आंकड़ा फिट , स्वास्थ्य सेवा में बिहार हिट
आंकड़ा फिट , स्वास्थ्य सेवा में बिहार हिट

Patna: Bihar Chief Minister Nitish Kumar addresses during a programme in Patna on Jan 7, 2019. (Photo: IANS)
"बिहार तरक्की की राह पर है और इस तरक्की में योगदान दे रहा है ..." पटना के एक एफ एम चैनल पर इस वाक्य के बाद एक अस्पताल का नाम है । यह कोई सरकारी अस्पताल नहीं है । यह एक प्रायवेट अस्पताल है । एक दूसरा अस्पताल सड़क के ऊपर बैनर टांग कर बता रहा है कि दिल्ली के फलां अस्पताल के कैंसर विशेषज्ञों (Cancer specialist) की टीम पटना के इस अस्पताल में ... बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा (Bihar Chief Minister Nitish Kumar's home district Nalanda) के पावापुरी में वर्धमान मेडिकल कॉलेज अस्पताल (Vardhaman Medical College Hospital) बना रहा है । अस्पताल में पढ़ाने वाले डॉक्टरोँ की बहाली हो चुकी है । लेकिन डॉक्टरी पढ़ने वाला कोई छात्र नहीं है । बिल्डिंग अभी तक बनी नहीं है । कागज पर बिल्डिंग बिहार राज्य पुल निगम बना रहा है । लेकिन बिल्डिंग बना रहा है आंध्र प्रदेश की एक निर्माण कंपनी । कंपनी को ले कर भी अनेक प्रकार के विवाद हैं । लगभग सात सौ करोड़ रुपये की परियोजना है ।
Bihar hit in health service !
इसी मेडिकल कॉलेज के बल पर बिहार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव अमरजीत सिन्हा गर्व से कहते हैं कि 40 साल के बाद बिहार के सरकारी क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज बन रहा है ।
बिहार में पहला मेडिकल कॉलेज (First Medical College in Bihar) 1925 में पटना में बना था - पीएमसीएच । दूसरा 1926 में दरभंगा में बना था । तब वहां एलएमपी ( लाइसेंस मेडिकल प्रैक्टिसनर ) की पढ़ाई होती थी । अल्पसंख्यकों के खाते में भी मुस्लिम समुदाय का कटिहार में मेडिकल कॉलेज है। किशनगंज में सिख समुदाय का मेडिकल कॉलेज है। यह दोनों सरकारी नहीं प्राइवेट श्रेणी के हैं।
यह भी एक संयोग ही हो सकता है कि प्रधान सचिव और मुख्य मंत्री दोनों का गृह जिला नालंदा ही है। इसके एक एक्टिंग प्रिसीपल भी हैं - प्रोफेसर (डॉक्टर ) अर्जुन सिंह । सिंह पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल के हड्डी विभाग के विभागाध्यक्ष भी हैं । पीएमसीएच के इमरजेंसी में उनका मोबाइल नंबर भी प्रमुखता से लिखा हुआ है । उनके विभाग में 500 बेड है । इसके साथ उन्हें आर्थो में एम एस करने वालों डॉक्टरों को पढ़ाना भी पढ़ता है । इससे कोई भी समझ सकता है कि यह डॉक्टर कितना व्यस्त रहता होंगे लेकिन बिहार सरकार डॉक्टर और अफसर में फ़र्क नहीं समझती । जैसे एक अफ़सर के ऊपर एक से अधिक विभागों का प्रभार होता है वैसे ही डॉक्टर के ऊपर भी है ।
अब आप समझ सकते हैं कि जब बिल्डिंग नहीं बनी है , पढ़ने वाले छात्र नहीं हैं तो एक्टिंग प्रिंसिपल से ले कर डॉक्टरों की बहाली क्यों हुई होगी ।
कुछ लोग बताते हैं कि बिहार सरकार अगर यह सब नहीं करती तो जब बिल्डिंग तैयार हो जाती तो मेडिकल कौसिल ऑफ इंडिया लंबा वक्त लगाती मान्यता देने में । उससे बचने के लिए डॉक्टर से ले कर प्रिंसिपल तक हैं । डॉक्टरों की अलग अलग जगह पर प्रतिनियुक्त कर दिया गया है । इनमें से अधिकांश को लंबे समय से वेतन नहीं मिला है । अप्रैल में खत्म होगा बिहार के मुख्य मंत्री की सेवा यात्रा।
मुफ्त में उनके लिए सुझाव है कि उसके बाद वह स्वास्थ्य यात्रा आरंभ कर सकते हैं । यह और बात है कि बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार को सब पता होता है । उनके एक करीबी ने इस आलेखक के साथ अनौपचारिक बातचीत में माना कि पटना में एम्बुलेंस सेवा 108 के ड्राइवरोँ को कम से कम एक हजार रुपये का बख्शिश प्रायवेट अस्पतालों से मिलता है ।
मुख्य मंत्री के आंख -नाक -कान माने जाने वाले करीबी मानने के लिए तैयार नहीं थे कि बख्शिश की रकम 5 हजार तक की होती है । न माने । बख्शिश तो बख्शिश है ।
बिहार के स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने अत्यंत ही संत भाव से डॉक्टरों को धमकाया या समझाया कि वही दवा लिखें जो सरकार ने मुफ्त में देना तय किया है । ऐसी तेरह दवाओं की एक सूची है । बाजार में इनमें से एक गोली की कीमत पचास पैसे से साठ रुपये तक है । मजे की बात यह भी है कि इनमें से कोई भी दवा पेन किलर नहीं है ।
जुगनू शारदेय


