दबंगई से वे दुनिया बदल देंगे,
मुहब्बत के खिलाफ फतवा है
कत्लेआम और बलात्कार के साझे चूल्हे तमाम सुलग रहे हैं और इंसानियत का गोशत पक रहा है कि दावत फिर जमकर होगी कि शीतल पेय तमाम खून की नदियां हैं।

अब वे फिर हिंदू राष्ट्र बनाने लगे हैं।

अब वे मुल्क का चप्पा चप्पा आग के हवाले कर रहे हैं।

अब वे फिर बंटवारे का घाटा पाटने को फिर बंटवारा करने लगे हैं ताकि मुकम्मल हिंदू राष्ट्र अब तो बने और दुनिया भी केसरिया बने।

हो सकता है कत्ल हो जाने वालों में नाम शामिल होने की अगली बारी हमारी है लेकिन अब हमारे हाथ पक्के सबूत है कि विभाजन के पहले हरामजादों ने कैसे पूरे देश को मेरठ के मेरठ बनने से पहले मेरठ बना दिया था और अफवाहों का दंगा भड़का दिया था। तमस और गर्म हवा फिर देख लें।

पलाश विश्वास

अभी अभी कंचन जोशी के वाल से मालूम पड़ाः

कन्नड़ साहित्यकार और प्रसिद्ध इतिहासकार MM कलबुर्गि की गोली मारकर हत्या।

कंचन जोशी ने लिखा है कि गोविन्द पनसारे की हत्या के बाद ये कड़ी चल पड़ी है। हिंदुत्व के नाम पर जारी ये राज्य समर्थित आतंकवाद भारत में जिस हिन्दू राज के पुनर्निर्माण की बात करता है, उसमें और इराक़ तथा सीरिया के इस्लामिक राज्य(ISIS) में धर्म के अलावा क्या कोई और अंतर है?

कंचन जोशी ने चेतावनी दी है कि वक़्त रहते नहीं चेते तो भारत सदी के सबसे भयानक राज्य प्रायोजित गृहयुद्ध की आग में धकेल दिया जाएगा।

अब हम यह जरूर समझ लें कि शामत है कि आखिर यह मुल्क वही है, वहींच, एकच, हिंदू राष्ट्र हिंदुस्तान।

कोई शक?

अब हम यह जरूर समझ लें कि शामत है कि 2020 और 2030 के एजंडे को लागू करने का काम चाकचौबंद तेज तेज।

अब हम यह जरूर समझ लें कि शामत है कि मुक्त बाजार का तिलिस्म मजहबी कत्लेआम की सियासत के शिकंजे में कमसमसाता देश फिर आग के हवाले है और फिर बंटवारा है मुल्क का।

हमने पहले खुलासा किया है कि बंगाल के विभाजन के लिए ही पंजाब का विभाजन अनिवार्य था।

हमने पहले खुलासा किया है कि बंगाल के विभाजन के लिए ही कश्मीर और सिंध के कलेजे को चाक-चाक होना था।

हमने पहले ही खुलासा किया है कि नस्ली कत्लेआम के लिए, बहुजनों और आदिवासियों के सफाये के लिए अंग्रेजी हुकूमत की जगह पुणे करार की नींव पर हिंदू राष्ट्र तामीर करने के लिए बंटवारा हुआ भारत का।

बंगाल का बौद्धमय इतिहास अब खुला खुला है।

तम युग का अंधेरा भी अब सहर होने लगा है।

भारत का बौद्धमय अतीत का सिंहद्वार लेकिन बंद है।..........जारी.... आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.......

