आने वाले वक्त में मील का पत्थर साबित होगा बीकानेर कला एवं साहित्य उत्सव
आने वाले वक्त में मील का पत्थर साबित होगा बीकानेर कला एवं साहित्य उत्सव

कला क्या है? | What is art?
प्राणियों के विकास में चरम कूट मानव है, दृष्टि का अद्यतन आद्ययतम रूप जीवन का चरम बिंदु ” अशरफ़-उल-मख़्लूक़ात (ashraf-ul-makhluqat)” मानवीय जीवन का विकास सभ्यता की सतत् विकसित होती गयी मंजिलों के मानदण्ड से मापा जाता है। प्राणियों में जो स्थान मानव का है, सभ्यता के परिवेश में वही संदर्भ संस्कृति का है।
कला संस्कृति का अन्तरंग है उसके विकास की मूर्धा।
ललित आकलन कला है। कालिदास ने ”ललित कलाविधौ” का जो रघुवंश में उल्लेख किया है वह इसी प्रसंग में है।
अभिराम अंकन चाहे वह वागविलास के क्षेत्र में हो, चाहे राग- रेखाओं में चाहे वास्तु- शिल्प में है- वह कला है।
प्रकृति जो देती है वह कलाकार नहीं देता। न ही कलाकार प्रकृति का यथातथ्य रूपायन करता है यह कार्य छाया शिल्पी- फोटोग्राफर का है।
कला प्रकृति को अपनी दृष्टि से देखती है कलाकार दृश्य में पैठकर प्राय: उससे एकीभाव होकर उसे देखता और सिरजता है। वह प्रकृति को अपनी तूलिका, छेनी, अथवा कूची से संवार देता है।
नंगी प्रकृति स्थित कलावन्त जो अपने माध्यम से अंतर डाल देता है, वही कला है।
प्रकृति काली रात बनाती है, कलावन्त दीप जलाता है।
सभ्यता के उदय के सुदूर पूर्व ही मानव् ”कोरने” “गढ़ने”, “खीचने”, “सिरजने” लगा था।
यह सही है कि कला का भी विकास हुआ है, जैसे सभ्यता और संस्कृति का जैसे स्वयं मानव का। पर लगता है कि कला- सभ्यता- संस्कृति से भी पुरातन शुद्द मानवीय पिंड की मेधा से संबद्ध रही है और जैसे ही मानव में वाक् अथवा आकलन की दिशा में क्षमता आई है वैसे ही उसकी आर्दधारा सोते की भांति सहसा और सहस्त्रश: फूट पड़ी है। तब उसने सभ्यता की किरणों की अपेक्षा नहीं की है।
भाषा और समाज का क्या संबंध है?| व्यक्ति अस्मिता और सामूहिक अस्मिता | किसी भी देश की अस्मिता की पहचान कैसे होता है?
किसी भी देश की अस्मिता की पहचान उसकी भाषा और संस्कृति से होती है और वही उस देश के जनमानस को प्रतिबिम्बित करता है। ऐसा ही एक प्रयास बीकानेर के प्रबुद्द साथी अशोक कुमार गुप्ता जी का ”बीकानेर कला एवं साहित्य उत्सव” अपने आप में अनोखा और रुचिपूर्ण स्थान रखने के साथ ही अपने राष्ट्र और समाज के लिए दृढ़ता जागृति करने का प्रयास है।
बीकानेर के बारे में कुछ बातें
कुछ बातें बताते चलें, बीकानेर के बारे में। काशी अगर अड़बंग- मनमौजियो का स्थान है तो बीकानेर एक अलमस्त शहर के रूप में जाना जाता है। यहाँ की जीवन शैली अलमस्ती की है यहाँ के लोग बड़े बेफिक्री से अपना जीवन जीते हैं। इस अलमस्ती का अपना कोई जबाब नहीं।
”बीकानेर” के संस्थापक ”राव बीका जी” अलमस्त स्वभाव के थे। अगर वो अलमस्त नहीं होते तो वे जोधपुर राज्य की गद्दी को यों ही बात-बात में न छोड़ देते। शायद यही कारण है कि बीकानेर के लोग उन्हीं की अलमस्ती को आज भी जीते चले आ रहे हैं।
