अफसरों को जरखरीद गुलाम समझती है भाजपा सरकारें
अफसरों को जरखरीद गुलाम समझती है भाजपा सरकारें
अफसरों को जरखरीद गुलाम समझती है भाजपा सरकारें
विचारों की अभिव्यक्ति पर रोक
मनोज कुमार झा
मोदी सरकार इस वर्ष करोड़ों रुपए खर्च कर जनसंघ के नेता रहे दीनदयाल उपाध्याय का जन्म शताब्दी वर्ष मना रही है। इसे लेकर तरह-तरह के आयोजन किए जाने हैं। भारतीय जनता पार्टी दीन दयाल उपाध्याय को अपना पितृ पुरुष मानती है। कहा जाता है कि उन्होंने एकात्म मानववाद की विचारधारा का प्रतिपादन किया।
इस एकात्मवाद और दीन दयाल उपाध्याय की वैचारिक मान्यता पर पर छत्तीसगढ़ के एक आईएएस अफसर शिव अनंत तायल ने जब सवाल उठाए तो उन्होंने सरकार का कोपभाजन बनना पड़ा। प्रदेश की बीजेपी सरकार ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए मंत्रालय से अटैच कर दिया।
पार्टी ने इसे पीएम मोदी के अपमान से जोड़ कर देखा। भाजपा नेताओं ने इसे घोर अपराध माना।
छत्तीसगढ़ भाजपा के उपाध्यक्ष सच्चिदानंद उपासने ने कहा कि जिस विचारधारा की देश में सरकार चल रही है, उस पर सवाल उठाना घोर अपराध माना जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि देश में पंडित दीनदयाल जैसे महामानव पर सवाल उठाने की किसी की हैसियत नहीं है।
कहा जाता है कि संघ और भाजपा के स्थानीय नेताओं ने आइएएस शिव अनंत तायल को धमकाया और उन्हें माफी मांगने को कहा। आख़िरकार, आईएएस अफसर को फेसबुक से अपनी पोस्ट हटानी पड़ी और अपनी सफाई में दूसरी पोस्ट लिखनी पड़ी।
आईएएस अफसर शिव अनंत तायल कांकेर जिला पंचायत के सीईओ थे। उन्होंने फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि वेबसाइटों में एकात्म मानववाद पर दीनदयाल उपाध्याय उपाध्याय के सिर्फ चार लेक्चर मिलते हैं। वह भी पहले से स्थापित विचारों की नकल है। उसमें मौलिक कुछ भी नहीं है। उन्होंने यह भी लिखा था कि उन्हें ऐसा कोई चुनाव याद नहीं जो उन्होंने जीता हो और न ही उनकी अपनी कोई मौलिक विचारधारा रही।
तायल ने लिखा था कि इतिहासकार रामचंद गुहा की पुस्तक ‘मेकर्स ऑफ मॉडर्न इंडिया’ में आरएसएस के तमाम बड़े लोगों का जिक्र है, लेकिन उसमें उपाध्याय का कहीं कोई जिक्र नहीं है।'
उन्होंने यह भी लिखा कि मेरी अकादमिक जानकारी के लिए कोई पंडित दीन दयाल उपाध्याय के जीवन पर प्रकाश डाले।
लेकिन यह लिखने का खामियाजा उन्हें ट्रांसफर के रूप में भुगतना पड़ा।
ये तो संघ और भाजपा नेताओं के पास सरकारी अफसरों को मुअत्तल करने का अधिकार नहीं है, अन्यथा उन्हें नौकरी तक गंवानी पड़ सकती थी। बावजूद उन पर इतना दबाव बनाया गया कि तायल को माफी मांगनी ही पड़ी। उन्होंने फेसबुक पर ही पोस्ट लिख कर माफी मांगी।
माफी मांगते हुए उन्होंने दूसरी पोस्ट में उन्होंने लिखा कि मैंने सुबह में एक पोस्ट की थी, जिसमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर कुछ टिप्पणी की थी। यह मेरे अध्ययन और खोज से संबंधित थी। यह दिग्गजों की साख पर सवाल उठाने की मंशा से बिल्कुल नहीं किया गया था। फिर भी अगर ऐसा कुछ हुआ है तो मैं इसके लिए माफी चाहता हूँ।
