आजादी की साझा लड़ाई सौ बरस चली, लेकिन 67 सालों में ही उन क्रान्तिकारियों को भुलाने की साजिश रची जा रही
आजादी की साझा लड़ाई सौ बरस चली, लेकिन 67 सालों में ही उन क्रान्तिकारियों को भुलाने की साजिश रची जा रही

नेशनल लोकरंग एकेडमी के तत्वाधान में - आजमगढ़ में प्रतिरोध की संस्कृति 'अवाम का सिनेमा'
हफ्ते भर बिखरे विविध रंग, शहर से निकलकर गाँव-गिरांव तक पहुँचा कारवाँ
आजमगढ़। नेशनल लोकरंग एकेडमी उत्तर प्रदेश ( आजमगढ़ ) के तत्वाधान में शिब्ली नेशनल पी जी कालेज के परिसर में क्रांतिवीर रामप्रसाद बिस्मिल सभागार अपनी तरफ बरबस खींच रहा था। दूधिया रौशनी से नहाए सभागार में देश दुनिया के लोग जुटे थे। मौक़ा था काकोरी के क्रांतिवीर की जेल डायरी, क्रान्तिकारियों की दुर्लभ तस्वीरों और दस्तावेजों की प्रदर्शनी का, जिसका उद्घाटन शहीद-ए-वतन अशफाकउल्ला खाँ के पौत्र अशफाक उल्ला खान ने किया। भारी संख्या में पहुँचे आमजन ने क्रान्तिकारियों के अनछुए पहलुओं को जाना और समझा।
इसी शाम बगल के दूसरे सभागार, जिसका नाम 1857 के महान क्रांतिकारी रज्जब अली के नाम पर रखा गया था, वहाँ 'भारतीय क्रांतिकारी आन्दोलन की विरासत और हमारा प्रतिरोध' सत्र आयोजित किया गया। इस सत्र को प्रसिद्द इतिहासकार प्रो, लालबहादुर वर्मा, नेपाल के वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र गुरागैन और नेपाल की विद्रोही कवयित्री तारा पराजुली ने सम्बोधित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता अशफाक उल्ला खान ने की, आभार नेशनल लोकरंग एकेडमी के अध्यक्ष डॉ. भक्तवत्सल ने किया।
प्रो. लालबहादुर वर्मा ने क्रांतिवीरों की यादों को सहेजने पर जोर देते हुए कहा कि शहीदों को याद करके ही देश की गरिमा को बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि शहीदों की मूर्ति बनाकर उन्हें भगवान देने की जरूरत नहीं है, उनके साथ रिश्ता बना के जिएं।
राजेन्द्र गुरागैन - जो क्रान्तिधर्मी कवि नजरुल इस्लाम की कविताओं का बांगला से नेपाली में अनुवाद करने के लिए जाने जाते हैं, ने सवाल उठाया कि यहाँ की सत्ता इस विद्रोही कवि से इतनी खौफजदा क्यों है ? भारत की केंद्र सरकार ने 1999 में नजरुल के गाँव में ' काजी नजरुल अकादमी ' बनाने का एलान किया था और इसी दर्ज पर 2011 में राज्य सरकार ने उनके गाँव में उनके नाम का विश्व विद्यालय खोलने की भी घोषणा की थी, लेकिन इतने साल बीत जाने के बाद भी एक कदम उस काम को आगे बढ़ा न सकी।
शहीदे-ए-वतन के पौत्र अशफाक उल्ला खान ने कहा कि इंकलाब की तेज धार पर चलने वाले हमारे पुरखे कौन थे ? कैसे थे ? उनकी क्रांति गाथा को नई पीढ़ी के मजबूत हाथों में सौंपना होगा। आजादी की साझा लड़ाई सौ बरसों तक चली, लेकिन 67 सालो में ही उन क्रान्तिकारियों को भुलाने की साजिश रची जा रही है।