राजस्थान का अंग बीकानेर तो अपने आप में विविधता छुपाये खड़ा है। अगर हम यहाँ के साहित्य पर दृष्टि डालें तो बीकानेर का प्राचीन साहित्य राजस्थानी चारण- संत और जैनों द्वारा लिपिबद्ध किया गया है।
चारण साहित्य की तरफ देखें तो पायेंगे कि यह साहित्य राज्य के आश्रित थे तथा डिंगल शैली तथा भाषा में अपनी बात कहते थे।
बीकानेर के संत लोक शैली में लिखते थे।
बारहठ चौहथबीका जी के समकालीन प्रसिद्ध चारण कवि के रूप में जाने जाते हैं। बीकानेर के चारण कवियों में बिठु सुजो का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है। उनका काव्य ”राव जैतसी के छंद” डिंगल साहित्य में ऊँचा स्थान रखती है। ऐसे उर्जावान साहित्य का क्षेत्र और उसके साथ ही अनेक संस्कृतियों के उद्भव का केंद्र यहाँ पर प्राचीन साहित्य और आधुनिक साहित्य का समागम अपने आप में अनोखा होगा शायद यह उत्सव अपने आप में इस देश की परम्पराओं को नया सृजनात्मक स्वरूप प्रदान करके आने वाले कल में इतिहास बनने जा रहा है।
बीकानेर कला एवं साहित्य उत्सव की विशेषताएं
इस उत्सव की विशेषताएं अपने आप में बेजोड़ हैं इसमें ललित कलाओं के विभिन्न रूपों की प्रस्तुति के साथ ही संगीत, सिनेमा, नाटक एवं साहित्य के सभी पक्षों पर चर्चा- परिचर्चा के साथ लजीज आहार व राजस्थान की कला एवं संस्कृति को जानने, समझने का अच्छा अवसर है। इसमें पुस्तकों के शौकीनों के लिए पुस्तक प्रदर्शनी और सिनेमा प्रेमियों के लिए राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्ध फिल्मों का प्रदर्शन और मरु भूमि के इन्द्रधनुषी रंगों की यात्रा एक सुखद कल्पना के सागर से मोती निकलेगा। इसके साथ ही और भी बहुत से आकर्षण कार्यक्रम की प्रस्तुति होनी है।
"बीकानेर कला एवं साहित्य उत्सव” में शामिल होने वाले अतिथियों में ऐसे कई नाम जुड़ रहे हैं जिनको सुनना और मिलना सुखद होगा। इस उत्सव की ख़ास बात की इसमें हम ऐसे लोगों से रूबरू होंगे जिन्हें पढ़कर बहुत से लोगों ने लिखना सीखा है। उनके लिखी पुस्तक उनकी कलाओं ने अन्दर के हुनर को पहचानने का सुनहरा मौका प्रदान किया। इस साहित्य कला के त्रिवेणी में जो समागम होने जा रहा है, वो अदभुत है। जहां आदरणीय नरेश सक्सेना, हिमालय राज की धरती से मंगलेश डबराल, प्रोफ़ेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल, बदरी नारायण, कुमार अम्बुज जैसे साहित्य के पुरोधा तो वही पेंटिंग की दुनिया से रूबरू होने वाले मनीष पुष्कले, बिजौलिया, अमित कल्ला इरा टाक महावीर वर्मा अपने रंगों के जादू बिखेरेगे चायाशिल्पी के क्षेत्र से महेश स्वामी गोपाल व्यास, कमल जोशी, प्रतियुष पुष्कर व रंगमंच के क्षेत्र से विनय अम्बपेर, कबीर, अभिनव सव्यसाची नृत्य की दुनिया से शिरकत करने के लिए इस उत्सव के मंच को सुशोभित श्रीमाली व मधु भट्ट के साथ ही नृत्य कला संस्कृति और साहित्य संगठन की निदेशिका रति सक्सेना जी मंच को गौरव प्रदान करेगी।
