मोदी का 'नसीब'- समूचा देश जीत चुके हैं पर दिल्ली की यह एक बड़ी म्युनिस्पैलटी ने नाक में दम कर दिया है
दिल्ली के चुनाव पर मोदी का ' नसीब ' भी दांव पर लग चुका है। अडानी से लेकर ... और अंबानी तक की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष मदद से भी मामला नहीं बन पा रहा है। अप्रत्यक्ष मदद अब साफ़ है। मीडिया का एक हिस्सा इस चुनाव में पार्टी का पर्चा बन गया है। हर किस्म की रणनीति भी अपनाई जा चुकी है। साम दाम दंड भेद पर चुनाव उठ नहीं पा रहा है। टीम केजरीवाल हर हमले को भोथरा कर दे रही है। ऐसा नहीं कि आम आदमी पार्टी कोई शुचिता की राजनीति कर रही हो। पर जो राजनीति दिल्ली में हो रही है उसमे गरीब से लेकर मध्य वर्ग आम आदमी पार्टी के साथ जा रहा है। कांग्रेस के पतन के साथ ही आम आदमी पार्टी भाजपा पर भारी पड़ने लगी है।
केजरीवाल का जितना मजाक उड़ा लें, खिल्ली उड़ाने वाले कार्टून बना लें, वह तो लक्ष्मण का आम आदमी बनता जा रहा है और बात भी उसी अंदाज में करता है। परदे के पीछे भले ही वह भीषण अहंकारी हो, हरियाणा के बाउंसर से राजनीति करता रहा हो पर पब्लिक में तो वह हीरो ही बनता जा रहा है। दस लाख के सूट से मोदी की साख का जो राजनैतिक नुकसान हुआ था उसकी भरपाई अभी नहीं हुई थी कि राजनैतिक अपरिपक्वता के और झंडे मोदी ने गाड़ दिए। भरी सभा में आटो वाले की बेईमानी का लतीफा सुनाया और अपने नसीब का महिमामंडन करते हुए यह भी बोल दिया कि अब तो आप लोगों का पैसा भी बच रहा होगा इतना सस्ती का जमाना आ गया है। यह सभी जानते है कि इस देश में बदनसीब लोग ज्यादा है। ऐसे में अपने ' नसीब ' का महिमामंडन गरीब के घावों पर नमक छिड़कने जैसा है।
दिल्ली का चुनाव कांटे का है जरा सा भी फर्क हिसाब गड़बड़ कर सकता है। लेकिन मतदान से हफ्ता भर पहले ही भाजपा के हार की भविष्यवाणी पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ चुका है। किरण बेदी के चुनाव संचालक टंडन का पत्र पार्टी की भीतरी दशा और दिशा दोनों का प्रतीक है। वे खांटी छात्रनेता रहे है और थोपे हुए को उनकी हैसियत का बोध करने के बाद मान गए। इससे पहले जब मोदी ने मास्टर स्ट्रोक लगाते हुए किरण बेदी को दिल्ली भाजपा के सर माथे पर बैठाया था तो पहली बार अमित शाह से लेकर मोदी के खिलाफ उन लोगों ने नारे लगा दिए जो चाल चरित्र और चेहरे वाले माने जाते है। किरण बेदी ने चुनाव लड़ने से पहले ही मुख्यमंत्री बनने का एलान कर दिया और व्यवहार भी मुख्यमंत्री जैसा करने लगी। जबसे उन्हें खामोश रहने का निर्देश दिया गया है इस मोर्चे पर पार्टी फिलहाल किसी नए संकट से बची हुई है। पर दूसरे संकट आते जा रहे हैं। गोत्र वाला कार्टून जिसके भी दिमाग की उपज थी उसने पार्टी के प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं को भी बेचैन कर दिया है। बाक़ी जब भक्त जन के दो चैनल किसी आरोप को ज्यादा मुस्तैदी से लगाने लगे तो वे आरोप भी राजनैतिक मान लिए जाते है और उनका भी उल्टा असर पड़ता है।
पार्टी के कार्यकर्त्ता पस्त हैं, तो नेता इस बार अमित शाह को भी ठीक से समझाने के मूड में है। एक नेता ने कहा - जब ऊपर से लाकर बैठा दोगे तो चुनाव भी यही बैठ कर जिताओ। मोदी समूचा देश जीत चुके हैं पर दिल्ली की यह एक बड़ी म्युनिस्पैलटी ने नाक में दम कर दिया है। जीत भी जाए तो बड़ा श्रेय मिलने वाला नहीं और हार गए तो ' नसीब ' से भी हाथ धो बैठेंगे।
अंबरीश कुमार
जनादेश