अयोध्या से काठमांडू तक जन संस्कृति यात्रा
अयोध्या से काठमांडू तक जन संस्कृति यात्रा
जन संस्कृति यात्रा 2013
अयोध्या से काठमांडू तक
26 -11 - 2013 से 02 -12 - 2013
संस्कृति और राष्ट्र का आपस में गहरा सम्बन्ध होता है या फिर यूं कहें कि किसी राष्ट्र के निर्माण और विकास में उस देश की संस्कृति की अहम् भूमिका होती है। ऐसा हमारे बुद्धिजीवियो का मानना है। किसी राष्ट्र की संस्कृति ही उस राष्ट्र के विचारों, मूल्यों, उद्देश्यों और प्रथाओं को प्रदर्शित करती है। जितनी तेजी से हमारी संस्कृति का विकास होगा उतनी ही तेजी से हमारे राष्ट्र का भी विकास होगा। संस्कृति की पहचान सिर्फ गीत संगीत और नृत्य से ही नहीं होती बल्कि देश के आर्थिक, सामाजिक और अन्य गतिविधियों के क्षेत्रो में भी संस्कृति की एक खास भूमिका देखने को मिलती है। कभी साहित्य के रूप में, तो कभी गीत-संगीत के रूप में, वेश-भूषा में, बोली- भाषा में, नृत्य- चित्रकला में, पहाड़- जंगल हो या फिर नदियाँ हर जगह हजारो बहुमूल्य लोक जीवन शैलियाँ छिपी पड़ी है। बस जरूरत है तो उन्हें खोजने की, सहजने और सँवारने की। सदियों से संस्कृति ने मानव समाज को फलने-फूलने और सँवारने के लिये अपार संसाधन और विधाएँ उपलब्ध करायी हैं,चाहे फिर वो आदि मानव समाज हो या फिर पूर्ण सभ्य मानव समाज दोनों ही के विकास में संस्कृति का एक अहम् योगदान रहा है। लेकिन यहाँ पर यह बात गौर करने की है कि इसके सहजने और सँवारने में हमारा क्या योगदान रहा है? हाँ पूर्व में कुछ प्रयास जरूर हुए पर उनमे से अधिकतर सिर्फ लेखन तक ही सीमित रहे हैं उनमें इस साझी विरासत का गहन अध्ययन शामिल नहीं है सिर्फ किताबी और प्रचलित प्रथाओं के आधार पर साहित्य तैयार किया गया है पर वास्तव में जमीनी स्तर पर आम जन मानस के बीच जाकर अध्ययन नहीं हुआ। जिसके कारण आज भी कई संस्कृतियों में क्षेत्रीय और भाषिक संकीर्णता का स्पष्ट प्रभाव नजर आता है। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में, दलितों के बीच, पहाड़ी इलाको में अनेकानेक संस्कृतियाँ आज भी छिपी और दबी पड़ी हैं जो विकसित होने की बाट जोह रही हैं जिन्हें सहजने, सँवारने और समृद्ध बनाने की जरूरत है।
साथियों ! हमने यह संकल्प लिया है कि हम उन संस्कृतियों को सहेजने और सँवारनेका प्रयत्न करेंगे जो आज भी अनदेखी और अज्ञातवास का दंश झेल रही हैं और हम अपने इस संकल्प की शुरुआत एक "जन संस्कृति यात्रा" के माध्यम से कर रहे हैं।
यह यात्रा अपनी साझी विरासत के लिये पूरे विश्व में स्वर्ग माने जाने वाले दो देशों भारत और नेपाल के बीच निकल रही है। जिसका मुख्य मकसद सांस्कृतिक विरासत की खोज और अध्ययन कर उसे सार्वजनिक करना है। यह यात्रा एक ओर जहाँ भारत में ऊतर प्रदेश और बिहार के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद संस्कृति की पहचान और अध्ययन हेतु भ्रमण करेगी तो वहीं दूसरी ओर नेपाल के तरायी और पहाड़ी क्षेत्रों की जीवन शैली का जायजा लेते हुये काठमांडू के ऐतिहासिक स्थलों का दौरा करेगी।
हमारा मकसद अखबार और साहित्य वाली संस्कृति से परे हटकर आम जन मानस के बीच जाकर उन्हीं के शब्दों और भावो के अनुरूप लोक जीवन पर शोध करना और उसे समाज के बीच लाना है यात्रा के साथी इस दौरान आम जन के बीच जायेंगे उनसे मिलेंगे, बात चीत करेंगे और उनकी संस्कृति के बारे में तथ्य इकठ्ठा करेंगे, इन क्षेत्रों के प्राचीन और एतिहासिक स्थलों पर घूमेंगे, वहाँ के संरक्षक और प्रतिनिधियों से मिलेंगे उनके अनुभवों को जानेंगे तथा साथ ही क्षेत्र के विषय विशेषज्ञ के साथ वार्तालाप करेंगे, विषय से सम्बंधित सामग्री एकत्रित करेंगे और शोध पत्र तैयार करेंगे। इसकी की एक खास विशेषता यह है कि यह भेड़ चाल न हो के कुछ खास विषयों और मुद्दों पर केन्द्रित है जिन पर यात्री शोध प्रस्तुत करेंगे। यात्रा के विषयों में मुख्य रूप से ग्राम जन जीवन की शैली और रहन सहन के तौर तरीके, महिला अधिकारों की स्थिति और उनका संस्कृति में योगदान, साम्प्रदायिकता और सांप्रदायिक सोच का समाज पर प्रभाव, दलित समस्या और उनकी स्थिति और उसकी पहचान आदि विषयों पर अध्ययन के आधार पर प्राचीन और वर्तमान समय की सांस्कृतिक विरासत के बीच अंतर पर विश्लेषण शामिल हैं। यात्रा में प्राप्त अनुभव और अध्ययन को संकलित करते हुये "जन संस्कृति पुस्तिका" का प्रकाशन भी किया जायेगा।
जन संस्कृति 2013 में मुख्य रूप से विषय विशेष से जुड़े हुये ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता और साहित्यकार रहेंगे जो आम जन मानस के सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर काम कर रहे हैं।
युगलकिशोर शरण शास्त्री,
अयोध्या की आवाज,
राम जानकी मंदिर, दुरहीकुआँ, अयोध्या