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सारे दरवाजे विदेशी हमलावरों के लिए हमने खोल दिये हैं और गुजरात नरसंहार, बाबरी विध्वंस, सिख संहार, आदिवासी कत्लेआम, दलितों के सफाये, बलात्कार संस्कृति, रेडियोएक्टिव बायोमेट्रिक डिजिटल रोबोटिक स्मार्टइंडिया भोपाल गैस त्रासदी के सारे कारपोरेट वकील हमलावरों को निवेशक बता रहे हैं और दस दिगंत सत्यानाश को विकास कथा हरिकथा अनंत बना रहे है।

आस्था के बहाने मजहब और रब को कातिल बनाने वाले सियासती बिलियनर मिलियनर डालर जमात, डालर हेजेमनी के टुकड़खोर लोग फिर वहीं जमींदारों की वैध अवैध संताने हैं जो नवउदारवाद के बच्चे बनकर अपनी किलकारियों से इस कायनात की तमाम बरकतों और नियामतों को कयामतों में तब्दील कर रहे हैं।

अब बात खुलने लगी है तो दूर तलक जायेगी बातें।

अब यूं समझ लें कि पाकिस्तान में और बांग्लादेश में भी उन्ही जमींदारों का राजकाज है।

हमने यूपी के मेरठ में इंसानी खून और गोश्त का महाभोज देखा है।

हमने यूपी के मेरठ में आसमान को जलते हुए देखा है।

हमने यूपी के मेरठ में हवाओं में हलाहल उमड़ते देखा है।

हमने यूपी के मेरठ में हड्डियों के चिटखने की आवाजें सुनी हैं।

हमने उन देवियों को देखा है जो मेरठ में हिंदुओं के घर-घर जाकर कानोंकान खबर कर रही थी कि शहर के मुसलिम इलाकों में तमाम हिंदू लड़कियों का सीना काट लिया गया है।

फिर हमने वह कड़कती चेतावनी सुनी है कि हिंदू नपुंसक होते हैं। हिंदुओं के रगों में पानी बहता है।..........जारी.... आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.......

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फिर हमने वह कड़कती चेतावनी सुनी है कि जो खून राम के नाम खौलता नहीं है।

फिर हमने वह कड़कती चेतावनी सुनी है कि हिंदुओं के घर न बम हैं और न बंदूकें हैं और पीएसी और सेनाओं को हिंदुओं का काम करना होता है।

तब कारसेवक और बजरंगी नाना किसम के पैदा भी न हुए थे।

तब सिर्फ मेरठ जल रहा था।

अब सारा देश कत्लेआम बलात्कार संस्कृति के धारकों वाहकों की लगायी आग से धू धू जल रहा है।

अमेरिका के मुक्त बाजार के किसी स्कूल कालेज में अपनी बंदूक से मौत का कार्निवाल मनाकर कोई बाइस साल का बच्चा गुजरात नरसंहार की सरजमीं पर खड़े हिंदू राष्ट्र की जमीर को चुनौती दे रहा है कि बदलाव दबंगई से होगा और सत्ता दबंगों की होगी।

अमेरिका के मुक्त बाजार के किसी स्कूल कालेज में अपनी बंदूक से मौत का कार्निवाल मनाकर कोई बाइस साल का बच्चा गुजरात नरसंहार की सरजमीं पर खड़े हिंदू राष्ट्र की जमीर को चुनौती दे रहा है कि मुहब्बत किसी बीमारी का इलाज नहीं है और हर इलाज की अचूक दवा नफरत है, सिर्फ नफरत।

अमेरिका के मुक्त बाजार के किसी स्कूल कालेज में अपनी बंदूक से मौत का कार्निवाल मनाकर कोई बाइस साल का बच्चा गुजरात नरसंहार की सरजमीं पर खड़े हिंदू राष्ट्र की जमीर को चुनौती दे रहा है कि 2020 और 2030 का एजंडा पूरा करने का एकमुश्त बुलेटगति राजमार्ग स्मार्टवा दबंगई का है और हजारों जातियों की अस्मिताओं में बंटे इस देश को हिंदू राष्ट्र बनकर दलितों, आदिवासियों और गैरहिंदुओं का जनाजा निकालना है तो दबंग जातियों की दबंगई का कानून बना दो और फिर दुनिया को हिंदुत्व के नर्क में तब्दील कर दो।..........जारी.... आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.......