जाहिर है, तायल ने विवश होकर ही माफी मांगी होगी और अपनी पोस्ट हटाई होगी।
देखा जाए तो पोस्ट में उन्होंने ऐसी कोई बात नहीं कही जो आपत्तिजनक हो।
कांग्रेस के शासन के दौरान भी अफसर अपने निजी विचार नेताओं के प्रति सार्वजनिक मंचों पर व्यक्त करते रहे हैं, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि सरकार ने उनके प्रति कोई दंडात्मक कार्रवाई की हो।
सरकारी अफसर होने का मतलब सरकार का जरखरीद गुलाम होना तो है नहीं। सरकारी सेवा शर्तों में कहीं ऐसी बाध्यता नहीं है कि कोई अधिकारी अपने विचारों को सार्वजनिक तौर पर व्यक्त नहीं कर सकता है। यह अवश्य है कि वह राजनीतिक गतिविधियों में भाग नहीं ले सकता है। पर संविधान ने अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार उसे भी दे रखा है। वह अपनी सेवा सरकार को देता है, पर अपनी आत्मा को गिरवी नहीं रख देता। उसे भी एक मनुष्य और नागरिक के रूप में अपने विचारों की अभिव्यक्ति का पूरा अधिकार है।
फेसबुक अभिव्यक्ति का सार्वजनिक मंच है और कई अधिकारी इस पर खुल कर अपने विचार व्यक्त करते रहे हैं। लेकिन मोदी सरकार और इसके लगुओं-भगुओं को विरोधी विचार सख्त नापसंद हैं। हाँ, ये कहीं भी ज़हर उगलते रहें, इन पर कोई रोक नहीं होनी चाहिए।
पहले भी फेसबुक पर सरकार और आरएसएस के विरोध में टिप्प्णियाँ करने के लिए लोगों को प्रताड़ित किया गया है। मोदी सरकार और संघ ने एक हद तक मीडिया को तो खरीद ही लिया है।
ज्यादातर टीवी चैनलों और मीडिया संस्थानों में अंबानी का भरपूर पैसा लगा हुआ है। ये वही दिखाते हैं और छापते हैं जो सरकार और संघ को पसंद हो। बाकी खबरें दबा दी जाती हैं। पर सोशल मीडिया पर सरकार का नियंत्रण नहीं है। इसलिए इस पर लोग खुल कर विचारों की अभिव्यक्ति करते हैं और जो खबरें कॉरपोरेट मीडिया में नहीं आ पातीं, वो सोशल मीडिया यानी फेसबुक, ट्विटर, जी प्लस आदि माध्यमों के जरिए आती हैं। सरकार इन माध्यमों पर भी नियंत्रण करना चाहती थी, पर भारी विरोध के कारण उसे सफलता नहीं मिली। पर अपने अफसरों को डरा-धमका कर वह उन्हें विचारों की अभिव्यक्ति से रोक तो रही ही है।
दरअसल, किसी भी सर्वसत्तावादी पार्टी और संगठन का यही चरित्र होता है। वह विरोधी विचारों को सहन नहीं कर पाती और उन्हें कुचलना चाहती है।
मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा पूरी तरह से एक सर्वसत्तावादी पार्टी के रूप में उभर चुकी है। हालत ये है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत केंद्रीय मंत्रियों और आला अफसरों की मीटिंग लेते हैं। ये किसी तरह का विरोध सहने के लिए तैयार नहीं हैं। विरोधी विचारों के प्रति इनमें सम्मान का भाव कभी भी संभव नहीं है, क्योंकि इनका मूल चरित्र तानाशाही वाला है।
