अमित शाह को पहाड़ का पहला तोहफा, भाजपा का सूपड़ा साफ
अमित शाह को पहाड़ का पहला तोहफा, भाजपा का सूपड़ा साफ
सत्तर दिन में ही उतरने लगी कलई
अंबरीश कुमार
नई दिल्ली। करीब सत्तर दिन पहले हुए जिस चुनाव में उतराखंड की पाँचों सीटें मोदी लहर में बह गई थीं, आज विधान सभा उप चुनाव के नतीजों के साथ ही अब लहर थमती नजर आ रही है। पिछले 21 जुलाई को हुए विधानसभा उपचुनाव के आज घोषित नतीजों में जहां खुद मुख्यमंत्री रावत ने धारचूला से जीत हासिल की। वहीं अन्य दोनों सीटों, डोइवाला और सोमेश्वर को कांग्रेस ने बीजेपी से छीन ली। डोइवाला से पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरासिंह बिष्ट ने जीत हासिल की, वहीं सोमेश्वर से ऐन चुनाव से पहले बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुई रेखा आर्य ने विजय पताका फहरायी। इस जीत से कांग्रेस बम बम है। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि यह विजय एक सुखद संदेश है और जनता कांग्रेस को फिर से शक्ति देना चाहती है।
जिनका यह आकलन था कि अब मोदी पांच साल नहीं बीस साल से ज्यादा के लिए आ गए हैं, उनके लिए इस छोटे से राज्य के तीन छोटे से चुनाव ने उन्हें मंथन का मुद्दा दे दिया है। इस चुनाव में एक उप चुनाव तो हवाई दुर्घटना में बुरी तरह घायल मुख्यमंत्री हरीश रावत खुद लड़ रहे थे। ऐसा चुनाव जिसके सघन प्रचार तक में वे नहीं थे। बावजूद इसके वे जीते और रिकार्ड वोट से जीते। सत्तर दिन में ही यह चमत्कार हुआ है। इसके एक नहीं कई कारण है। आलू प्याज से लेकर टमाटर तक। हिंदुत्व के मद में चूर रोजेदार के मुंह में रोटी ठूंसने वाले बेलगाम सांसद हों या हिंदू राष्ट्र का सपना देखने वाले गोवा के भगवा ब्रिगेड के नेता। स्वदेशी जागरण मंच से विदेशी पूंजी के खिलाफ आन्दोलन और बीमा क्षेत्र में उनचास फीसद का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का परस्पर विरोधी फैसला। इस तरह की कई ऎसी घटनाएं इन सत्तर दिनों में हुई जिसने मोदी के जादूई मिथक को तोड़ दिया।
शुरुआत तो रेल भाड़े से हुई और 'बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार' का नारा लोगों को मुंह चिढ़ाता नजर आया। ठीक इंडिया शाइनिंग की तर्ज पर।
विपक्ष का मानना है कि नारा उछालकर ताली बजवा कर, छप्पन इंच का कथित सीना दिखाकर वोट लेना आसान था। पर इतने बड़े और भिन्न-भिन्न संस्कृतियों वाले इस विविध देश को चलाना कोई बहुत आसान नहीं होता, यह अब समझ में आ रहा है। महंगाई पर मनमोहन सिंह को गरियाना आसान था पर अब मीडिया को ना तो महंगाई नजर आ रही है और ना पकिस्तान की हरकतों पर राष्ट्रवाद की याद आ रही है। अभी तो शुरुआत है। पहाड़ के इस चुनाव नतीजों ने सिर्फ कांग्रेस ही नहीं पस्त पड़े समूचे विपक्ष को ताकत दे दी है। संकट में पड़ी कांग्रेस के लिए यह संजीवनी है। और सामने है कई राज्यों के चुनाव। इसलिए मोदी की अग्नि परीक्षा के दिन फिर आ गए हैं और अमित शाह को भाजपा अध्यक्ष बनाने के बाद पहाड़ का यह पहला तोहफा पार्टी को मिला है।
जनादेश न्यूज़ नेटवर्क