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कत्लेआम और बलात्कार के साझे चूल्हे तमाम सुलग रहे हैं और इंसानियत का गोशत पक रहा है कि दावत फिर जमकर होगी कि शीतल पेय तमाम खून की नदियां हैं।

हो सकता है कत्ल हो जानेवालों में नाम शामिल होने की अगली बारी हमारी है लेकिन अब हमारे हाथ पक्के सबूत हैं कि विभाजन के पहले हरामजादों ने कैसे पूरे देश को मेरठ के मेरठ बनने से पहले मेरठ बना दिया था और अफवाहों का दंगा भड़का दिया था। तमस और गर्म हवा फिर देख लें।

नोआखाली में दंगा भड़कने से पहले फासीवाद का मसीहा कोई बंगाल के गांव गांव जिला जिला घूम घूमकर कह रहा था कि मुसलमानों को बंगाल की खाड़ी में बहा देंगे।

भारत के विभाजन से पहले फासीवाद के मसीहा ने बाबुलंद ऐलान कर दिया था कि भारत का विभाजन हो या न हो, बंगाल का विभाजन होकर रहेगा क्योंकि उन्हें हिंदुत्व के नर्क की तलहटी में जो सबसे दलित अछूत हैं, धर्मांतरित उन मुसलमानों के साथ सत्ता में हिस्सेदारी नामंजूर है उन्हें।

गौरतलब है कि अखंड बंगाल के तीनों प्रधानमंत्री मुसलमान थे और उनके मंत्रिमंडल में बहुजन हिस्सेदार थे।

दंगा अब भी जनता का किया धरा नहीं होता।

न कोई मजहब मजहब के खिलाफ दंगाई होता है।

न कोई रब का किसी रब के खिलाफ कोई जिहाद होता है।

यह किस्सा सियासत का है।

जमींदारी का जलसाघर टूटने लगा तो सारे जमींदार जो अंग्रेजी हुकूमत का अगवाड़ा पिछवाड़ा चाटकर मक्खन मलाई उड़ा रहे थे पुस्त दर पुश्त, जो कत्लेआम और बलात्कार के हर किस्से में शामिल थे, जो थे सचमुचो वतन फरोश, वे सारे के सारे सियासत के खुदा बना दिये गये और हिंदूराष्ट्र मुकम्मल बनाने के लिए मुल्क का उनने बंटवारा कर दिया।..........जारी.... आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.......

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उनके ही वारिसान परेशां है कि हिंदूराष्ट्र मुकम्मल हुआ नहीं है और न ही बंटवारा मुकम्मल हुआ है।

अब वे फिर हिंदू राष्ट्र बनाने लगे हैं।

अब वे मुल्क का चप्पा-चप्पा आग के हवाले कर रहे हैं।

अब वे फिर बंटवारे का घाटा पाटने को फिर बंटवारा करने लगे हैं ताकि मुकम्मल हिंदूराष्ट्र अब तो बने और दुनिया भी केसरिया बने।

प्यारे नित्यानंद गायेन,

bahut hi jyada nalayak ho.itbna khoobsoorat likh sakte ho.tamaam chijo mein vakt barbad karte ho lekin likhye bahut kam ho.hum kharab likhte hain .firbhi khoob likhte hain kyunki tumhare hisse ka likhna bhi haota hai.kab mujhe rahat doge?bachpana chhodo bhi aur jang mein shamil ho jao.do kaudi ke Pr se baaj aao.tumhar kalam parmanu bam hai, use hi aajmao.hum jaise do kaudi ke logo eke liye vakt jaya naa karo.bahut sakht naaraj hun.yaar, thodi, humaari bhi pawah kiya karo.yaaede ab bhi aato hai.na jane , kab yade gumshuda ho jaye.

अपने राजीव नयन दाज्यू जब फेसबुक पर रोमन में हिंदी लिखा देखते हैं तो बेहद गुस्से में आ जाते हैं और उनका सुर ताल बिगड़ जाता है।

मैंने ये बातें फेसबुक पर अपने भाई और होनहार वीरवान भाई नित्यानंद गायेन से नयन दाज्यू के गुस्से का जोखिम उठाकर लिख मारी है रोमन में। जैसे लिखा है, हूबहू वही साझा कर रहा हूं।..........जारी.... आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.......

