आशीष सागर

कल रात जो कुछ भी दिल्ली के रामलीला मैदान में घटित हुआ वो लोकतंत्र का सबसे काला दिन है ,दोस्तों मै भले ही
बाबा रामदेव के उपवास का कल तक विरोधी था क्योंकि उसमे अन्ना हजारे जैसी सार्वजनिक पारदर्शिता

नहीं थी मगर ये उतना ही दुखदाई है कि रात के 1.30 बजे जब आदमी अपनी निद्रा के सबसे गहरे सोपान पर होता है दिल्ली सरकार के एक हुकुम
पर क्रूर पुलिस ने क्या बुजुर्ग ,महिला - बच्चे , युवा सभी पे बेतहाशा तरीके से बर्बरता का प्रमाद दिया है यह तो जानवर की संज्ञा से भी ऊपर की ज़मीनी बात है , साथ ही यहाँ यह भी मूल प्रश्न है मेरा देश की काग्रेस सरकार से कि क्या सोनिया गाँधी जी देश से अपने पति की हत्या का बदला तो नहीं ले रही है ? क्या बाबा रामदेव का अनशन सरकार के लिए टेंशन बन गया था ? क्या शांतिपूर्वक अपनी बात कहना गुनाह है ?
आपको किसी की बात नहीं माननी है वो तो समझ में आता है मगर इस तरह से तो आपने ये ही साबित किया है की देश की जनता का ध्यान
मूल मुद्दों से हट कर एल व्यक्ति विशेष पर चला जाये , आप भष्टाचार पर कुछ करना ही नहीं चाहते है , कल रात जो भी हुआ वो आजाद देश की जनता के स्वाभिमान की सीधी दुर्दात हत्या है , देश का उवा जिस राहुल गाँधी को अपना आदर्श मानता है वो उनसे क्या ये सवाल कर सकता है कि आप ने जो आरोप उत्तर प्रदेश के सरकार, मायावती पर गाजियाबाद के भट्टा पारसोल की घटना पे लगाये थे अब क्या आपकी सरकार उनसे अलग है ? इस सरकार के खिलाफ जो भी बन पड़े वो करना होगा मै ऐसा इसलिए नहीं कहता हू कि मुझे सरकार का विरोध है पर जो उसने किया है वो तो लीबिया के गद्दाफी और सद्दाम हुसैन की यादे ताजा कर्ता है जागो - देश जागो अब तो आत्माओ को मुर्दा न करो आखे खोलो - हल्ला बोलो
" कातिल ने की कुछ इस तरह कत्ल की साज़िस की थी , उसको नहीं खबर लहू बोलता भी है "