राम पुनियानी
हमारी वर्तमान दुनिया की एक बड़ी त्रासदी यह है कि भारी संख्या में मासूम लोग आतंकवाद की भेंट चढ़ रहे हैं। आतंकवाद से मुकाबला करने के लिए सुरक्षा आदि के उपायों पर जो भारी खर्च हो रहा है, वह भी पूरी तरह से अनुत्पादक है। इससे भी बड़ी मुसीबत यह है कि आतंकवाद को धर्म से जोड़ दिया गया है।
लगभग दो सप्ताह पहले; जुलाई 2016,अमरीका के ओरलैंडो स्थित पल्स क्लब में 49 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस भयावह घटना की दो व्याख्याएं की जा रही हैं। पहला, यह जिहादी आतंकवाद है और दूसरा, यह एक ऐसे व्यक्ति की करतूत है जो समलैंगिकों से घृणा करता था।
एक टिप्पणीकार ने लिखा,
'ऐसा लगता है कि वह इस्लामिक कट्टरतावाद और समलैंगिकों के प्रति घृणा दोनों से प्रेरित था' 'आतंकवाद या समलैंगिकों से घृणा उत्तर है 'दोनों।
एक अन्य घटना में आईएस द्वारा बगदाद में किए गए एक बम धमाके में 119 लोग मारे गए।
गत एक जुलाई को बांग्लादेश में 28 लोगों की हत्या कर दी गई। जिन लोगों ने अपनी जानें गंवाई, उन्हें विदेशी बताया जा रहा है। कुछ रपटों के अनुसार, आतंकवादी हमलावर आईएस से नहीं बल्कि जमात-उल-मुजाहिदीन से जुड़े हुए थे।
एक टिप्पणीकार का कहना है कि इन दिनों आईएस और अलकायदा में भारतीय उपमहाद्वीप में अपने खूनी पंजे फैलाने की प्रतियोगिता चल रही है। बांग्लादेश में इस्लामिक अतिवाद की जड़ें जमायत-ए-इस्लामी और उसकी कट्टरवादी विद्यार्थी शाखा इस्लामी छात्र शिबिर में हैं।

इन सारी विध्वंसात्मक गतिविधियों में क्या समानता है?
सतही तौर पर देखने से ऐसा लग सकता है कि ये सब इस्लामवादी आतंकवाद से जुड़ी हुई हैं। इस्लामवादी आतंकवाद शब्द 9/11 की त्रासदी के बाद से प्रचलन में आया है परंतु यदि हम थोड़ी गहराई से पड़ताल करेंगे तो हमें इन घटनाओं की पृष्ठभूमि में कई अन्य कारक भी नज़र आएंगे। ओरलैंडों की घटना का संबंध अमरीका की गन संस्कृति से है। इस घटना के बाद अमरीकी कानून निर्माताओं को भी यह लगने लगा है कि आग्नेय अस्त्र रखने संबंधी कानूनों में परिवर्तन किया जाना चाहिए।
ओरलैंडों की घटना भयावह थी परंतु इससे मिलती-जुलती छोटी-मोटी घटनाएं अमरीका में होती रहती हैं और उनका इस्लामिक आतंकवाद से कोई संबंध नहीं होता। हां, बगदाद के आतंकी हमले का संबंध निश्चित तौर पर इस्लामिक स्टेट से था।

बांग्लादेश में लंबे समय से हत्याओं और आतंकी हमलों का दौर
जहां तक बांग्लादेश में हो रहे आतंकी हमलों का प्रश्न है, ऐसा प्रतीत होता है कि वे बांग्लादेश की राजनीति में लंबे समय से सक्रिय कट्टरवादी तत्वों की करतूते हैं। वहां लंबे समय से हत्याओं और आतंकी हमलों का दौर चल रहा है। कई प्रगतिशील-धर्मनिरपेक्ष व उदारवादी ब्लॉग लेखकों और हिन्दुओं की हत्याएं हो चुकी हैं।
बांग्लादेश में हो रही आतंकी घटनाओं का संबंध किसी बाहरी संगठन से नहीं है बल्कि वे वहां के राज्य और समाज की राजनीति में बढ़ती कट्टरता को नियंत्रित करने में असफलता का परिणाम है।
पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत-तीनों में कट्टरता और सांप्रदायिकता बढ़ रही है और इससे अतिवाद को प्रोत्साहन मिल रहा है।

