साम्प्रदायिक आईबी का मनोबल बढ़ाने में लगी है सरकार
आतंकवाद के नाम पर गायब बच्चों के परिजन करें हैबियस कॉर्पस- रिहाई मंच
विधान सभा सत्र के दौरान होगा सपा के मुस्लिम विधायकों और मंत्रियों का घेराव
बटला हाऊस की बरसी पर 19 सितम्बर को रिहाई मंच करेगा सम्मेलन

लखनऊ 1 सितंबर 2013। रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा है कि जिस तरीके से पिछले दिनों आजमगढ़ के असदुल्ला अख्तर की गिरफ्तारी भारत-नेपाल सीमा के मोतिहारी से दिखायी गयी वहीं इस गिरफ्तारी को लेकर नेपाल के मीडिया में आया कि इन्हें नेपाल से गिरफ्तार किया गया है।

यूपी की कचहरियों में 2007 में हुये धमाकों में पुलिस तथा आईबी के अधिकारियों द्वारा फर्जी तरीके से फँसाये गये मौलाना खालिद मुजाहिद की न्यायिक हिरासत में की गयी हत्या तथा आरडी निमेष कमीशन रिपोर्ट पर कार्रवायी रिपोर्ट के साथ सत्र बुलाकर सदन में रखने और आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने की माँग को लेकर रविवार को 103 वें दिन भी जारी रिहाई मंच के धरने को सम्बोधित करते हुये मु. शुएब ने यह विचार व्यक्त किये।

श्री शुएब ने कहा कि जहाँ तक इस पूरे मसले को बारीकी से देखा जाय और जिस तरीके से पिछले दिनों चाहे वो लियाकत अली शाह का मामला हो या फिर टुंडा का इन सभी को भी नेपाल सीमा से गिरफ्तार करने का दावा किया गया था, दरअसल नेपाल एक कमजोर देश है जो भारत के खिलाफ बोलने से झिझकता है और भारतीय खुफिया एजेंसी आईबी को वहाँ से पहले से अपने पास रखे लोगों की गिरफ्तारी दिखाने में ज्यादा सहूलियत हासिल रहती है। जहाँ तक सवाल बोधगया में हुये धमाकों का है तो हर शख्स इस बात को जानता है कि जिस दिन आईबी प्रमुख आसिफ इब्राहिम ने इशरत जहाँ केस से आईबी अधिकारी राजेन्द्र कुमार का नाम हटाने के लिये कहा और ऐसा न करने पर मनोबल गिरने की दुहाई दी और उसके बाद बोधगया में धमाके हो गये तो इससे साफ हो गया था कि आईबी ने अपने सांप्रदायिक मनोबल को बचाने के लिये इस धमाके को कराया। ऐसे में जिस तरीके से इस घटना में इंडियन मुजाहिदीन का नाम लिया गया और ठीक उसके बाद यासीन भटकल की गिरफ्तारी की गयी, उस यासीन की जिसके आईबी के द्वारा प्लांटेड होने पर पहले से ही सवाल उठते रहे हैं तो ऐसे में यह साफ हो जाता है कि आईबी ही आईएम की संचालक है।

इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि आईबी के अधिकारियों को संविधान कोई विशेष छूट नहीं देता जिससे कि वे अपराध करके भी बचे रहें। इशरत समेत कई मामलों में जिस तरह सरकार आईबी अधिकारियों को बचाने में लगी है उससे लगता है कि यह विभाग कानून से ऊपर है। इससे पूरी दुनिया में भारत की न्याय व्यवस्था की बदनामी हो रही है।

रिहाई मंच के प्रवक्ताओं राजीव यादव और शाहनवाज आलम ने कहा कि हम खास तौर पर आजमगढ़ के उन परिवारों से कहना चाहेंगे जिनके बच्चे लम्बे समय से गायब हैं, उन्हें हैबियस कॉर्पस करना चाहिए क्योंकि सिर्फ आजमगढ़ ही नहीं दंरभंगा, समस्तीपुर, भटकल समेत विभिन्न जगहों के लड़कों को आईबी ने फँसाकर सिर्फ देश में ही नहीं दूसरे देशों सउदी, दुबई तक में रखा है और उन्हें समय पड़ने पर पकड़ने का दावा करती है। असदुल्ला अख्तर की गिरफ्तारी और उनके परिवार द्वारा इतने साल बीत जाने के बाद भी हैबियस कार्पस न करके आईबी के साम्प्रदायिक मनोबल को बढ़ने का मौका दिया गया। आईबी की निशानदेही पर पकड़ने का दावा करना जबकि वो उन्हीं के शिकंजे में था, से साम्प्रदायिक आईबी के हौसले बढ़ते हैं और बेगुनाहों की रिहाई की मुहिम पर सांप्रदायिक लोगों को बोलने का मौका मिलता है।

