#असत्यमेवजयते : नीलामी पर सूट नहीं, देश है नीलाम
#असत्यमेवजयते : नीलामी पर सूट नहीं, देश है नीलाम
दोस्तों कि कौन कहता है कि गरीब भी भारत के वाशिंदे हैं! नीलामी पर सूट नहीं, देश है नीलाम दोस्तों कि कौन कहता है कि गरीब भी भारत के वाशिंदे हैं!
फतवे सिर्फ भगवा नहीं होते
पीएम के नाम वाले सूट पर लगी 1 करोड़ रुपए की बोली
अगर आप प्रधानमंत्री का सूट एक करोड़ रुपए से ज्यादा में खरीदना चाहते हैं, तो बोली लगा सकते हैं।
#असत्यमेवजयते
मेरे आस पास दसों दिशाओं में हिंदुस्तानी बस्तियां उखाड़ी जा रहीं हैं।आपके आसपास हिंदी हिंदू हिंदुस्तानी बस्तियां थोक भाव से उजाड़ हैं।
गरीबी उन्मूलन का नया फैशन स्टेटमेंट है मोदी का सूट।
यह सूट वहीं लोग खरीद सकते हैं,जिनके लिए छत सर छुपाने का ठिकाना नहीं,स्टोटस स्टेटमेंट हैं जो धड़ाधड़ करोड़ों अरबों की संपत्ति खरीद रहे हैं और उनकी खरीददारी की किसी तरह की जांच होती नहीं है।हमारे आसपास जो अजनबी चेहरों का सीमेंटेड जंगल का रुआब दाब है पुरजोर,जो प्रमोटर बिल्डर माफिया राज है,वे ही दावेदार मोदी नामावली के।
आखिर यह सच तो उजागर हो ही गया कि चुनाव प्रचार सुनामी की तरह प्रधान स्वयंसेवक का पंद्रहलाखटकिया सूट भी प्रायोजित है।
प्रधानमंत्री को मिले उपहारों की नीलामी में वह बेशकीमती सूट भी शामिल है जिसकी बदौलत संघ के बाप बतौर आप दिल्ली में अवतरित हो गया है।
अब नया विकल्प फिर वही कांग्रेस होने की कोई आशंका नहीं है।
न वाम विकल्प है और न आवाम विकल्प है।
न लाल छड़ी मैदान खड़ी है।
न नीले झंडे का नामोनिशां है।
केसरिया केसरिया
अब हरियाली मनसैंटो।
केसरिया आर्थिक सुधार।
केसरिया मुक्त बाजार।
केसरिया धर्म।
केसरिया अधर्म।
केसरिया दूसरका हरित क्रांति।
केसरिया मनसैंटो।
केसरिया बैरीटोन।
केसरिया विश्वकप क्रिकेट कार्निवाल।
बाकी हुकूमत डाउ कैमिकल्स है।
मनोरमा सिंह ने दीवाल पर खूब दर्ज किया हैः
हमारी प्रार्थनाओं पर, आसमान से उतर कर आयी/ नदी अब एक व्यथा कथा है/ योजनाओं, अभियानों और नीलामी के पैसों से निःसंग / उसे मालुम है अपना रास्ता/ और ये भी कि कहाँ से आई है और कहाँ तक जाना है/ फिर भी उम्मीदें छोड़ दी हैं, बहना छोड़ दिया है/ उसका सब्र ये है कि शायद हम जान पाएं कभी, अभी और कहाँ तक जाना है हमें ?/ केवल कभी- कभी पानी में डुबकी लगाते बच्चे कुछ देर उसे आश्वस्त करते हैं / नदी और ख़्वाब दोनों के साथ होने का / जो रेत पर नदी लिखने के बाद घर जाकर उसे खोजते हुए पलट सकते हैं एटलस / और बड़े होने पर अपने शहर को टटोलते हुए हमेशा पहुँचना चाहेंगे किसी नदी तक !
