मानवाधिकारों की रक्षा के लिए संकल्प नज़र नहीं आया

Rampant abuse of counter-terrorism laws threatens human rights globally, warns UN expert

नई दिल्ली, 14 मार्च 2024: संयुक्त राष्ट्र के एक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ (An independent UN human rights expert) ने आगाह किया है कि पिछले दो दशकों में जिस मज़बूती के साथ आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक लड़ाई लड़ी गई है, मानवाधिकारों की रक्षा के लिए वैसा संकल्प नज़र नहीं आया है.

मानवाधिकार परिषद में यूएन के विशेष रैपोर्टेयर की रिपोर्ट

संयुक्त राष्ट्र समाचार के मुताबिक आतंकवाद से निपटने के दौरान मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के विषय पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर ने बीते मंगलवार को मानवाधिकार परिषद में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसमें आतंकवाद-रोधी प्रयासों के दौरान मानवाधिकार हनन मामलों (Human rights abuses during counter-terrorism efforts) को दर्शाया गया है.

इनमें ग़ैरक़ानूनी ढंग से लोगों को जान से मारना, मनमाने ढंग से हिरासत में रखना, यातना देना, अनुचित ढंग से मुक़दमा चलाना, सामूहिक निगरानी के ज़रिये निजता का हनन करना और अभिव्यक्ति की आज़ादी, शान्तिपूर्ण सभा में हिस्सा लेने व राजनैतिक भागीदारी के अधिकारों के हनन हैं.

विशेष रैपोर्टेयर ने सचेत किया कि मानवाधिकारों के मुद्दे पर बड़ी शक्तियों द्वारा दोहरे मानदंड अपनाए जाने से अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार प्रणाली (international human rights system) में सार्वजनिक भरोसा दरक रहा है.

“देशों को मानवाधिकारों पर बयानबाज़ी तक सीमित रहने वाले संकल्पों से परे हटना होगा और इसके बजाय, सभी आतंकवाद-रोधी उपायों के केन्द्र में मानवाधिकारों को रखना होगा.”

‘ग़लत इस्तेमाल’ पर चिन्ता

मानवाधिकार विशेषज्ञ बेन सॉल (Prof Ben Saul) ने कहा कि आतंकवाद-रोधी उपायों के ग़लत इस्तेमाल से ना केवल संदिग्ध अपराधियों के अधिकारों का हनन होता है, बल्कि निर्दोष लोगों की आज़ादी पर जोखिम मंडराता है.

उन्होंने चिन्ता जताई कि आतंकवाद सम्बन्धी अपराधों की मोटे तौर पर व्याख्या को हथियार बनाया जाता है, और राजनैतिक विरोधियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, अल्पसंख्यकों व छात्रों समेत नागरिक समाज इसकी चपेट में है.

विशेष रैपोर्टेयर ने कहा कि अनुचित ढंग से और लम्बे समय तक आपातकाल जारी रहने से मानवाधिकारों की स्थिति कमज़ोर होती है.

“आतंकवाद के जवाब में अत्यधिक सैन्य हिंसा से बुनियादी अधिकारों पर चोट पहुँचती है, जिनमें अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानून और अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक क़ानून के हनन मामले हैं.”

मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा कि देशों द्वारा सीमा-पार सैन्य हिंसा का इस्तेमाल करने की घटनाएँ बढ़ रही हैं, जबकि यह अन्तरराष्ट्रीय क़ानून में उल्लिखित आत्मरक्षा के दायरे में नहीं है.

बेन सॉल के अनुसार, अनेक देश आतंकवाद के बुनियादी कारणों (Basic causes of terrorism) से निपटने में विफल रहे हैं, राजसत्ता द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है, मगर ऐसी घटनाओं के लिए दंडमुक्ति की भावना प्रबल है.

नागरिक समाज की भूमिका

उन्होंने खेद जताया कि संयुक्त राष्ट्र भी इस समस्या का हिस्सा रहा है, और क़ानून के राज की संस्कृति या मानवाधिकारों के लिए रक्षा उपायों के अभाव में अधिकारवादी सरकारों को आतंकवाद-रोधी क़ानूनों को मज़बूत बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया है.

बेन सॉल ने कहा कि आतंकवाद-रोधी कार्रवाई में मानवाधिकारों के लिए अनेक जोखिम हैं, बढ़ते अधिकारवाद से लेकर, उभरते घरेलू ध्रुवीकरण व चरमपंथ, भूराजनैतिक प्रतिस्पर्धा, सुरक्षा परिषद में जारी गतिरोध और सोशल मीडिया के ज़रिये उकसावे, भ्रामक जानकारी के प्रसार तक.

इसके मद्देनज़र, बेन सॉल ने यूएन से आग्रह किया है कि आतंकवाद-रोधी उपायों को विकसित करते समय नागरिक समाज से चर्चा भी की जानी होगी.

कौन होते हैं मानवाधिकार विशेषज्ञ

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं.

उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिये करती है.

ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.

Misuse of anti-terrorism law, 'threat to human rights'