दूसरे दिन शाम को शिब्ली कालेज परिसर में खुले आसमान के नीचे बनाये गये ' क्रांतिवीर पीर अली सभागार में ' सिनेमा की भाषा और भारतीय - नेपाली दस्तावेजी फिल्मों में उसका इस्तेमाल ' विषयक सत्र आयोजित किया गया। नेपाली फिल्म उद्योग में प्रतिरोध की संस्कृति ' के लेखक ऋषभ देव घिमिरे ने कहा कि सिनेमा से समाज जागृत होता है। नेपाली फिल्मों की अभिनेत्री रायल कल्पना ने कहा कि आज के दौर में 75 फीसदी फिल्में समाज में विकृति पैदा कर रही हैं।
इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे समाजवादी विचारक विजय नारायण ने कहा कि एक दौर था जब भारतीय सिनेमा आमजन का सिनेमा था। दो बीघा जमीन, मदर इण्डिया हो या जागते रहो जैसे सिनेमा भारतीय आमजन की भाषा के साथ उसका प्रतिनिधित्व करती रही देश की राजनीति बदली वैसे ही सिनेमा की परिभाषा बदल गयी। वर्तमान में सिनेमा पर कौन भारी है? सिनेमा कैसा बनेगा ? कौन हीरो होगा कौन नायिका होगी ?यह तय कोई और करता है, यह सिनमा और समाज के लिए घातक है, वैसे आज भी कुछ सार्थक सिनेमा बन रहे हैं। सिनेमा का मकसद तब पूरा होगा जब वैचारिक धरातल मजबूत होगा, इसलिए परिवर्तन के लिए लड़ो। सिनेमा की भाषा पर शोधार्थी अंकित अमलतास व आलोक मिश्र ने अपने विचार रखे।
तीसरे दिन मुख्यालय से तीस किलोमीटर की दूरी पर मालटारी के श्री मथुरा राय महिला महाविद्यालय में ' किसानों की त्रासदी-सवाल दर सवाल ' विषयक पर बुन्देलखण्ड से आये मानवधिकार कार्यकर्ता आशीष सागर ने कहा किसाल दर साल ' दो बीघा जमीन ' का किसान आत्महत्या कर रहा है। किसान जागरूक और संगठित हो तभी उसका अस्तित्व बच सकेगा। वरिष्ठ पत्रकार राम अवध यादव ने कहा कि किसानों को कहने के लिए फसल बीमा योजना की सुविधा लागू है, परन्तु कभी किसी किसान को सूखा, बाढ़, दैवीय आपदा में फसलें बर्बाद होने पर कोई लाभ मिलते नहीं देखा गया।
हरियाणा से आये श्याम स्नेही ने कहा कि किसानों को एक तरफ से प्रकृति की मार पड़ रही है तो दूसरी तरफ से सरकार की दुत्कार। अध्यक्षता कर रहे डॉ. कुबेर मिश्र ने कहा कि आज वर्तमान सरकारें किसानों की सब्सिडी बंद करने की साजिशें रच रही हैं।
चौथे दिन जिला मुख्यालय से 24 किलोमीटर दूर जीयनपुर सगड़ी के प्राचीन शिव मंदिर के सभागार में ' बाजार, लोकतंत्र और साम्प्रदायिकता " विषयक सत्र की शुरुआत में रामकवल गुप्त की मण्डली ने क्रांतिकारी लोकगीतों से श्रोताओं को झकझोरा। नेशनल पुलिस एकेडमी के पूर्व निदेशक संस्कृतिकर्मी क्रन्तिकारी लेखक विकास नारायण राय ने कहा कि बाजारवाद के पोषक पहले समस्याएँ बनाते हैं, फिर उनका इलाज बेचते हैं। ऐसे दौर में जब बाजार का शिकंजा चारों तरफ से कसता जा रहा है, ऐसे में हमे जागरूक होना पड़ेगा।
इस सत्र में डॉ. नितेश श्रीवास्तव, व वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप तिवारी ने सम्बोधन किया