पाकिस्तान का इस्लामीकरण
पाकिस्तान में ज़िया-उल-हक के शासनकाल में इस्लामिक कट्टरवाद को आधिकारिक मान्यता मिली। अपनी तानाशाही स्थापित करने के लिए ज़िया-उल-हक ने सामंती ताकतों और मुल्लाओं के साथ गठजोड़ किया और मौलाना मौदूदी; देवबंदी इस्लाम, के सिद्धांतों को प्रोत्साहन दिया।
इस प्रक्रिया को पाकिस्तान का इस्लामीकरण कहा जाता है। इस इस्लामीकरण के केंद्र में था सामाजिक व्यवहार और नियमों को शरिया की मौलाना मौदूदी की व्याख्या के अनुरूप गढ़ने की कोशिश। वहां सामंती-दकियानूसी सोच को बढ़ावा दिया गया और महिलाओं व नागरिक स्वतंत्रताओं का दमन किया गया।
भारत में धर्म के नाम पर राजनीति, सांप्रदायिकता और सांप्रदायिक हिंसा के रूप में सामने आई, जिनके शिकार धार्मिक अल्पसंख्यक बने।
इसी विचारधारा का एक दूसरा पहलू है हिन्दुत्ववादी संगठन, जो मालेगांव, मक्का मस्ज़िद; हैदराबाद, अजमेर और समझौता एक्सप्रेस धमाकों के लिए ज़िम्मेदार बताए जाते हैं। सांप्रदायिक-कट्टरवादी विचारधारा का लक्ष्य है शरिया या अतीत की महान परंपराओं के नाम पर देश पर पूर्व-आधुनिक, सामंती मूल्य लादना, जो जाति,वर्ग व लिंग के आधार पर भेदभाव को मान्यता देते हैं।

अलकायदा और आईएस के आतंकवाद की जड़ें कच्चे तेल में
जहां तक अलकायदा और आईएस के आतंकवाद का सवाल है, उसकी जड़ें कच्चे तेल के संसाधनों पर कब्ज़ा ज़माने की राजनीति में हैं और इसमें अमरीका की नीतियों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
अमरीका ने पाकिस्तान में ऐसे मदरसों की स्थापना करवाई जिनमें विद्यार्थियों के दिमाग में कट्टरवादी वहाबी इस्लाम के मूल्यों को ठूंस-ठूंस कर भरा गया। इन मदरसों में विद्यार्थियों को सिखाया गया कि काफिरों को मारना ही जिहाद है। इस तरह के संगठन यह मानते हैं कि उनसे असहमति रखने वालों को जिन्दा रहने का हक नहीं है। उन्होंने साम्यवाद का विरोध किया, अफगानिस्तान पर सोवियत कब्ज़े के खिलाफ संघर्ष किया और अब वे काफिरों की हत्या को अपना धर्म मानते हैं।
पाकिस्तान के इस्लामीकरण की जो प्रक्रिया ज़िया-उल-हक के शासनकाल में शुरू हुई थी, उसे अलकायदा और उसके साथी संगठनों ने जारी रखा।

अलकायदा ने आईएस की विचारधारात्मक नींव का निर्माण किया।
हिलेरी क्लिन्टन ने इस सब में अमरीका की भूमिका की अत्यंत सारगर्भित व्याख्या की है। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि अमरीका, कई तरीकों से आतंकवादी समूहों का समर्थन करता आ रहा है।
वर्तमान समय में दो प्रकार के आतंकवाद हमारी दुनिया को खौफज़दा किए हुए हैं। एक का उद्देश्य है पूर्वःआधुनिक मूल्यों की पुनर्स्थापना। इनमें शामिल हैं पाकिस्तान व बांग्लादेश ;मौलाना मौदूदी, भारत ;हिन्दुत्व और म्यांमार व श्रीलंका।
म्यांमार और श्रीलंका में बौद्ध धर्म की एक विशिष्ट व्याख्या का इस्तेमाल,हिंसा को उचित ठहराने के लिए किया जा रहा है।
दूसरे प्रकार का आतंकवाद वह है जिसे तेल के संसाधनों पर कब्ज़ा करने की वैश्विक राजनीति से समर्थन और सहयोग मिल रहा है।
यह त्रासद है कि दोनों ही प्रकार के आतंकवाद, धर्म, विशेषकर इस्लाम, के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे धर्म के आधार पर अपनी कुत्सित हरकतों को उचित बताते हैं।

हर धर्म में कई धाराएं होती हैं।
जैसे इस्लाम में जहां एक ओर उदारवादी व समावेशी सूफी परंपरा है, तो दूसरी ओर वहाबी कट्टरता भी है। उसी तरह हिन्दू धर्म में भक्ति परंपरा है, तो ब्राह्मणवाद भी है। अमरीका ने पश्चिम एशिया में अपने राजनीतिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इस्लाम के वहाबी संस्करण का इस्तेमाल किया। ज़िया ने अपनी तानाशाही स्थापित करने के लिए मौदूदी का सहारा लिया। हिन्दू राष्ट्रवाद-हिन्दुत्व ने अपने राजनीतिक एजेंडों की पूर्ति के लिए नव-ब्राह्मणवाद को अपना हथियार बनाया।
विभिन्न धर्मों की अलग-अलग धाराओं के अस्तित्व में बने रहने से कोई खास समस्या नहीं होती। समस्या तब होती है जब राजनैतिक शक्तियां अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए इनमें से एक या अधिक धाराओं का इस्तेमाल करना शुरू कर देती हैं। इस तथ्य को यदि हम समझ लेंगे तो हम आतंकवाद से सफलतापूर्वक मुकाबला करने की ओर एक कदम बढ़ा लेंगे।
हमें यह समझना होगा कि आतंकवाद,दरअसल, धर्म का केवल लबादा ओढ़े हुए है। उसके असली उद्देश्य राजनैतिक हैं।