अस्मिता, आम्बेडकर और रामविलास शर्मा
अस्मिता, आम्बेडकर और रामविलास शर्मा
जाति सिरफ मनोवैज्ञानिक चीज नहीं है। उसका एक आधारिक आधार है। जाति के आधारिक आधार को बदले बिना जाति की संरचनाओं को बदलना संभव नहीं है।
जगदीश्वर चतुर्वेदी
रामविलास शर्मा के लेखन में अस्मिता विमर्श को मार्क्सवादी नजरिए से देखा गया है। वे वर्गीय नजरिए से जाति पर विचार करते हैं। आम तौर पर अस्मिता सहित्य पर जब भी बात होती है तो उस पर हमें बार-बार बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के विचारों का स्मरण आता है।
दलित लेखक अपने तरीके से दलित अस्मिता की रक्षा के नाम पर बाबासाहेब के विचारों का प्रयोग करते हैं। दलित लेखकों ने जिन सवालों को उठाया है उन पर बड़ी ही सिद्धांत के साथ विचार करने की आवश्यकक्ता है।
आंबेडकर-ज्ञोति बाव फुले का महान योगदान है कि उन्होंने दलित को सामाजिक विमर्श और सामाजिक मुक्ति का प्रधान विषय बनाया।
अस्मिता विमर्श का एक छोर महाराष्ट्र के दलित आंदोलन और उसकी सांस्कृतिक प्रकृतियों से जुड़ा है, दूसरा छोर यू.पी.-बिहार की दलित राजनैतिक और सांस्कृतिक प्रकृति से जुड़ा है।
अस्मिता विमर्श का तीसरा आयाम मासमीडिया और मासकल्चर के राष्ट्रव्यापी उभार से जुड़ा है। इन तीनों आयामों को मद्देनजर रखते हुए अस्मिता की राजनैतिक और अस्मिता सहित्य पर बहस करने की जरूरत है।