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दरअसल तकनीक का कमाल है और उससे ज्यादा तकनीक पर जिनकी मोनोपाली है, उनका कमाल है कि कंप्यू बीच बीच में डेड हो जाता है। नये सिरे से रिफार्मेट कराना होता है।

अबकी दफा इंजीनियर शिवम चेता गये हैं कि साफ्टवेयर डाउनलोड न करना वरना बुढ़िया की जान चली जायेगी।

हिंदी टूल फेसबुक के लिए हराय गया।

तो दोबारा डाउनलोड करने की हिम्मत न हुई।

बुढ़िया की जान में है बूढ़े तोते की जान।

सोचा कि इंसानियत हराय जा रही है।

सोचा कि मुल्क हराय जा रहा है।

सोचा कि मजहब हराय जा रहा है।

सोचा कि देहात हराय जा रहा है।

सोचा की बोलियां हराय जा रही हैं।

सोचा कि भूगोल हराय जा रहा है।

इतिहास हराय जा रहा है।

वजूद हराय जा रहा है।
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मुल्क रिलायंस अदाणी का, हुकुम उनका और हुकूमत भी उनकी!

नामालूम कि कब यादें सिरे से गुमशुदा हो जायें!

समझ लीजिये कि कितनी खतरनाक बात होती है यह कि आपकी यादें गुमशुदा हों!अपना पराया याद न कर पा रहे हो और फिरभी आप जिंदा है!

हमारे मुल्क के नागरिकों का बस यही हाल है।

वे वोट देकर खुदा बने हुए हैं।

हत्यारे को रब बना दिया है।

कत्लेआम की फिजां को लोग बाजार समझ रहे हैं।

यादें मरहूम हैं और समझते ही नहीं है कि मुल्क बाजार बना है और लोगबाग थोक भाव से अपनी मौत का सामान खरीद रहे हैं।

यादें मरहूम हैं और समझते ही नहीं है कि मजहब मुकम्मल बाजार बना है और बाजार में भगदड़ मची है और किसी को मालूम नहीं कि कौन मरा है और कौन नहीं मरा है। और किसी को मालूम नहीं कि कौन जख्मी है और कौन जख्मी नहीं है। होश नहीं है। मदहोश सभी।

मुझे अफसोस हैं उन काबिल दोस्तों और भाइयों के लिए, जिन्हें हमारे बुढ़ापे का ख्याल नहीं है और अपने निकम्मेपन से हम पर बोझ लादे जा रहे हैं।

सबसे गुस्सा है होनहार वीरवान पांत पर जो बाजार में बाजार की लकीर के फकीर बने हुए हैं और मुल्क में बहती खून की नदियों को वे शराब की नदियां समझ रहे हैं।

महाभोज चल रहा है।..........जारी.... आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.......

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अंतिम संस्कार का वक्त हो चला है।

मौत सिरहाने खड़ी है।

वे सुगंधित कंडोम चुनने में लगे हैं।

मुल्क रिलायंस अदाणी का, हुकुम उनका और हुकूमत भी उनकी!

नामालूम कि कब यादें सिरे से गुमशुदा हो जायें!

ये तमाम चीजें बाजार में खरीदने की चीजें तो हैं नहीं कि दोबारा डाउनलोड कर लिया।

अपने सहकर्मी जयनारायण प्रसाद गुरुजी बहुत प्यारे जीव हैं।

असल पोस्तोबाज हैं। हर प्रेस कांप्रेंस, प्रोडक्ट लांचिंग में जाते हैं।

पोस्तो भी वसूलते हैं। फिर वही पोस्तो धर्मतल्ला के गरीब लोगों या अंकुरहाटी चेकपोस्ट पर बिलाय देते हैं।

हम साथियों को शाम को नाश्ता कराना और रात को मिठाई खिलाना, टाफियां बांटना उनका रोजनामचा है और हम उन कुंवारे के पीछे लगे रहकर अपनी बोरियत और भड़ास का इलाज करते हैं।

उन्हें गुस्सा आ जाये और फिर हमें वे गालियां बक दें या कोसना शुरु करें, रोज हमें इसका इंतजार रहता है।

वे होते हैं तो हम खूब बोलते हैं और वे नहीं होते तो समझो मातम वही सन्नाटा है।

रिपोर्टरओ नइखे। रिपोर्टर बेहतरीन हैं।..........जारी.... आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.......

