अस्मितावाद का नारा लगाने वाले अंततः फ़ासिस्ट राजनीति की शरण में जा पहुँचते हैं
अस्मितावाद का नारा लगाने वाले अंततः फ़ासिस्ट राजनीति की शरण में जा पहुँचते हैं
अस्मितावाद का नारा लगाने वाले अंततः दक्षिणपंथी साम्प्रदायिक फ़ासिस्ट राजनीति की शरण में जा पहुँचते हैं
आशुतोष कुमार
अस्मिता के लिए संघर्ष और अस्मितावाद के लिए संघर्ष में फ़र्क होता है .
उत्पीड़न, अपमान और शोषण के खिलाफ़ लड़ने वाले लोग जल्दी ही आपस में एकता में कायम कर लेते हैं. आर्थिक और सामाजिक न्याय के लिए होने वाले संघर्षों में कोई फांक नहीं होती. जय भीम लाल सलाम का नारा इसी सोच की उपज है.
उधर अस्मितावाद का नारा लगाने वाले अंततः दक्षिणपंथी साम्प्रदायिक फ़ासिस्ट राजनीति की शरण में जा पहुँचते हैं.
रामविलास से उदितराज तक यही सिलसिला दिखाई देता है.
अस्मितावाद अवसर की राजनीति है. अस्मिता का संघर्ष साहस और संकल्प की राजनीति है.
संघ परिवार का नारा था-बच्चा बच्चा राम का.
संघ की शरण में जाने के बहुत पहले रामविलास का नारा था - बच्चा बच्चा भीम का !
दोनों नारे विपरीत लगते हैं, लेकिन दोनों की राजनीतिक शैली एक ही है. आगे चलकर दोनों को एकजुट होना ही था.
आशुतोष कुमार की फेसबुक टाइमलाइन से साभार


