आपातकाल से आप क्या बूझते हैं जनाब, समझ लीजिये।

जनता को राष्ट्र के खिलाफ लामबंद करने और जनता को जनता के खिलाफ लामबंद करने के सिलसिले को भी तनिको समझ लीजिये।

कैसे किसी खास नस्ल की अनार्य समुदायों को अलग थलग करके अश्वमेध राजसूय है,समझ लीजिये।

कैसे अस्पृश्य गैरनस्ली भूगोल में मनुस्मृति राजकाज है और कैसे सलवाजुड़ुम की वैदिकी संस्कृति है, इसको समझने के बाद कहिये कि कैसे आपातकाल खत्म है।

कश्मीर में बाढ़ है।

झेलम का पानी घरों में घुस रहा है।

आरएसएस की मुफ्ती पंडित सरकार कुछ भी नहीं कर रही है।

मीडिया में कश्मीर घाटी की खबरें कहां हैं, जहां मुठभेड़ों का सिलसिला रोज रोज है और जन सुनवाई या जम्हूरियत पर आफसपा का कड़ा पहरा है।

कश्मीर घाटी में सर्वत्र शटर डाउन है और मीडिया को कश्मीर में कोई भारतीय दिखता नहीं है।

सारा फोकस राजनीति के तकाजे से भारतविरोधी गतिविधियों पर है।

मणिपुर को भी उपनिवेश मानता है दिल्ली और वहां भी आफसपा के बहाने फौज की हुकूमत है।

दिल्ली की सत्ता का गठबंधन हमेशा इस या उस उग्रवादी संगठन के साथ है और पूर्वोत्तर में यही राजकाज दमन का अनंत सिलसिला है तो आदिवासी भूगोल में सलवा जुड़ुम है।

असम में आग नये सिरे से भड़कायी जा रही है दूसरा गुजरात बनाने के मकसद से।

मोदी हिंदुओं को नागरिकता देने का वायदा कर रहे हैं तो तरुण गोगोई 1971 के कटआफ ईअर खारिज करके सबको नागरिकता बांट रहे हैं और जल रहा है असम।

आफसा राजकाज को समझने के लिए तहलका की इस रपट को जरुर पढ़ें और सोचे कि आपातकाल कब और कहां खत्म हुआ है जी।
पलाश विश्वास