नई दिल्ली। अभी 28 अक्टूबर को लखनऊ में युवा संकल्प सभा हुई। सभा में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दो प्रतिभावान पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष और दो पूर्व राज्यसभा सदस्य शामिल थे। आईएएस सूर्य प्रताप सिंह भी इस सभा में मंच पर उपस्थित थे।
सूर्य प्रताप सिंह ने बिना नाम लिए मंच पर उपस्थित लोगों के लिए अपनी फेसबुक पोस्ट में अपशब्दों का इस्तेमाल किया है और उनके लिए "छदम नेतागण" व 'फुस-मसाला' (Finished Force) हैं और बड़े 'अहंकारी" शब्दों का प्रयोग किया है।
से.नि. आईजी एस.आर. दारापुरी ने सूर्य प्रताप सिंह का उत्तर दिया है, जो निम्नवत् है।
डा. सूर्य प्रताप सिंह,
सब से पहले तो मैं आप को 28 अक्तूबर, 2015 को लखनऊ में “उत्तर प्रदेश बचाओ, उत्तर प्रदेश बनाओ” अभियान के अंतर्गत “युवा संकल्प सभा” की सफलता के लिए बहुत-बहुत बधाई देना चाहता हूँ, जिस में आप की सक्रिय सहभागिता रही. इस सभा के बारे में मीडिया ने अपना अपना आंकलन भी दिया है. इस से उत्तर प्रदेश में एक नए विकल्प की सम्भावना का आगाज़ भी हुआ है. परन्तु कल आप ने इस आयोजन के बारे में फेसबुक पर जो टिप्पणी की है, वह एक दम हैरान और परेशान करने वाली है. इस के पीछे आप का क्या मकसद है यह हमारी समझ से परे है. इसी लिए आप द्वारा की गयी टिप्पणी के कुछ बिन्दुओं को आम लोगों के लिए स्पष्ट कर देना ज़रूरी है.
सबसे पहले आप ने इस सभा के आयोजन के बारे में कहा है कि इस का आयोजन आप की “वास्ट” संस्था नहीं बल्कि “किसी अन्य संस्था” द्वारा किया गया है.
आप का यह कथन सही है. इस का आयोजन मुख्यतया आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेंद्र प्रताप सिंह की पहल पर किया गया था. इस आयोजन में कई अन्य राजनैतिक दलों, सामाजिक संगठनों/जन आन्दोलनों के सक्रिय कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीविओं, लेखकों और पत्रकारों की सहभागिता थी. इस के आयोजन से पहले इस सम्बन्ध में हम लोगों ने कई बैठकें करके जिस में आप भी शामिल थे, इस का एजंडा तय किया था. इस से स्पष्ट है यह आयोजन हम सब लोगों के सामूहिक प्रयास का परिणाम था.
इस आयोजन के सम्बन्ध में आप ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि इस आयोजन में “वास्ट की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश की गयी थी जिसे आप ने अपने भाषण में नंगा कर दिया.”
आप की यह टिप्पणी समझ से परे है, क्योंकि जब आप की “वास्ट” संस्था इस की संयोजक ही नहीं थी, तो फिर उस की लोकप्रियता को किसी अन्य द्वारा भुनाने की कोशिश करने का सवाल कहाँ से पैदा होता है?
आप को याद होगा कि आप ने अपनी संस्था के जिन-जिन प्रतिनिधियों को मंच पर बैठाना तथा बुलवाना चाहा, उन्हें बैठाया गया और बुलवाया गया. आप को अपने आग्रह पर दो-दो बार बोलने का मौका दिया गया.
यह ज्ञातव्य है कि यह आयोजन एक सामूहिक प्रयास था और इस में सब की सहभागिता भी थी. इस आयोजन का कोई एक दावेदार नहीं हो सकता.
दूसरे आप ने इस आयोजन में शामिल हुए लोगों की संख्या के बारे में टिप्पणी की है, जिस में आप ने दावा किया है कि इस में आप की “वास्ट” संस्था के 500 लोग शामिल थे, जो उपस्थित भीड़ का 90% थे.
आप ने यह भी कहा है कि उस हाल की क्षमता केवल 450 लोगों की ही है.
आप ने यह भी माना है कि यह आम सभा नहीं थी, बल्कि प्रतिनिधियों का सम्मलेन था.
इस सम्बन्ध में मैं आप का ध्यान आप की टिप्पणी की ओर दिलाना चाहूँगा, जिस में आप ने स्वयं कहा है कि ” इस में 'वास्ट' के वालंटियर्स तो सिर्फ़ कुछ सीमित संख्या में शामिल हुए थे.”
आप स्वयम जानते हैं कि इस सभा में भारी संख्या में अल्पसंख्यक, किसान/मजदूर, दलित/आदिवासी, राजनैतिक कार्यकर्त्ता और अन्य लोग शामिल थे.