जहाँ तक पंडित दीन दयाल उपाध्याय का सवाल है, आरएसएस ने भी लंबे समय से इन्हें उपेक्षित कर रखा था, पर इनके पास विचारक नाम के जीव रह नहीं गए हैं। इस वर्ष दीन दयाल की जन्म शताब्दी पड़ रही है, तो मोदी और आरएसएस के नेताओं ने इनके नाम को भुनाना चाहा है।
दीन दयाल 1937 में आरएसएस से जुड़े और 1942 में जब पूरा देश ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आन्दोलन में लगा था, ये आरएसएस में पूरी तरह सक्रिय हो गए। उस समय आरएसएस के नेता-कार्यकर्ता अंग्रेजों के लिए भेदिये का काम करती थी और देशभक्तों-आन्दोलनकारियों के बारे में अंग्रेज अफसरों को सूचनाएँ देकर उन्हें पकड़वाती थी, बदले में इनाम-इकराम पाती थी। उस दौरान दीन दयाल जैसे तथाकथित विचारक राष्ट्रवादी आन्दोलन को कमजोर करने और उसमें भितरघात करने में लगे थे। बाद में ये एकात्मवादी विचारक बन गए।
एकात्मवाद पर इन्होंने जो पोथा लिखा है, उसके बारे में विद्वानों का कहना है कि उसे पढ़ कर समझ पाना मुश्किल है कि वे कहना क्या चाहते हैं।
संक्षेप में उन्होंने जो कहा है, उसका मतलब है कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है। जितने धर्म हैं, जितनी संस्कृतियाँ हैं, सब हिन्दू हैं। यह जोर-जबरदस्ती नहीं तो और क्या है।
दीन दयाल के शब्दों में, “वसुधैव कुटुम्बकम हमारी सभ्यता से प्रचलित है। इसी के अनुसार भारत में सभी धर्मों को समान अधिकार प्राप्त हैं। संस्कृति से किसी व्यक्ति, वर्ग, राष्ट्र आदि की वे बातें जो उनके मन, रुचि, आचार, विचार, कला-कौशल और सभ्यता का सूचक होता है, पर विचार होता है। दो शब्दों में कहें तो यह जीवन जीने की शैली है भारतीय सरकारी राज्य पत्र (गज़ट) इतिहास व संस्कृति संस्करण मे यह स्पष्ट वर्णन है कि हिन्दुत्व और हिंदुइज़्म एक ही शब्द है तथा यह भारत की संस्कृति और सभ्यता का सूचक है।“ इससे तो यही समझ में आता है कि जो भी है वह हिन्दुत्व ही है। बाकी इसमें कोई तर्क भी नहीं है।
दरअसल, तर्कपरकता से आरएसएस के (अ)विचारकों का कोई लेना-देना रहा नहीं, हो भी नहीं सकता है। जैसे ही ये तर्क पर आएंगे, इनके विचारों का किला ध्वस्त हो जाएगा। इसीलिए, ये तर्क से परे हैं, जैसे ब्रह्म तर्कातीत है, वैसे ही। बाकी कुतर्क, गाली-गलौच, धमकी और इससे भी आगे बढ़े तो हत्या, दंगा, आग़जनी आदि इनके उपकरण रहे हैं, जिनका प्रयोग समय-समय पर ये करते रहते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी इनकी विचारधारा से इस क़दर प्रभावित हैं कि उन्होंने प्रधानमंत्री निवास का नाम ही 7 रेसकोर्स से बदल कर 7 एकात्म मार्ग रख लिया है, जैसे कि वह उनका अपना निजी घर हो। पर ये तो देश को ही अपनी जागीर समझते हैं।
बहरहाल, दीन दयाल की विचारधारा से असहमति जताने वाले आईएएस अफसर को प्रताड़ित किया जाना मोदी (आरएसएस) सरकार की फासीवादी नीति को ही दिखलाता है। यह सरकार जब तक रहेगी, ऐसा ही करेगी। यह इसका मूल सर्वसत्तावादी चरित्र है।


