पलाश विश्वास

कोलकाता। अब कोलकाता में “आप” की धमक। आम आदमी की सादगी और भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम अब दीदी को चुनौती देने लगी है। अब कोलकाता की बारी है। सारे आकलन को गलत साबित करते हुए बंगाल की ध्रुवीकृत राजनीति में शायद पहली बार किसी तीसरी शक्ति के धूमकेतु के तौर पर उदित होने के हालात बन रहे हैं।

रविवार को नव वर्ष के अवकाश के मौके पर उत्सवी मिजाज में कोलकाता वालों ने मेट्रो चैनल पर आप कार्यकर्ताओं के चार लैपटाप में अपना दाखिला भी दर्ज करा लिया। जाहिर है, इसे लहर नहीं कह सकते, यह पहल है। लेकिन बंगाल की यथास्थिति किसी अस्मिता की राजनीति से टूटने वाली नहीं है, इसका सबूत भी है यह।

अस्मिताओं से बाहर बौद्धमय विरासत के बंगाल का जो चरित्र है, भले ही विशुद्ध कॉरपोरेट हो या फिर एनजीओ टाइप,उसमें बंगाल के अलग तरह के अभिव्यक्त हो जाने की सम्भावना बनने लगी है।

यह अस्मिता की राजनीति से बंगाल को बदलने का ख्वाब सजाने वाले लोगों के लिए बाकायदा एक सबक है।

सबसे खास बात तो यह है कि अप्रतिद्वंद्वी और अपराजेय समझे जाने वाली ममता बनर्जी के चुनाव क्षेत्र दक्षिण कोलकाता में ही “आप” का कुछ ज्यादा ही असर होने लगा है। आम आदमी की सादगी और भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम अब दीदी को चुनौती देने लगी है।