दर्शन- कला- साहित्य का क्षेत्र ऐसा है जो हमारे भीतर के जज्बातों से जुड़े सवालों को जन्म देता है और उत्तर की एक ऐसी कसौटी रखता है जो सृजन को आयाम दे सके। इसके साथ ही कई बार ऐसे प्रश्न भी खड़ा कर देता है कि हमारे संवेदनशील हृदय में अनेकों सन्देह के द्वार खोल देता है ऐसे वक्त में हमें पुस्तकों की जरूरत होती है जो हमें सही मार्ग दिखाए हमें उन रचनाकारों की आवश्यकता महसूस होती है ताकि हम उस रचनाशीलता की प्रेरणा को जान सके जो हमारे हृदय- आत्मा में समुंदर में उठते ज्वार – भाटे की जिम्मेदार होती है।
इस उत्सव के माध्यम से राजस्थान की विश्व- व्यापी संस्कृति की झलक, पारम्परिक और पुरातन वास्तु शिल्प को देखने के सफर के साथ ही नवीन ऊर्जा प्रदान करेगी|
"बीकानेर कला एवं साहित्य उत्सव आने वाले वक्त में मील का पत्थर साबित होगा यह बीकानेर वासियों की शुरुआत है यह अबाध गति से चलता रहेगा।
इस उत्सव के लेकर मृदुला शुक्ल कहती हैं- हम लोग साहित्य- कला और संगीत के तमाम आधे- अधूरे कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। कभी अपने दफ्तर से आधे दिन की छुट्टी लेकर तो कभी आधे कार्यक्रम को बीच में छोड़कर। घर या ऑफिस की ओर भागते हुए एक मलाल रह जाता है मन में, काश जिन्दगी इतनी मोहलत देती कि यही ठहर जाते कहते, सुनते गुनते बुनते थोड़ी निश्चिंतता थोड़ी सी बेफिक्री होती। साहित्य- संगीत- कला से जुड़े तमाम मित्र जिन्हें हम पढ़ते सराहते हैं, कभी सहमत होते हैं, कभी असहमत कभी मुस्कुराह्ते तो कभी तल्खियां, मगर यह सब आभासी होता है आपका भी मन हुआ होगा कि इसको हकीकत में जिया जाए। इसे सचमुच को जीने का अवसर बीकानेर कला उर साहित्य के इस समागम में प्राप्त होगा।
दूरदर्शन से जुडी व अध्यापन से जुडी साहित्यकार सुशीला शिवराण जी बीकानेर उत्सव का कुछ इस तरह से आकलन कर रही हैं- बीकानेर कला एवं साहित्य उत्सव का आयोजन अशोक गुप्ता बहुत ख़ास और अलग ढंग से कर रहे हैं जो आम साहित्यिक आयोजनों से हटकर है। इसका उद्देश्य है औपचारिकताओं की बाध्यताओं से ऊपर उठकर मैत्री पूर्ण परिवेश में साहित्यकारों और कलाकारों का परस्पर स्नेहिल परिवेश में जुड़ना और उस जुड़ाव से कला और साहित्य को समृद्ध करना।
आदरणीय नन्द भारद्वाज जी जैसे अनुभवी साहित्यकार का संरक्षक के रूप में इस आयोजन से जुड़ना ही एक श्रेष्ठ आयोजन हेतु आश्वस्त करता है। आदरणीय नवनीत पाण्डेय जी राजस्थान की चिर- परिचित संस्कृति को मन में बसाए न केवल कहेंगे ”पधारो म्हारै देस” वरण इस साहित्यिक आयोजन को नये आयाम देने में अशोक गुप्ता जी के साथ कोई कसर न छोड़ेगे। सईद अय्यूब जी की ऊर्जा आयोजन को जीवंतता प्रदान करेगी। कबीर जी की प्रतिभा इस आयोजन को कला, साहित्य और संस्कृति के नये आयाम देगी।
