आईपीसीसी की ग्लोबल वार्मिंग पर रिपोर्ट : ऊर्जा रूपान्तरण एवं परिवर्तनकारी बदलाव
आईपीसीसी की ग्लोबल वार्मिंग पर रिपोर्ट : ऊर्जा रूपान्तरण एवं परिवर्तनकारी बदलाव
आईपीसीसी की ग्लोबल वार्मिंग पर रिपोर्ट : ऊर्जा रूपान्तरण एवं परिवर्तनकारी बदलाव
आईपीसीसी की ग्लोबल वार्मिंग पर रिपोर्ट जारी, वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के दुष्परिणाम बहुत भयंकर होंगे
नई दिल्ली,07 अक्तूबर। जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने आज दक्षिण कोरिया के इंचियोन में अपनी बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट जारी की। वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने पर आधारित यह रिपोर्ट एक सप्ताह तक चले समग्र सम्पादन सत्र के बाद जारी की गई है। सत्र के दौरान वैज्ञानिकों ने समरी फॉर पॉलिसीमेकर्स पर सरकारों द्वारा की गई टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया दी।
रिपोर्ट के बारे में जानकारी देते हुए पर्यावरणविद् व वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सीमा जावेद ने बताया कि :
· वर्ष 2050 तक दुनिया में कुल उत्पादित बिजली में कोयले से बनने वाली विद्युत की हिस्सेदारी को घटाकर शून्य के स्तर तक लाने की जरूरत है।
· अगर वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जा सका तो वर्ष 2050 तक उत्पादित होने वाली कुल बिजली में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी 70 से 85 प्रतिशत तक होने का अनुमान है।
· तापमान में 2 के बजाय डेढ़ डिग्री तक की ही वृद्धि होने पर ऊर्जा सम्बन्धी निवेशों में करीब 12 प्रतिशत तक की वृद्धि होगी। साथ ही कम कार्बन उत्सर्जन करने वाली बिजली उत्पादन प्रौद्योगिकी तथा ऊर्जा दक्षता में होने वाले सालाना निवेश में भी वर्ष 2015 के मुकाबले 2050 तक मोटे तौर पर पांच गुना की बढ़ोत्तरी हो जाएगी।
· तापमान वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए उद्योगों से निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा में वर्ष 2010 से 2050 में 75-90 प्रतिशत तक की कमी आने का अनुमान है।
डॉ. सीमा जावेद ने बताया कि अगर तापमान में वर्तमान दर के हिसाब से बढ़ोत्तरी जारी रही तो वर्ष 2030 से 2052 के बीच वैश्विक तापमान में औसतन डेढ़ डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो जाएगी।
उन्होंने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए सबसे अच्छा रास्ता यह है कि कार्बन उत्सर्जन को वर्ष 2030 तक साल 2010 के स्तरों के मुकाबले 45 प्रतिशत तक घटाया जाए और इसे वर्ष 2050 तक शून्य के स्तर तक लाया जाए। तभी, वर्ष 2040 को हम कुछ सुरक्षित कर पाएंगे।
डॉ. सीमा जावेद ने बताया कि इस रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर दर्शाया गया है कि मौजूदा पैरिस समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए ली गई प्रतिज्ञा ही पर्याप्त नहीं हैं। दुनिया के विभिन्न देशों की सरकारों को तापमान को नियंत्रित रखने की अपनी राष्ट्रीय नीतियों को और मजबूत करने की जरूरत है।
क्या है आईपीसीसी
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान का आकलन करने के लिए संयुक्त राष्ट्र निकाय है। इसका गठन 1988 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएन पर्यावरण) और विश्व मौसम संगठन (डब्लूएमओ) ने जलवायु परिवर्तन, इसके प्रभाव और संभावित भविष्य के जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन और शमन को आगे बढ़ाने के लिए नियमित वैज्ञानिक आकलन के साथ नीति निर्माताओं को प्रदान करने के लिए किया था। इसमें 119 सदस्य देश हैं।
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