पाँचवे दिन जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर क्रांतिकारी गाँव बीबीपुर में 'जन संघर्षों की वैचारिक एकजुटता' नामक सत्र रखा गया। डॉ. बी एन गौड़ ने चर्चा करते हुए कहा कि देश में चल रहे जन आन्दोलन की रूप रेखा को सबको मिलकर तय करना होगा, ताकि इन आंदोलनों को एक मुहिम बनाकर सामने लाया जा सके। सत्र में साथी पुष्पराज, जुलेखा जबीं साथी अनिल्र राय, साथी केशरी राय ने अपने विचार दिए। सत्र की अध्यक्षता करते हुए लवकुमार राय ने कहा कि आज जरूरत है समाज में अपने उन महान क्रान्तिकारियों को सिर्फ याद न करें, बल्कि हम उनसे स्वयं स्वाद स्थापित करके अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी बतायें।
आख़री दिन शहर से 28 किलोमीटर दूर महापंडित राहुल सांकृत्यायन बालिका इंटर कालेज कनैला में ' मौजूदा दौर में कबीर ' सत्र में मुख्य वक्ता आलोचक प्रो. पी. एन. सिंह ने कहा कि पाखंड और विवेकहीन आस्थाओं के लिए लड़ने मरने वालों की तादाद बढ़ रही है। ऐसे में आमजन को विवेकशील बनाना होगा।
प्रसिद्ध उपन्यासकार कन्हाई लाल प्रजापति ने कहा कि कबीर परम्परागत रूढ़ियों को तोड़ने वाले थे और सामाजिक विकास के पक्षधर रहे हैं। इसी दौरान आकाशवाणी के प्रसिद्ध कबीर भजन गायक रामप्रसाद साहेब ने कबीर वाणी सुनाकर श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। इसी दौरान नेपाल से आये साहित्यकारों को राष्ट्रीय सम्मान से से अलंकृत किया गया। इन छ: दिनों के कार्यक्रम का संचालन नेशनल लोकरंग एकेडमी के महासचिव सुनील दत्ता ने व आये अतिथियों का स्वागत नेशनल लोकरंग एकेडमी के संरक्षक जनहित इण्डिया के सम्पादक मदन मोहन पाण्डेय ने किया। कार्यक्रम के अन्त में एकेडमी के अध्यक्ष डॉ. भक्तवत्सल ने आभार व्यक्त किया।
छ: दिवसीय इस आयोजन में कविता पोस्टर, किताबों के स्टाल और देर रात तक फिल्मों का प्रदर्शन आकर्षण का केंद्र रहा। आयोजन में दिखाई गयी फिल्में थीं- इंकलाब, संविधान, रोटी, लोहा ग्राम है, जमीर के बंदी, द मैंन हू मूब्ड द माउंनटैन, खड्डा, फ्रीडम, पानी पे लिखा, हार्वेस्ट ऑफ ग्रीक, माई बाडी विपन, गाँव छोड्व नाही, मोमबत्ती, एक उड़ान, हथौड़े वाला, जीत, चरण दास चोर। इस दौरान सभी आये अतिथियों को क्रांतिवीर रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा ' भेंट की गयी और नेशनल लोकरंग एकेडमी द्वारा उन्हें स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया।
कार्यक्रम में जिले के संभ्रांत नागरिक बृजेश सिंह, राम कुमार सिंह, ओ पी सिंह, उपाध्यक्ष संजय श्रीवास्तव, उमैर साहब, डॉ. ग्यास आलम दीनू जायसवाल आदि उपस्थित रहे।
एम जे विवेक - प्रदीप तिवारी
Web title-The common fight for freedom lasted for a hundred years, but in 67 years, a conspiracy is being hatched to forget those revolutionaries.


