ये गलतफहमी पालना बहुत ही भयंकर है कि जरूरत पड़ने पर संघ वैसी बर्बरता नहीं दिखायेगा जैसी बोको हरम या ISIS दिखा रहा है।
नई दिल्ली। दलित चिंतक कंवल भारती ने अपनी फेसबुक वॉल पर टिप्पणी की है- “मुझे नहीं लगता कि आरएसएस सबसे ज्यादा खतरनाक संगठन है, जब हम इस्लामिक स्टेट और बोको हरम की नफरत और क्रूरता को देखते हैं।” श्री भारती की इस पोस्ट पर लंबी बहस चली है, लेकिन इस बहस में सर्वाधिक महत्वपूर्ण टिप्पणी वामपंथी कार्यकर्ता सत्यनारायण ने की है। उन्होंने दो टूक कहा है- “ये गलतफहमी पालना बहुत ही भयंकर है कि जरूरत पड़ने पर संघ वैसी बर्बरता नहीं दिखायेगा जैसी बोको हरम या ISIS दिखा रहा है”
देखते हैं सत्यनारायण की पूरी टिप्पणी -

तुलना का ये तरीका निहायत ही बेतुका है और साम्‍प्रदायिक फासीवाद के अलग अलग रूपों में भेद ना कर पाने की आपकी अक्षमता को दिखाता है।
वैसे तो गुजरात 2002 में संघ ने जो कारनामे किये वो आपकी इस बात को भी झुठलाते हैं कि बर्बरता में संघ बोको हरम से कम है। गर्भवती महिलाओं के पेट चीरकर भ्रुण को जिन्‍दा जला देने वालों की बर्बरता आपको किस एंगल से कम लगती है, उस पर आप ही प्रकाश डाल सकते हैं।
लेकिन मुख्‍य मुद्दा इससे भी महत्‍वपूर्ण है और वो ये है कि संघ भारतीय पूँजीवाद के दूरगामी हित्‍तों को ध्‍यान में रखता है। ISIS और बोको हरम जैसे संगठनों का कट्टरपंथ मुख्‍यतौर पर वहां के देशों के पूँजीपतियों की बजाय अमेरिकी साम्राज्‍यवाद के दूरगामी हित्‍तों की सेवा कर रहा है। उस पूरे क्षेत्र को डिस्‍टेबलाज करना अमेरिका की मुख्‍य रणनीति है। ऐसे में ISIS के सामने सवाल ये है ही नहीं कि वो दो चार पांच कितने साल अस्तित्‍व में रह पाता है। अगर वो एक साल में भी खत्‍म हो जाता है तो अमेरिका का मकसद पूरा हो जायेगा। इराक के कई हिस्‍से करके वैसे भी उसका मुख्‍य काम हो चुका है। संघ भारत में एक कन्‍ट्रोल्‍ड टेंशन रखता है व बीच बीच में कन्‍ट्रोल्‍ड दंगे करवाता है। वैसे भी भारत के शासक वर्ग का हित उतने से सध जाता है।
पर ये गलतफहमी पालना बहुत ही भयंकर है कि जरूरत पड़ने पर संघ वैसी बर्बरता नहीं दिखायेगा जैसी बोको हरम या ISIS दिखा रहा है।
लोग अक्‍सर ही फासीवाद के दो रूपों में भेद नहीं कर पाते। उन्‍हे लगता है कि बर्बरता का मतलब ही फासीवाद होता है या फिर हिटलर की तरह होलोकॉस्‍ट करना ही फासीवाद।
साथ ही वो अन्‍य दक्षिणपंथी कट्टरपंथों और फासीवाद का मूल अंतर भी नहीं समझ पाते।“

उधर युवा पत्रकार वरुण शैलेश ने अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर लिखा है-

“दलितों के एक धड़े के हिन्दुत्वादी हो जाने पर जब भी चर्चा हुई इस पर विश्वास नहीं हुआ। कहीं कुछ ऐसा घट रहा है यह भी नहीं लगता था। लेकिन लोकसभा चुनाव-2014 के दौरान कुछ दलित नेताओं का भाजपा से जा चिपकना ठेस पहुंचाने की हद तक बुरा लगा। खैर इसे राजनीति का चालू कैरेक्टर कह कर टाल दिया था। लेकिन (Kanwal Bharti) कँवल भारती द्धारा RSS की तरफदारी करना पहली पंक्ति की पुष्टि है। अफसोस!”