आत्मघाती रंगभेदी नस्ली अंध राष्ट्रवाद भारतवर्ष और हिंदू धर्म दोनों के लिए महाविनाश
आत्मघाती रंगभेदी नस्ली अंध राष्ट्रवाद भारतवर्ष और हिंदू धर्म दोनों के लिए महाविनाश
पलाश विश्वास
ब्रेक्सिट के जनमत संग्रह में हमने संप्रभु राष्ट्र, लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता के मुद्दों पर सिलसिलवार चर्चा की है। यह इसका सकारात्मक पक्ष है। यूरोपीय यूनियन के बिखरने से अमेरिकी शिकंजे से यूरोप की मुक्ति की दिशा भी खुलती है। बाकी सबकुछ नकारात्मक है। जिसकी चर्चा तेज हो रहे घटनाक्रम के तहत हम नहीं कर सके हैं। सबसे बड़ा घातक परिणाम नस्ली रंगभेदी अंध राष्ट्रवाद की वैश्विक सुनामी है।
ब्रिटेन में पुलिस और प्रधानमंत्री तक रंगभेदी नस्ली हिंसा की वारदातों में इजाफा से बेहद चिंतित है।
अब अमेरिका के डलास में जिस तरह उग्र वंचित प्रताड़ित अश्वेत अस्मिता का घात लगाकर हमला श्वेत वर्चस्व को लहूलुहान कर गया उससे दुनियाभर में पुलिसिया साम्राज्यवाद और मुक्तबाजार का बादशाह अमेरिका में गृहयुद्ध की नई शुरुआत हो गयी है और साफ जाहिर हो गया कि अश्वेत अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा के दो-दो कार्यकाल के बावजूद अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग का सपना साकार हुआ नहीं है बल्कि नस्ली राष्ट्रवाद से अमेरिका के पचास राज्यों में हालात दुनिया के किसी हिस्से से कम खराब नहीं है। यह अस्मिता राजनीति को खुली चेतावनी है।
बहरहाल डलास गोलीबारी के संदिग्ध की पहचान हो गई है।
बांग्लादेश के हगमलावरों के परिचय जैसे चौंकाने वाले हैं उसी तरह इस हमलावर के एक अन्य साथी लुई कांतो का बयान भी विस्फोटक है उसकी पृष्ठभूमि के मद्देनजर।
कांतो ने कहा कि जॉनसन का व्यक्तित्व अजीब सा था। कांतो ने फेसबुक पर लिखा,
'हम सभी जानते थे कि वह अजीब था लेकिन इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि वह यह भी कर सकता है। 'जॉनसन के सोची समझी साजिश के तहत पुलिसकर्मियों की हत्या करने से उसके परिवार के सदस्य हैरान हैं।
गौरतलब है कि जॉनसन का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था या उसके किसी आतंकवादी समूह से संबंध नहीं था ।
डलास के हत्याकांड का असर सिर्फ अमेरिका पर नहीं रंगभेद के गर्भ से निकले इस अंध राष्ट्रवाद के शिकार राष्ट्र राज्यों के सत्ता वर्चस्व को चुनौती की शक्ल में दुनियाभर में देर सवेर होना है।
ब्रेक्सिट के साथ-साथ यूरोप और अमेरिका में शरणार्थियों के लिए सारे दरवाजे बंद कर देने के नये उद्यम के साथ बांग्लादेश में हालात सारे यूरोप, मध्यएशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका में जिस तेजी से बन रहे हैं, इस दुनिया में अमन चैन, जम्हूरियत, मजहब, सियासत, इसानियत और अदब के लिए, इससे बढ़कर आम लोगों की जान माल के लिए वह ट्विन टावर के विध्वंस से बड़ा खतरा है।
सबसे घातक नतीजा तो जनांदोलनों पर होना है।
ट्विन टावर विध्वंस के बाद दुनियाभर में और भारत में भी जन्मजात नागरिकता खत्म कर दी गयी और भारी तादाद में दुनियाभर में रातोंरात अपने ही देश में करोड़ों लोग विदेशी घोषित कर गये, जिनमें भारत में बसे करीब सात करोड़ विभाजन पीड़ित हिंदू बांगाली शरणार्थी शामिल हैं। जिनसे बाकी भारत की क्या कहें, पश्चिम बंगाल की भी कोई सहानुभूति नहीं है।
सलवाजुड़ुम विश्वव्यापी वैध हो गया