पहली से तीन नवम्बर तक बीकानेर में साहित्य, कला और सिनेमा की त्रिवेणी निर्बाध प्रवाहित होगी। प्रोटोकाल की दीवारें नव- रचनाकारों के कदमों में बेड़ियां नहीं डालेंगी। वे अपने प्रिय साहित्यकारों, कलाकारों से अपनत्व के साथ स्नेहिल मैत्री पूर्ण परिवेश में जुड़ पायेंगे। फेसबुक की आभासी दुनिया से बाहर आत्मीयता से वे जब अपने मित्रों से मिलेंगे तो यह सामीप्य और गर्मजोशी उनकी मैत्री को आभास से नहीं एहसासात से सींचेगी। होठों पर मुस्कान लिए जब वे अपने प्रिय मित्र, साहित्यकार और कलाकार से हाथ मिलायेंगे, गले मिलेंगे तो यह स्नेहिल स्पर्श कितनी ही स्मृतियों के बीज उनके दिलो- दिमाग में रोपेगा जो कालान्तर में पल्लवित हो आजन्म जीवन को सुवासित करेगा।
चांदी सी चमकती सिली सिली रेत पर काव्य- निर्झरणी का प्रवाह, अपने प्रिय साहित्यकारों, मित्रों के साथ उस साहित्यिक गंगा के जल का आचमन करना अद्भुत अनुभव होगा। इसके साथ ही बीकानेर की साहित्यिक धरोहर के दर्शन, कला- सिनेमा और साहित्य से जुड़े कलाकारों का सानिध्य ! कुछ अनुभव वर्णनातीत होते हैं। बस अधीरता से प्रतीक्षा है एक नवम्बर की।
देवरिया के वासी और वर्तमान में दिल्ली में स्थापित कामरेड अशोक कुमार पाण्डेय बड़े ही मस्त अंदाज में बया करते हैं- बीकानेर साहित्य उत्सव कला रसिक अशोक गुप्ता का मानस पुत्र है। साहित्यकारों, रंगकर्मियों, कलाकारों और कला-संस्कृति प्रेमियों का यह विराट सम्मिलन अपने स्वरूप में एक तरफ़ उदात्त है तो दूसरी तरफ़ किसी को प्रयोजनहींन भी लग सकता है। कारण यह कि कार्यक्रम की रूपरेखा, चर्चा हेतु विषय आदि अब तक ज़ाहिर नहीं किये गए हैं। इसकी दूसरी खूबी सहभागिता है। एक खुले पंजीकरण के माध्यम से इसमें लोग भाग ले रहे हैं अतः एक तरह की विविधता भी दिखेगी। उम्मीद करता हूँ कि यह आयोजन कला-संस्कृति के क्षेत्र में एक बहुरंगी आयोजन होगा और समय के साथ-साथ इसे एक मानीखेज रूप देने की कोशिश की जायेगी।
कथा साहित्य में उभरते साहित्यकार संजय शेफर्ड बीकानेर उत्सव पर कुछ ऐसे कहते नजर आये।
बीकानेर कला और साहित्य उत्सव आभासी दुनिया की परिकल्पना को वास्तविक जीवन में लाने और सोशल मीडिया के जरिए बन रहे विविधतापूर्ण रिश्ते एंव साहित्यिक तथा सांस्कृतिक माहौल को नए सिरे से जानने- समझने का एक ऐसा अपरिहार्य मौका है जो भारतीय जनमानस में पहली बार घटित होगा। उम्मीद कर सकते हैं कि इससे एक ऐसे वातावरण को बनने का मौका मिलेगा जिसमें कई तरह के संशयों, संदेहों के लिए निवारण की अहम् कसौटी, वैचारिकता के साथ-साथ हम सब लेखकों के व्यवहारिकता जैसे गुणों से भलीभांति परिचित हो सकेंगे।