इन तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में आप के पहले दावे और बाद के दावे में कोई सार्थक तालमेल बैठता दिखाई नहीं देता है.
तीसरे आप ने अपनी टिप्पणी में सभा में मंच पर मौजूद लोगों के बारे में जिन उपमाओं का इस्तेमाल किया है, वह बहुत ही आपत्तिजनक और दुखद है. आप ने अपनी टिप्पणी में उन्हें “कुटिल, छदम नेता, नक्काल नेता, फुस मसाला, अहंकारी, भड़ास निकालने वाले, उबाऊ भाषणकर्ता, स्वार्थी, तिकड़मवाज़, रोटी सेंकने वाले बगैरा बगैरा” कहा है.
आप ने यह भी कहा है कि युवाओं को इन नेताओं में विश्वास ही नहीं है.
यह विदित है कि उस मंच पर दो-दो पूर्व सांसद, राजनेता, सेवा निवृत्त न्यायाधीश, ख्याति प्राप्त लेखक/पत्रकार, जन संगठनों के प्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्त्ता, रिटायर्ड आई.पी.एस. अधिकारी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संगठन के दो-दो पूर्व अध्यक्ष, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन जनांदोलनों को समर्पित किया है, उपस्थित थे.
इन सब के बारे में आप द्वारा इस प्रकार की की गयी टिप्पणी बहुत आपत्तिजनक, दुखद और घटिया है. कम से कम आप जैसे वरिष्ठ और अनुभवी अधिकारी से इस प्रकार की टिप्पणी की अपेक्षा नहीं की जाती.
मैं आप को याद दिलाना चाहता हूँ कि आप ने जिन लोगों के बारे में इन विशेषणों का इस्तेमाल किया है, आप उनमें से अधिकतर के साथ इस से पहले इस आयोजन के बारे में विचार विमर्श में शामिल रहे हैं. सभा के एजंडे से आप की पूरी सहमति थी. आप सभा में संकल्प लेने में भी शामिल थे. आप ने इस सभा के एजंडा का सोशल मीडिया पर लगातार प्रचार भी किया था और प्रेस को भी ब्यान दिया था.
समझदारी यह कहती है कि आप दूसरों को अपमानित करके आगे नहीं बढ़ सकते. आज की राजनीति को समावेशी सोच की ज़रुरत है अलगाववादी सोच की नहीं.
चौथे आप ने अपनी टिप्पणी में इस मंच को “जाति, धर्म, बिरादरी का मंच” कहा है जो कि तथ्यों के बिलकुल विपरीत है.
क्या इस सभा में किसी विशेष बिरादरी, जाति या धर्म के लोग ही शामिल थे? क्या इस सभा में प्रस्तुत किये/लिए गए संकल्प जातिवादी थे? क्या आप इस सभा में लिए गए संकल्पों में किसी भी संकल्प को जातिवादी, धार्मिक या बिरदारीवादी कहेंगे, जिस में कहा गया है, “ इस सभा में उपस्थित हम लोग रोज़गार के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाने, प्रदेश में परिवारवाद/वंशवाद, नफरत और साम्प्रदायिक जुनून की राजनीति के विरोध में खड़े होने का संकल्प लेते हैं. यह सभा रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण सुरक्षा के मुद्दों पर प्रदेशव्यापी अभियान तेज करने का फैसला लेती है. यह सभा भ्रष्टाचार, महिला विरोधी हिंसा और जातीय भेदभाव के विरोध में प्रस्ताव लेती है.....” इस के अतिरिकत संकल्प पत्र में किसानों, मजदूरों, सामाजिक न्याय, समान शिक्षा व्यवस्था, महंगाई पर चिंता, चौपट हो रही खेती-किसानी को बचाने, खेती आधारित उद्योगों, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे जनहित के मुद्दों पर बजट में अधिक धन देने की मांग भी की गयी थी. क्या इस मंच द्वारा उठाये गए ये सब मुद्दे जनहित के मुद्दे नहीं हैं?
इन में कहाँ है जातिवाद और कहाँ है बिरादरीवाद ?
अंत में हम “उत्तर प्रदेश बचाओ, उत्तर प्रदेश बनाओ” अभियान की “युवा संकल्प सभा” में आप के सहयोग और सहभागिता के लिए आप का धन्यवाद करते हैं और आप द्वारा चलाये जा रहे जनजागरण अभियान की सफलता की कामना करते हैं. हम यह भी कामना करते हैं कि आप जल्दी सेवा निवृत्त होकर राजनीति की इस दलदल में ज़रूर आयें ताकि इसे यथासंभव स्वच्छ किया जा सके.
एस.आर. दारापुरी
आई.पी.एस. (से.नि.)
राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट