आरएसएस दरबार में मोदी सरकार की पेशी
आरएसएस दरबार में मोदी सरकार की पेशी
अरे भाजपा आरएसएस के पास मार्गदर्शन को ना जायेगी तो क्या गांधीवादियों के पास जायेगी?
इसमें आश्चर्य की क्या बात है? अगर यह खुले में ना भी होती तो क्या हम यह समझते कि भाजपा और आरएसएस अलग-अलग हैं? अब आरएसएस में आत्मविश्वास आ गया है। आखिर उनकी सरकार जो है।
यह एकदम खुला सत्य है कि आरएसएस भाजपा इस देश को गांधी नेहरू और आजादी के आंदोलन से अलग रास्ते पर ले जाने के लिए कृत संकल्प हैं। उनकी हिन्दू की अपनी परिभाषा है। जो उनकी परिभाषा में फिट नहीं बैठेगा, उसका भगवान् ही मालिक होगा। उनके अनुसार देश 1000 सालों से गुलाम था। मुसलमान देश के सबसे बड़े दुश्मन हैं। सारी समस्याओ की जड़ हैं।
यूँ तो भाजपा में गैर आरएसएस पृष्ठभूमि के लोग भी शामिल हैं, पर उन्हें कभी भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती। अंदर के गेम प्लान उन्हें नहीं बताये जा सकते। ये केवल छोटे मोटे पोस्टर रहेंगे जो ऐसे लोगों को भी अपनी ओर मिला सकें जो उदार टाइप हैं और ज्यादा राजनीति नहीं समझते।
चूँकि आरएसएस खुली राजनीति नहीं करता, परदे के पीछे रहता है, इसलिए आरएसएस में सब कुछ गोपनीय होता है। जनता को केवल वही दिखाया जाता है जो आरएसएस चाहता है। आखिर जब देश का कायाकल्प कर डालना है और आरएसएस के इतने दुश्मन हैं तो बेचारे खुल के कैसे बोले काम करें। इस लोकतंत्र ने ही तो सारा कबाड़ा किया है। इसे ख़तम करना होगा धीरे-धीरे, ताकि कोई ऊँगली न उठा सके आरएसएस के महान उद्देश्यों पर।
दुनिया का माहौल भी माफिक है। बड़े-बड़े आका हमारे पीछे हैं, पीठ थपथपा रहे हैं कि ये साला गांधी का ही किया धरा है सब।
ये सब बुद्धिजीवी भी खुराफात की जड़ हैं। अरे इनकी क्या औकात है। दो चार को जहां किनारे लगाया नहीं, सब आ जाएंगे पानी भरने। सबको पता है कि हम क्या कर सकते हैं।
सब बेकार में चिल्ल पों मचा रहे। अरे भाजपा आरएसएस के पास मार्गदर्शन को ना जायेगी तो क्या गांधीवादियों के पास जायेगी?
आलोक वाजपेयी