उन्होंने दरभंगा के फसीह महमूद जिनको सउदी अरब से पिछले साल मई में गिरफ्तार किया गया था और उनकी पत्नी निकहत परवीन द्वारा हैबियस कार्पस करने के बाद अन्ततः पाँच महीने बाद फसीह को भारत लाने की लड़ाई का उदाहरण देते हुये कहा कि निकहत द्वारा फसीह को लेकर किया गया हैबियस कार्पस ने सिर्फ खुफिया विभाग की आपराधिक भूमिका का ही पर्दाफाश नहीं किया बल्कि इस बात को भी स्थापित किया कि किस तरीके से मुस्लिम युवकों को उठाकर महीनों-महीनों रखा जाता है। आज तक भारत सरकार फसीह महमूद के मुद्दे पर मुँह चुराती है। ऐसे दौर में जब जनता के मनोबल को गिराया जा रहा है तो सिर्फ आजमगढ़ ही नहीं दरभंगा, भटकल समेत जहाँ के भी लड़के गायब किये गये हैं उन परिवारों को हैबियस कॉर्पस करना चाहिए।

रिहाई मंच के प्रवक्ताओं ने बताया कि जिस तरीके से आतंकवाद के नाम पर बेगुनाहों की रिहाई के सवाल पर न्यायपालिका तक का रवैया आजमगढ़ के शहजाद प्रकरण में सामने आया कि बिना सबूतों के उसे आजीवन कारावास की सजा दे दी गयी ऐसे में हम बाटला हाउस की पांचवीं बरसी पर विधानसभा, जहाँ रिहाई मंच का अनिश्चित कालीन धरना चल रहा है, वहाँ पर सम्मेलन करेंगे। आज जब यह साफ हो गया है कि चाहे इस देश की सर्वोच्च संस्था संसद पर आतंकी हमले की बात हो या फिर 26/11 मुंबई हमला इनमें सरकारों की भूमिका रही है और यह बात सरकार के गृह मंत्रालय के अधिकारियों का ही कहना है तो आखिर इतने बड़े लोकतंत्र में इतनी हिम्मत होनी चाहिए कि वो आतंकवादी घटनाओं की पुनर्विवेचना कराये। इन सभी बातों के साथ ही इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ प्रकरण में जिस तरीके से पिछले दिनों शिंदे समेत पूरा गृह मंत्रालय आईबी के राजेन्द्र कुमार को बचाने की कोशिश कर पूरी न्याय की प्रक्रिया को बाधित किया ऐसे में सुप्रिम कोर्ट की चुप्पी इस देश में एक नए तरह से फासीवाद का उभार कर रही है जहाँ खुफिया एजेंसियाँ पूरे लोकतांत्रिक ढांचे का टेकओवर कर रही हैं। क्योंकि इशरत जहां के कत्ल में शामिल आईबी अधिकारी राजेन्द्र कुमार वही शख्श है जो बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ में साजिद और आतिफ की हत्या में शामिल रहा है। रिहाई आंदोलन पिछले पांच सालों से लगातार बाटला हाउस की बरसी पर संजरपुर आजमगढ़ जहां के साजिद व आतिफ थे, समेत पिछले साल चौथी बरसी पर लगातार आतंकवाद की इस राजनीति के खिलाफ और वो जिन्हें इंसाफ की जगह पुलिस की गोलियां से छलनी किया गया, उनकी याद में अपना प्रतिरोध दर्ज कराता रहा है। इसी कड़ी में इस साल 19 सितंबर को लखनऊ विधानसभा पर एक बड़ा सम्मेलन करेगा।

मुस्लिम मजलिस के नेता मोहम्मद शकील और जैद अहमद फारूकी ने कहा कि विधान सभा सत्र के दौरान निमेष कमीशन रिपोर्ट रिपोर्ट, आतंकवाद के नाम पर बंद बेगुनाहों की रिहाई और दंगों पर खामोशी अख्तियार करने वाले सपा विधायकों और मुस्लिम मंत्रीयों का घेराव कर उन्हें जनता के सामने बेनकाब किया जाएगा।

धरने का संचालन राजीव यादव ने किया। इस दौरान मोहम्मद मोईन खान, आमिर महफूज, नजमुस्साकिब अब्बासी, मोहम्मद इकबाल नदवी, सहारनपुर से आए मोहम्मद शारिक, एडवोकेट इखलाक बनारसी, इरफान शेख, वासिफ शेख, मुमताज अहमद, कमर सीतापुरी, डाॅ0 एएच लारी, इसरारूल्ला सिद्दीकी, शिवनारायण कुशवाहा, एहसानुल हक मलिक और शिवदास प्रजापति उपस्थित थे।