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गंगासागर करीब तीस साल से बिना नागा जा रहे हैं।

परिवर्तन में धुँआधार रिपोर्टिंग की काबिलियत पर माननीय प्रभाष जोशी ने उन्हें रखा था। पर उनकी यह काबिलियत परखी नहीं गयी।

यूं समझिये छोटे मोटे अशोक सेक्सेरिया हैं।

कंप्यू के खिलाफ उनका जिहाद था और उन्हें आखिर जाते जाते हमने मना लिया कि पीसी से दोस्ती करें और जो न लिखा है, वह सबकुछ लिख दें।

क्योंकि हमें उनके हिस्से का भी लिखना होता है।

अभी अभी हमने उन्हें फेसबुक में दाखिल भी करा दिया है और फेसबुक पर मौजूद रहे हमेशा, इस खातिर रोज नये नये माडल दिखाकर फ्लिपकर्ट बजरिये उन्हें लैटेस्ट मोबाइल भी खरीदवा दिया है। फेसबुक में उन्हें भिड़ा दिया है।

डिजिटल कैमरा है उनके पास।

फिल्म की समझ भी है।

जनसरोकारों से लबालब हैं।

गुस्सा भी बहुत है।

पीड़ा भी कम नहीं है।

डाइरेक्शन का कोर्स किया है।

फिरभी फिल्म कोई बनायी नहीं है।

उनकी फिल्म का इंतजार है।
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अब जयनारायण भी पचपन पार हैं और गुरुजी तो हो गये हैं, कुमार भारत जैसे चुस्त फुर्तीले भी नहीं रहे अब।

हम उनसे बड़े हैं। मधुमेह मरीज हैं। फिरभी वे हमसे ज्यादा बूढ़े हो गये हैं और हमसे कहीं ज्यादा बीमार हैं।

हमारे यहां फाइनेंशियल एक्सप्रेस के अप्पण रायचौधरी रिटायर करने के साल भर अंदर ऊपर चल दिये और हमारे गुरु जी चलने की तैयारी कर रहे हैं।

वैसे अभी हमने किसी को अलविदा कहा नहीं है काम करते करते।

डर है कि चंद महीने काट देने से पहले वही न करना पड़े।

मुश्किल यह है कि होम्योपैय़ी में उनका पक्का यकीन है। डाक्टर बरसों से आपरेशन का अल्टीमेटम दे रहे हैं।

हम लोग मनुहार भी करते रहे हैं कि होम्यापैथी बहुत ठीक है लेकिन इमरजेंसी में आपरेशन करवा भी लेना चाहिए।

अब पानी सर के ऊपर है और आपरेशन करवाना ही होगा। फिलहाल वे मान गये हैं लेकिन हम बेहद घबड़ा रहे हैं, कि आखिर पिर मुकरन जाये आपरेशन से और फिर कुछ कम बेशी न हो जाये।

हाईस्कूल पार करते न करते, नैनीताल पहुंचते न पहुंचते ताक झांक से तोबा कर लिया।

क्योंकि नैनीताल में जिन लोगों से वास्ता पड़ा, उनने बेरहमी से सीखा दिया है को दुनिया में कोई रसगुल्ला हमारे लिए नहीं है।

पेशेवर पत्रकारिता का नतीजा मधुमेह है लेकिन हम मीठे से परहेज कर चुके थे मूछें आने से पहले ही और उनने हमें समझा दिया था कि जिंदगी अगर जहर है तो पीना पड़ेगा।
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अगर जिंदगी एक लड़ाई है बेइंतहा तो जमकर लड़ना होगा।

हमें अफसोस है कि अब कही भी न घर में न बाहर कोई है, जो होनहार वीरवान पीढ़ी की पीठ पर कोड़े ऐसे दनादन मारें कि रीढ़ सीधी हो जाये और इस बाजार की दुनिया सौ जुगत लगाकर भी वह रीढ़ न तोड़ सके, न मोड़ सके।

रीढ़ का कारोबार वह सत्तर का दशक रहा है और अफसोस कि हम उसकी आखिरी पीढ़ी है और हमारे हाथ से बग