गोरे दोस्त नहीं हैं सिखों के, शहीद-ए-आजम के वंशजों से ब्रिटिश हुकूमत के बदले का खुलासा
पलाश विश्वास
अब इस खबर पर गौर करें और याद करें कि हम लगातार सिखों से गुजारिश करते रहे हैं कि अंध धर्मोन्मादी राष्ट्रवादी जनसंहार के शिकार वे आखिरकार इसीलिए हुये कि वे भी दलितों, मुसलमानों, आदिवासियों, पूर्वोत्तर निवासियों की तरह अलगाव में हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के भरोसे चल रही सिख राजनीति ने सिखों को देश की सबसे मजबूद सबसे देशभक्त कौम को देश में ही अलग-थलग कर दिया है। ब्रिटिश हुकूमत को सबसे ज्यादा परेशानी बंगालियों और सिखों से थीं। विभाजन के बावजूद सिखों का कुछ नहीं बिगाड़ सके जबकि बंगाल को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया गया तो सिखों से बदला लेने का सबसे बड़ा आपरेशन ब्लू स्टार अंग्रेजी प्लान मुताबिक हो गया। देश में अपनी पुश्तैनी बढ़त छोड़कर सिखों की आत्मघाती गोरा गुलामी ने नस्ली भेदभाव वाले वर्ण वर्चस्वी सत्तावर्ग को उनके जनसंहार का मौका दिया। अब बाकी देश को साथ लेकर गोरों के इस कॉरपोरेट राज का खात्मा करके ही सिख ही हिसाब बराबर कर सकते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ब्रिटेन ने स्वीकार किया है कि उसने 1984 में अमृतसर के स्वर्णमंदिर में आतंकवादियों को निकालने के लिये रणनीति में बनाने में भारत की सहायता के लिये एक सैन्य सलाहकार भेजा था लेकिन तीन माह बाद कार्यान्वित की गयी रणनीति ब्रिटिश सैन्य सलाहकार की सलाह से बिल्कुल भिन्न थी जिसमें सैकड़ों लोगों की जानें गयी थीं।
ब्रिटेन ने विदेश मंत्री विलियम्स हेग ने अपनी संसद में दिये एक वक्तव्य में प्रधानमंत्री डेविड केमरन के निर्देश पर कैबिनेट सचिव द्वारा पुराने दस्तावेजों की जाँच के नतीजों का खुलासा करते हुये यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कैबिनेट सचिव ने चार बिन्दुओं पर जाँच करने को कहा गया था कि भारत को क्या सलाह दी गयी थी, सलाह का प्रकार क्या था आपरेशन ब्ल्यू स्टार पर इस सलाह का क्या प्रभाव पड़ा तथा क्या ब्रिटिश संसद को इस बारे में गुमराह किया गया था। उन्होंने बताया कि करीब 200 फाइलों एवं 23 हजार से ज्यादा दस्तावेजों की गहन छानबीन से पता चला है कि फरवरी 1984 में भारत सरकार से ब्रिटेन की सरकार को एक आवश्यक पत्र मिला था जिसमें स्वर्ण मंदिर परिसर से आतंकवादियों को बाहर निकालने की रणनीति बनाने में तुरन्त सहायता माँगी गयी थी। ब्रिटिश उच्चायोग ने भी सकारात्मक कदम उठाने की सिफारिश की थी, जिसे तत्कालीन सरकार ने स्वीकार कर लिया था तथा 8 से 17 फरवरी के बीच एक सैन्य सलाहकार भारत गया था जिसने भारतीय गुप्तचर एजेंसियों एवं विशेष समूह को आवश्यक सलाह दी थी।
श्री हेग ने कहा कि सलाहकार ने यह साफ कर दिया था कि बातचीत के सभी प्रयास विफल होने की दशा में सैन्य कार्रवाई अन्तिम विकल्प के तौर पर ही होना चाहिये। सलाह में कहा गया था कि सैन्य कार्रवाई में चौंकाने वाला तत्व होना जरूरी है तथा इसमें हेलीकॉप्टर वाली टुकड़ियों का इस्तेमाल किया जाना चाहिये ताकि कम से कम जानें जायें और जल्दी परिणाम मिल सके। उन्होंने कहा कि दस्तावेजों के अनुसार सरकार का साफ तौर पर मानना था कि इस मामले में सैन्य सलाह से अधिक कोई मदद नहीं दी जाये और यह सलाह भी आरम्भिक चरण तक ही सीमित रहे। उन्होंने भारतीय बलों को प्रशिक्षण और उपकरण देने की बात का सिरे से खंडन किया।