अब अमेरिका में अश्वेत जुलूस के साथ चल रहे श्वेत पुलिस पर हमले के बाद समझिये कि सलवाजुड़ुम विश्वव्यापी वैध हो गया। कहीं भी किसी भी आंदोलन को अमन चैन के लिए खतरा बताकर बेरहमी से कुचल देने का लाइसेंस सत्तावर्ग को मिल गया। इसके साथ ही जनता को कुचलने के तमाम कायदा कानून, जल जंगल जमीन नागरिकता आजीविका रोजगार नागरिक और मानवाधिकार खत्म करने के नरसंहारी अश्वमेध को भी वैधता मिल गयी है जो और व्यापक और बेरहम होगा।
वैसे 1991 के बाद भारत में लोकतंत्र और संविधान, नागरिक और मानवाधिकार निलंबित हैं। 11 मई को होने वाली केंद्रीय कर्मचारियों की हड़ताल शुरु होने से पहले कुचल दी गयी है। इंसानियत के हक हकूक की लड़ाई और मुश्किल हो गयी है और सत्ता और निरंकुश।
अंध राष्ट्रवाद का रंगभेदी तेवर मनुष्यता और प्रकृति के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
हम भी हिंदू हैं जन्मजात और हिंदुत्व से हमारी दुश्मनी नहीं है।
हमारी जड़ों में, हमारी संस्कृति और लोकसंस्कृति, हमारे माध्यमों और विधाओं में यह हिंदुत्व सर्वव्यापी है। लेकिन हमारा हिंदुत्व आक्रामक उग्र हिंदुत्व नहीं है।
यह साझे चूल्हे की विरासत है।
दुनिया के इतिहास में भारत एकमात्र देश है, जहां से हमलावर फौजें दुनिया फतह करने निकली हों, ऐसा कभी हुआ नहीं है।
भारतीयता और भारत राष्ट्र का निर्माण हिन्दू धर्म के लोकतांत्रिक चरित्र की वजह से संभव हुआ है जिसने हजारों साल से विविधता और बहुलता, सहिष्णुता और मानवता के रास्ते इस भारत का निर्माण किया है। यही हमारा इतिहास है। यही संस्कृति और विरासत है और लोकसंस्कृति भी यही है तो आस्था भी यही है।
यही नहीं, वैदिकी हिंसा की वजह से भारतीय हिंदू धर्म ने गौतम बुद्ध के धम्म और पंचशील को अपनी राष्ट्रीयता का आधार बनाया है और इसीलिए दुनिया में दूसरी प्राचीन सभ्यताओं के मुकाबले में भारतीय सभ्यता अभी बनी हुई है, जिसकी वजह जाति व्यवस्था के जन्मजात अभिशाप, असमता और अन्याय की निरंतरता के बावजूद यह बेमिसाल लोकतंत्र है। वही लोकतंत्र अब निशाने पर है।
नवजागरण और भक्ति आंदोलन ने समाज सुधार के जरिये स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इस हिंदू धर्म को और उदार बनाया है।
वह सिलसिला जहां शुरु हुआ वहीं खत्म हुआ है और हम हिंदुत्व के नाम ब्राह्मणवाद और वैदिकी हिंसा के शिकंजे में हैं।
उदार लोकतांत्रिक हिंदू धर्म का ही नतीजा है कि भारत में स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व गांधी, नेहरु और सुभाष के साथ तमाम हिंदू नेता ही कर रहे थे। एकमुशत हिदू महासभा और मुस्लिम लीग के उत्थान से भारत विभाजन हो गया और उसके बावजूद भारत में सामाजिक क्रांति की दिशा में पहल की हुई होती या भारतीय समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, साम्यवाद और प्रगतिवाद ने जाति उन्मूलन के एजंडा को अपनाकर स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों के भारत में समानता और न्याय की स्थापना की होती तो न यह हिंदुत्व का रंगभेदी पुनरूत्थान होता और न हम अमेरिकी उपनिवेश बनकर अमेरिकी गृहयुद्ध का भारत में आयात करते।
यह आत्मघाती रंगभेदी नस्ली अंध राष्ट्रवाद भारतवर्ष और हिंदू धर्म दोनों के लिए महाविनाश है।
अमेरिका में जो कुछ हो रहा है, उसका कुल आशय यही है।
इसी वजह से हम लगातार हिंदुत्व के इस राष्ट्रवाद का विरोध कर रहे हैं, हिंदुओं का नहीं और न हिंदू धर्म का।
