देश को हास्यास्पद किस्म के अजायबघर में तब्दील करना चाहते हैं #मेरा_देश_बदल_रहा_है
ट्रेनें होंगी पर बर्थ नहीं, बसें होंगी पर खड़े होने की जगह तक नहीं, #मेरा_देश_बदल_रहा_है
उर्मिलेश

अरबों के खर्च से 'शाइनिंग इंडिया' के लिये बुलेट ट्रेनें और रोपवे वाली ड्राइवरविहीन टैक्सियां चलाने की सरकारी योजना पर :-
अजीब लोग हैं! पता नहीं किस तरह के भारतीय योजनाकार हैं, किस तरह के विकासपुरुष-प्रशासक हैं! ये लोग शायद इस देश को हास्यास्पद किस्म के अजायबघर में तब्दील करना चाहते हैं!
एक तरफ बैलगाड़ियां चलेंगी, दूसरी तरफ ड्राइवरविहीन टैक्सियां! नुमाइश के लिये कुछेक बुलेट ट्रेनें चलेंगी तो आम जनता के लिये सैकड़ों की संख्या में वे ट्रेनें, जो घंटों विलंब से चलती हैं और नीचे से ऊपर तक ठुंसी होती हैं.
एक तरफ विदेश आयातित आधुनिक प्रौद्योगिकी होगी, दूसरी तरफ 'भगवाधारी बाबाओं-साध्वियों' का 'लव-जिहाद, बीफ और मुस्लिममुक्त भारत का हिंसक अभियान'! ट्रेनें होंगी पर बर्थ नहीं, बसें होंगी पर खड़े होने की जगह तक नहीं. टैक्सियां होंगी पर आम आदमी की वित्तीय पहुंच से बाहर.
इससे भी संतोष नहीं तो अब कई हजार करोड़ खर्च करके रोपवे पर ड्राइवरविहीन टैक्सी चलायेंगे.
क्या दिल्ली-मानेसर के बीच मेट्रो चलाने से काम नहीं चलता! ऐसी टैक्सियों से कितने लोग सफर करेंगे? नयी योजना पर इतने पैसे खच॓ करने का क्या तर्क है? इतना खर्च करके देश के अनेक सुदूर इलाकों में सड़कें बनाई जा सकती हैं, जहां के लोगों को आजादी के बाद से ही सड़क और परिवहन के साधनों का इंतजार है!
दिल्ली-मुंबई कोलकाता चेन्नई आदि की भीड़ कम करनी है तो देश के अन्य नगरों, उपनगरों, कस्बों और गांवों को भी रहने लायक बनाइये. महानगरों की तरफ लोगों का पलायन कम हो जायेगा. पर आप लोगों का ध्यान विकास के कुछ टापू बनाने पर है. आप सिर्फ 'साहबों' की क्यों सोचते हैं राष्ट्रवादी जी, इस देश के करोड़ों गरीबों और निम्नमध्यवर्गियों की भी सोचिये. बुरा न मानें, आपकी प्राथमिकताएं भटकी हुई हैं!