लाल में नीला हने का जो विरोध करते हैं या नीले में लाल से जिन्हे परहेज हैं, लाल के खिलाफ लाबंद नीला और नीले के खिलाफ लामबंद लाल,जिनकी विचारधारा हैं,वे सुकून महसूस कर सकते हैं कि विचारधारा और प्रतिबद्धता सही सलामत है, मेहनतकश तबका विभाजित है, अस्मिताओं की मारामारी है और शत प्रतिशत हिंदुत्व की सुनामी है।
झंडे फिर भी फहरा रहे हैं। नारे भी हैं। जुलूस भी हैं। धरना है, आमरण अनशन है, सत्याग्रह है। लोकतंत्र का सियासी फरेब लेकिन पुरतिलिस्म है। इस तिलिस्म में लेकिन अशर्फियां डालर ही डालर हैं।
मुक्तबाजारी मनुस्मृति वैदिकी धर्मराज्य है भारत जहां लालकिले की बुर्ज पर नीले और ललल परचम कभी न कभी लहरायेंगे क्या फर्क पड़ते हैं कि ऐसा होने तक हम लोग मारे जाएंगे या मार दिये जायेंगे।
तमाम प्रतिबद्ध विचारधारा अस्मिता झंडेवरदार सही सलामत ही नहीं, उससे भी आगे बहुत कुछ है, उनकी हैसियत पर सवाल नहीं किये जा सकते। फतवे सिर्फ भगवा नहीं होते।
फतवे लाल नीले कुछ भी हो सकते हैं मनुसमृति कारपोरेट केसरिया राज की सेहत की खातिर सारे रंग एकाकार हैं।
मसलन दिल्ली में नीला कुछ भी नहीं है तो बंगाल में भी लाल लापता है।
नीला केसरिया तो लाल भी केसरिया।
अब संघ का विकल्प बाप है।
यह करिश्मा जिस नामावली सूट का कमाल धमाल है, वह अब बिकाऊ है।
ममता बनर्जी की बनायी तस्वीरों के दाम और उन तस्वीरों को खरीदने वालों की खोज में सीबीआई लगा दी गयी है।
मगर क्या देश को मालूम है कि बतौर वाइब्रेंट पीपीपी माडल गुजरात के सीईओ और फिर हिंदू राष्ट्र के सीईओ को मिले तमाम उपहार ममता बनर्जी को मिले उपहारों से कम हैं या ज्यादा, वे उनसे बेशकीमती हैं या कम कीमत वाले, उन उपहारों को देने वाले कौन कौन हैं और बदले में उन्हें मेकिंग इन गुजरात वाया वाशिंगटन के हीरक आख्यान में कौन सी भूमिका बुनियादी ढांचा के नवनिर्माण की मिली है, फिर उन उपहारों को नीलामी में खरीदने वाले कौन लोग हैं?
नीलामी पर सूट नहीं, देश है नीलाम दोस्तों कि कौन कहता है कि गरीब भी भारत के वाशिंदे हैं!
हमारे हिसाब से जिस देश में साथ भोजन करने के अपराध में किसी दलित की नाक काटी जाती हो और विधर्मी धर्मस्थल फूंके जाने पर आस्था की स्वतंत्रता का झूठ परोसा जाता हो,इसके बावजूद सारे के सारे अछूत,गैरहिंदू भी केसरिया कारपोरेट राज में सवाल करने से डरते हों,खामोश हो फिजां,हवाओं पानियों में बेइंतहा खामोशी हो और अमन चैन की कीमत हिंदुत्व हो साफ साफ,उस देश को अभी इसी वक्त हिंदू राष्ट्र डिक्लेअर कर देना चाहिए।
कमसकम दुनिया वालों को मालूम तो चले कि इस देश में कयामत का मंजर क्या है कि मानवाधिकार, नागरिक अधिकार, प्रकृति और पर्यावरण और मनुष्यता का सारा वैदिकी साहित्य सिर्फ #असत्यमेवजयते।
पलाश विश्वास