बांग्लादेश में ढाका के आतंकी हमले के बाद सत्यजीत राय और नीरदसी रायचौधरी के गृहजिला किशोरगंज में ईद के मौके पर जो हमला हुआ और रमजान में दुनियाभर में उग्र इस्लामी राष्ट्रवाद के जो हमले हुए, वे ज्यादातर इस्लामी राष्ट्रों में हुए और रोजा रखने वाले नमाज और कलमा पढ़ने वाले मजहबी बेगुनाह मुसलमान ही उसके शिकार हुए हैं।
बांग्लादेश में फिर 20 जुलाई को आतंकी हमले की धमकी दी गयी है। जबकि किशोर गंज के हमले में आम आजमी कोई मरा नहीं है। दो पुलिसवाले मुठभेड़ में बम धमाके में मारे गये और एक हमलावर मारा गया तो अपने घर की खिड़की से तमाशा देख रही एक हिंदू महिला झरना रानी भौमिक क्रास फायर का शिकार हो गयी।
ढाका के हमले के बाद लगातार सत्तादल अवामी लीग से इस जिहाद के तार जुड़ते नजर आ रहे हैं। सभी वारदातों को अंजाम देने वाले सत्तावर्ग के उच्चशिक्षित लापता लड़ाके हैं और किशोरगंज में जो आठ लोग गिरफ्तार किये गये, वे सारे के सारे आवामी लीग के कार्यकर्ता और नेता हैं। हमलावर जिस घर में मोर्चा लगाये बैठे थे, वह घर आवामी लीग का नेता का है।
फर्जी आतंक की यह राजनीति है।
भारत में भी आतंकवाद और हिंसा की जड़ें फिर वहीं है और भारत भी लगातार बांग्लादेश बनता जा रहा है।
सीमापार भारतीय राज्यों में इन जेहादियों की गतिविधियां अबाध हैं। कोलकाता और समूचे बगाल के शहरी और ग्रामीण इलाकों में इन्हीं तत्वों ने पिछले दो दशकों में भारी पैमाने पर संपत्ति खरीदी है और प्रोमोटर सिंडिकेट माफिया राज उन्हीं के शिकंजे में हैं।
इस पर तुर्रा यह कि बांग्लादेश में सत्ता के पक्ष विपक्षे के सीधे निशाने पर दो करोड़ गैर मुसलमान भारत में घुसने के इंतजार में है। राजनीतिक, राजनयिक और प्रशासनिक तीनों मोर्चे पर फेल भारत सरकार बांग्लादेश की क्या मदद करेगी, जब हमारे तमाम राज्यों में हमने खुद बारुदी सुरंगे बिछा दी हैं।
फिलहाल डलास में ऐसे ही बारुदी सुरंग फटने का धमाका हुआ है।
उग्र इस्लामी राष्ट्रवाद की वजह से मध्यपूर्व और अफ्रीका तबाह है जहां से दुनियाभर में शरणार्थी सैलाब अभूतपूर्व है।
सद्दाम हुसैन को महिषासुर बनाकर अमेरिका ने ही इन आतंकी संगठनों को तेलकुंऔं पर कब्जा करने का अचूक हथियार बनाया तो ट्विन टावर धमाका हो गया और दुनियाभर के मीडिया को पालतू बनाकर विश्वजनमत को बंधक बनाकर अमेरिका ने एक के बाद एक मध्यपूर्व के देशों इराक, अफगानिस्तान, लीबिया, सीरिया, मिस्र को तबाह कर दिया।
इससे पहले अमेरिका नें लातिन अमेरिकी देशों और मध्य अमेरिका के देशों के साथ यही सलूक किया और आज समूचा यूरोप युद्धभूमि है। अब एशिया की बारी है।
भारत सबसे बड़ा मुक्त बाजार है, यह दावा दोहराते हुए अघा नहीं रहा है सत्ता वर्ग लेकिन दरअसल भारत सबसे बड़ा आखेटगाह में तब्दील है। आखेट में मर रहे लोग, मारे जा रहे लोग अगर पलटकर खड़े हो गये, तो फिर क्या होगा, उसे समझने के लिए डलास शायद काफी नहीं है।
हम उसी अमेरिका और उससे भी खतरनाक इजराइल के पार्टनर हैं तो हमारा अंजाम क्या होगा और इस हिंदुत्व के आत्मघाती एजंडे का क्या होगा, इसे समझने के लिए डलास के वाल पर गौर करना बेहद जरूरी है।
इस पर भी गौर करें कि दुनियाभर के मुसलमानों ने उग्र इस्लाम का विरोध न करके इस्लामी राष्ट्रों के सत्यानाश का जैसा रास्ता बनाया, उसके नतीजतन दुनियाभर में मुसलमानों पर हमला हो रहा है।
ताजा नमूना बांग्लादेश है।
हम हिंदू भी मुसलमानों के नक्शेकदम पर उसी आत्मध्वंस के महाराजमार्ग पर दौड़ रहे हैं।


