक-भारत पीपुल्स फोरम जैसी संस्थाएं चला रहे हैं। वे शांति के अलावा अन्य मुद्दों पर भी जोर देते आए हैं, जिनमें उन निर्दोश मछुआरों को छोड़े जाने की मांग शामिल है जो गलती से दोनों देशों की सीमाओं का अतिक्रमण करने के कारण पकड़कर जेलों में ठूंस दिए जाते हैं। इस बार नवाज़ शरीफ ने अपनी भारत यात्रा के पूर्व, पाकिस्तान की जेलों में बंद भारतीय मछुआरों को छोड़ने का आदेश जारी कर एक सकारात्मक कदम उठाया। कहने की आवश्यकता नहीं कि यदि दक्षिण एशिया में शांति स्थापित की जानी है तो वह भारत और पाकिस्तान के बीच अच्छे रिश्तों के बगैर संभव नहीं है। वहां मेरी मुलाकात उन लोगों से भी हुई जो ‘‘अमन की आशा’’ नामक संस्था के लिए काम कर रहे हैं। इस संस्था की स्थापना, भारत के एक प्रमुख दैनिक और पाकिस्तान से प्रकाशित एक अखबार ने मिलकर की है।
भारत में पाकिस्तान के खिलाफ सबसे तीखे स्वर में जो पार्टी बात करती है वह है भाजपा। परंतु भाजपा, पाकिस्तान पर शाब्दिक हमले तभी करती है जब वह सत्ता में नहीं होती। पाकिस्तान के प्रति भाजपा के रवैए में स्पष्ट विरोधाभास हैं। जब वह सत्ता में नहीं होती तब वह पाकिस्तान पर कटु हमले कर भारत की जनता को धार्मिक आधार पर ध्रुवीकृत करने की कोशिश करती है। इसके विपरीत, सत्ता में आने पर वह पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाती है और शांति के कबूतर छोड़ती है। हम यह कैसे भूल सकते हैं कि हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री ने गोधरा कांड और उसके पश्चात हुए दंगों के बाद, पाकिस्तान और उसके राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ पर तीखे हमले कर, गुजरात की जनता को धार्मिक आधार पर ध्रुवीकृत किया था। सन् 2002 के विधानसभा चुनाव में गुजरात में सैंकड़ों ऐसे होर्डिंग लगे थे जिनमें एक ओर मोदी की तस्वीर थी और दूसरी और मुशर्रफ की। हालिया चुनाव अभियान के दौरान भी मोदी, पाकिस्तान को आंखे दिखाते रहते थे। उनकी पार्टी के एक अन्य सदस्य गिरीराज सिंह ने तो पाकिस्तान के बारे में लगभग गालीगलौच की भाषा में बात की थी। इस सबका उद्देश्य एक ऐसी मानसिकता विकसित करना है जिसमें यह माना जाता है कि भारतीय मुसलमान, पाकिस्तान के प्रति वफादार हैं और दोनों देशों की क्रिकेट टीमों के बीच मैच, दरअसल एक युद्ध है। इस तरह, क्रिकेट, जो कि दोनों देशों के बीच दोस्ती का सेतु बना सकता है, का इस्तेमाल कटुता उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। यह तथ्य भुला दिया जाता है कि पाकिस्तान की ओर से भारत में जासूसी करने के आरोप में मधु गुप्ता सहित जितने भी लोग पकड़े गए हैं, उनमें से अधिकांश हिन्दू हैं। इसके बाद भी, हर मुसलमान को पाकिस्तान के जासूस की तरह देखने की हमारी आदत गई नहीं है। पेशावर में जन्में हमारे देश के महान फिल्म कलाकार दिलीप कुमार को पाकिस्तान के उच्चतम नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान को स्वीकार करने के लिए कई बार अपमानित किया गया। यहां तक कि दिलीप कुमार की भारत के प्रति वफादारी पर भी प्रश्न चिन्ह लगाए जाते रहे हैं। सीमा पर होने वाली मामूली से मामूली मुठभेड़ का इस्तेमाल, पाकिस्तान के बारे में उल्टी-सीधी बातें कहने के लिए किया जाता है। भाजपा, हमेशा से कांग्रेस पर पाकिस्तान के प्रति ‘नर्म रवैया’ अपनाने का आरोप लगाती रही है। कुल मिलाकर, जब भाजपा सत्ता में नहीं होती तब पाकिस्तान-विरोधी दुष्प्रचार उसकी राजनैतिक रणनीति का प्रमुख हिस्सा रहता है।
