आप हुई दो फाड़ - आम आदमी का सपना टूट गया
आप हुई दो फाड़- सोनिया राहुल की कांग्रेस हो या मोदी की भाजपा, यह आम आदमी की पार्टी भी तो वैसी ही निकली।
नई दिल्ली। आंदोलन से निकली आम आदमी की पार्टी आज ' खास ' में ही बदल गई। पार्टी के सभी प्रवक्ता चाहे जितनी दलील दे आज यह पार्टी बंट गई और आम आदमी का सपना टूट गया। बैठक से बाहर निकल कर जिस आवाज में प्रशांत भूषण ने कहा कि उन्हें और योगेंद्र यादव को पीएसी से बाहर कर दिया गया है वह आहत आवाज बहुत कुछ कह रही थी। पार्टी में बहुत दिन से सब कुछ चल रहा था पर इस अंदाज में यह सब ख़त्म होगा यह उम्मीद किसी को नहीं थी। जो कुछ आज घटा है उसकी जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ अरविंद केजरीवाल पर है और किसी पर नहीं। भले योगेंद्र यादव पार्टी पर कब्जे की फिराक में हो जो उनपर आरोप है। आज संजय सिंह, मनीष सिसोदिया, आशुतोष, दिलीप पांडेय से लेकर कुमार विश्वास केजरीवाल के साथ पूरी ताकत के साथ खड़े थे जिसकी उम्मीद पहले से थी। इनमे संजय सिंह को छोड़ कोई भी राजनैतिक कार्यकर्त्ता नहीं रहा है। वोट हुआ तो अरविन्द केजरीवाल खेमा सिर्फ तीन वोट से जीता है यह ध्यान रखने वाली बात है, योगेंद्र यादव के साथ कार्यकारिणी के आठ लोग खड़े थे। इससे ही इस राजनैतिक संकट का अंदाजा लगाया जा सकता है। सभी इस उम्मीद में थे कि अरविंद अंतत इस समस्या को सुलझा लेंगे और योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण को पीएसी से हटाया नहीं जाएगा।
आप के जानकारों का आरोप है कि योगेंद्र यादव खेमे का विधान सभा चुनाव से पहले ही यह आकलन था कि पार्टी बीस बाईस सीट पर निपट जाएगी और इस स्थिति में केजरीवाल को हटाकर पार्टी पर आधिपत्य जमा लिया जाएगा। यह एक आरोप है, सच्चाई कितनी है इसमें कहा नहीं जा सकता। पर यह भी सही है कि आप के उदय के साथ आप पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में जिस तरह का अहंकार आया था उससे योगेंद्र यादव भी नहीं बच पाए थे। सभी जानते हैं कि पार्टी के लिए समाजवादी जन परिषद की भी बलि दे दी गई थी। बावजूद इसके विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे जन आंदोलनों के लोगों को पार्टी का टिकट तो दिया गया पर उनकी कोई ढंग से मदद भी नहीं की गई। इसमें आप पार्टी के खांटी समाजवादी भी शामिल थे। यह सही है आप पार्टी अरविंद केजरीवाल के अपने आभा मंडल और राजनैतिक चमत्कार पर ज्यादा टिकी थी किसी वैचारिक आधार पर बहुत कम। इसीलिए योगेंद्र यादव आज इस अंदाज में बाहर भी हुए। वे दो दिन से लंबे लंबे इंटरव्यू दे कर माहौल बना रहे थे, अपनी बात घर घर तक पहुंचा रहे थे। पर दूसरी तरफ केजरीवाल समर्थक अपने अंदाज में साफ़ कर चुके थे कि योगेंद्र यादव को जाना ही होगा। और वे चले भी गए। कार्यकारिणी की बैठक ने तो उसपर मोहर लगा दी। यह बात अरविंद केजरीवाल जानते थे और चाहते भी थे। तभी यह हुआ भी। सब कह रहे थे कि आप पार्टी में जो कुछ हो रहा है वह बिना केजरीवाल की मर्जी के नहीं हो रहा। दिलीप पांडे से लेकर खेतान तक जो भाषा बोल रहे थे वह पहले से तय थी। इसीलिए लोगों को दुःख हुआ। सोनिया राहुल की कांग्रेस हो या मोदी की भाजपा, यह आम आदमी की पार्टी भी तो वैसी ही निकली। केजरीवाल ने ठीक वैसी ही गलती दोहराई है जैसी दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर की थी। इसका भी नफा नुकसान सामने आ जाएगा।
अंबरीश कुमार