कवयित्री व साहित्यकार विजय पुष्पम पाठक कहती हैं- बीकानेर कला एवं साहित्य उत्सव अपने में बेजोड़ है इसकी ख़ास बात कि यह एक ऐसे व्यक्तित्व की परिकल्पना है जो कला को अपने जीवन में आत्मसात कर चुके है जिनके लिए कला एक पुत्र के समान है जिसकी परवरिश बड़े तन्मयता से अशोक जी कर रहे हैं, निश्चित ही यह एक दिन विशाल वट वृक्ष की तरह पनपकर पूरे दुनिया को रोशन करेगा। सफलता की कामनाओं सहित
अपर्णा अनेकवर्णा– उत्सव के बारे में कहती हैं- बीकानेर साहित्य व कला उत्सव एक सराहनीय शुरुआत है। जिस तरह फेसबुक ने कलाकारों और रचनाकारों को एक प्लेटफार्म दिया, मैं समझती हूँ बीकानेर उत्सव उसी दिशा में लिया गया अगला कदम है। एक लौ की तरह जो विचार अशोक गुप्ता जी ने प्रज्वल्लित किया है वह अब एक मशाल का रूप ले रहा है। आभासी दूरियों को लांघ कर सृजनशील कलाकार/रचनाकार एक साथ तीन सार्थक दिन बिता पायेंगे। भिन्न-भिन्न ढंग की रचनात्मकता का ये संगम सबको प्रेरित करेगा।
ऐसे उत्सव हम कलाकारों/ रचनाकारों को एक ऐसा अवसर देंगे जहां अपने-अपने क्षेत्र के उत्कृष्ट हस्तियों, गुरुजनों से मिलने का सुयोग बनेगा.. उनसे संवाद स्थापित होगा.. उनको सुनने और उनसे सीखने का अवसर मिलेगा. अपने ही क्षेत्र के समकालीन तथा वरिष्ठ लोगों का सानिध्य बहुत सकारात्मक हो सकता है. साथ ही साथ विभिन्न कलाओं का परस्पर जुड़ाव भी उभर के आएगा. मुझे आशा ही नहीं विश्वास भी है कि ये समूचा आयोजन भली प्रकार संपन्न होगा और भविष्य में एक मील का पत्थर साबित होगा. मेरी शुभकामनायें!
अशोक गुप्ता संयोजक बीकानेर कला व साहित्य उत्सव मेरा तो पैगाम – इ – मोहब्बत है जहां तक पहुंचे।
बीकानेर उत्सव की प्रेरणा मेरे अंतर मन ने दिया मैंने देखा और महसूस किया कि हमारी नई पीढ़ी जबरदस्त काम कर रही है कला संगीत के क्षेत्र में मैंने जब इन नौजवानों की कवितायें पढ़ी तो मैं दंग रह गया फिर मैंने करीब चालीस – पचास लोगों को पेन ड्राइव में फिल्म और अन्य सामग्री को भेजा जिसका परिणाम मेरे लिए सुखद रहा और मेरे हृदय में एक लहर सी उठी कि इन चमकते सितारों को आसमान से उतार कर पृथ्वी पर सजाया जाए-
हमारे यहाँ मान्यता है कि यहाँ के कलाकार, लेखक खुद में सिमटे – सिमटे रहते हैं और दूसरे लोगों के साथ जल्दी घुलते मिलते नहीं हैं। मेरा अनुभव इस मामले में बहुत ही सुखद रहा है। मैं हमेशा से ही एक कला प्रेमी रहा हूँ और एक जुनून यह भी रहा कि जिन कलाकारों और साहित्यकारों से सम्पर्क बनाया मैंने उन सारे लोगों ने मुझे बहुत हो प्यार और स्नेह से अभिभूत किया। कुछ लोगों का जिक्र करना चाहूँगा जिनमें महान संगीत समीक्षक मुकुंद लात, अनोखे विलक्ष्ण कृष्ण बलदेव वैद, महान चित्रकार रामकुमार, रमेशचन्द्र शाह, रमेश बख्शी इत्यादि लोग बीकानेर पधारे और उन्होंने यहाँ के लोगों में अपने विभिन्न अनुभवों को साझा किया। बीकानेर शहर के लोग कला, साहित्य और अध्यात्म की अनोखी दुनिया में जीते हैं मस्त मौला फकीराना अंदाज है उनका ये अपने मेहमानों का स्वागत पलक – पावड़े बिछा कर करते हैं।
सुनील कुमार दत्ता