भाजपा की गठबंधन साथी शिवसेना, एक और कदम आगे बढ़कर, पाकिस्तान व भारत के बीच रिश्ते बेहतर करने के हर प्रयास में रोड़े खड़े करती आ रही है। शिवसेना कार्यकर्ताओं ने मुंबई में होने वाले भारत-पाकिस्तान किक्रेट मैच को रोकने के लिए वानखेड़े स्टेडियम की पिच खोद डाली थी। पाकिस्तान के कलाकारों के कार्यक्रमों में हंगामा और तोड़फोड़ करना भी शिवसेना का शगल रहा है। अभी भी, जब मोदी ने नवाज़ शरीफ को आमंत्रण भेजा तब शिवसेना ने यह धमकी दी कि वह शपथग्रहण समारोह का बहिष्कार करेगी। सौभाग्यवश, बाद में शिवसेना को अकल आ गई और उसके मुखिया ने शपथग्रहण समारोह में हिस्सा लिया।
यह दुर्भाग्य की बात है कि लगभग संपूर्ण दक्षिण एशिया में धार्मिक अल्पसंख्यक, तरह-तरह के कष्ट भोग रहे हैं। पाकिस्तान में ईसाई और हिन्दू, भारत में ईसाई और मुसलमान, बांग्लादेश में हिन्दू और बौद्ध, हिंसा का शिकार बनते आ रहे हैं और उन्हें डराया-धमकाया जाना आम है। सभी देशों को आपसी बातचीत और सहयोग से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अपने-अपने देशों में वे अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करें। हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, सार्क देशों का मुख्य एजेंडा होना चाहिए। जिस देश में भी दो या दो से अधिक समुदाय एक दूसरे से घृणा करते रहेंगे या एक दूसरे के खिलाफ हिंसा करेंगे, वह देश कभी प्रगति नहीं कर सकता।
जहां तक पाकिस्तान का सवाल है, वहां प्रजातंत्र जितना मजबूत होगा, सेना की पकड़ उतनी ही कमजोर होगी और शांति प्रक्रिया जोर पकड़ेगी। दूसरी ओर, सेना जितनी मजबूत होगी, प्रजातंत्र उतना ही कमजोर होगा और भारत से रिश्ते उतने ही खराब होंगे। भारत में पाकिस्तान की तुलना में प्रजातंत्र की जड़ें काफी मजबूत हैं परंतु पाकिस्तान की प्रजातांत्रिक सरकार के प्रति सकारात्मक रूख रखना हमारे लिए आवश्यक है ताकि सेना, सामंतवादियों और कट्टरपंथी मुल्लाओं का गठजोड़ कमजोर पड़े और वहां प्रजातंत्र मजबूत हो। भारत और पाकिस्तान दोनों तरह-तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। दोनों ही देशों के लोगों को स्वास्थ, पोषण, षिक्षा व रोजगार संबंधी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में सेनाओं पर बढ़ता खर्च, दोनों ही देशों की प्रगति को अवरूद्ध करेगा। जरूरी यह है कि दोनों देश रोटी, कपड़ा और मकान पर धन खर्च करें न कि टैंकों और बंदूकों पर। (मूल अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)
(लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)
Ram Puniyani was a professor in biomedical engineering at the Indian Institute of Technology Bombay, and took voluntary retirement in December 2004 to work full time for communal harmony in India. He is involved with human rights activities from last two decades.He is associated with various secular and democratic initiatives like All India Secular Forum, Center for Study of Society and Secularism and ANHAD.