आरटीआई से डरती क्यों है अखिलेश सरकार !
आरटीआई से डरती क्यों है अखिलेश सरकार !
अखिलेश सरकार कुछ भी कर ले, लोगों की आवाज को दबा नहीं सकती - गोपाल प्रसाद आरटीआई एक्टिविस्ट
सपा का समाजवाद आरटीआई कानून का मजाक उड़ा रहा है
नई दिल्ली। उ.प्र. सूचना आयोग ने अपनी परेशानी से मुक्ति पाने का आसान तरीका अपनाया है। उत्तर प्रदेश में आरटीआई एक्ट (सूचना के अधिकार) के तहत जानकारी हासिल करने हेतु अब आपको दंडित किया जा सकता है और आपको उस सरकारी विभाग को मुआवजा देने के लिए कहा जा सकता है, जिससे आपने सूचना मांगी है। महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको किस आधार पर मुआवजा देने को कहा जाएगा, यह भी पूरी तरह से सूचना आयोग की मर्जी पर निर्भर करेगा। मतलब ये हुआ कि उत्तरप्रदेश सरकार से कोई सूचना आप नही माँगें। इस निराले फैसले से ऐसा प्रतीत होता है कि हम तो मनमानी करेंगे और नियमों से खुद को आज़ाद रखेंगे, हमारे ऊपर किसी की जवाबदेही नहीं है। उप्र सरकार का यही रुख दिख रहा है, जो मूल एक्ट के खिलाफ है।
यह कहना है आरटीआई एक्टिविस्ट गोपाल प्रसाद का। गोपाल प्रसाद के अनुसार जंगल राज में तब्दील होते उत्तर प्रदेश में कुछ भी मुमकिन करने की सरकारी तानाशाही के सिवा कुछ भी नहीं है। उत्तर प्रदेश में सूचना का अधिकार क़ानून को बेअसर करके ख़त्म करने की साजिस रची जा रही है। वह कहते हैं कि उत्तरप्रदेश सूचना आयोग द्वारा तैयार किए गए आरटीआई रूल्स के क्लॉज 10 में 'अवॉर्ड ऑफ कंपनसेशन पर कहा गया है, 'किसी शिकायत या अपील की सुनवाई के दौरान, कमीशन ऐसी दूसरी कॉस्ट वसूल सकता है और सही पक्षों को ऐसा मुआवजा दे सकता है। केस में तथ्य और स्थिति पर विचार किया जाएगा।' लेकिन बड़ा सवाल यह है कि""ड्राफ्ट रूल्स के क्लॉज 10 में 'अवॉर्ड ऑफ कंपनसेशन पर कहा गया है, 'किसी शिकायत या अपील की सुनवाई के दौरान, कमीशन ऐसी दूसरी कॉस्ट वसूल सकता है और सही पक्षों को ऐसा मुआवजा दे सकता है। केस में तथ्य और स्थिति पर विचार किया जाएगा। इसमे आरटीआई का मसला किधर है ?? मुझे लगता है यह जो कॉपी की है वह समाचार कंज्यूमर फोरम से जुड़े केस के बारे में होगा जहां गलत केस पर आपसे कॉस्ट वसूली जा सकती है। आरटीआई के संदर्भ में ऐसा कैसे हो सकता है ?
राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन एवं मौलिक भारत ट्रस्ट के आरटीआई प्रकोष्ठ के संयोजक गोपाल प्रसाद ने इस प्राविधान को लेकर नाराजगी जताते हुए कहा कि 'यह आरटीआई एक्ट का स्पष्ट रूप से उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि संशोधन गलत है। आरटीआई कानून में शर्मनाक नियम बनाये जा रहे हैं। फिर तो सूचना माँगना भी अपराध हो जायेगा और सूचना छिपाने वालों को पुरस्कृत किया जायेगा। सूचना पाना भारत के आम नागरिक का मौलिक अधिकार है, इस हेतु किसी आवेदक को दंडित नहीं किया जा सकता। आवेदक पर किस आधार पर ऐसा मुआवजा लगे, इसका ब्योरा न दिया जाना गैरसंवैधानिक है। अगर आवेदक अपने केस की सुनवाई स्थगित करने की मांग करता है तो इस आधार पर भी उसे कॉस्ट देने को कहा जाएगा।' उन्होंने बताया कि क्लॉज 9 में जिक्र है, 'आयोग को अगर यह लगता है कि सुनवाई स्थगित करने का कारण सही और पर्याप्त है तो वह रीजनेबल कॉस्ट के भुगतान पर मामले के स्थगन की अनुमति दे सकता है।'
दिल्ली के आरटीआई कार्यकर्ता गोपाल प्रसाद कहते हैं कि - " उ.प्र. की जनता को पूछना चाहिए कि क्या चाहती है यूपी सरकार ? क्या इनके हिटलरी सरकार में किसी को बोलने नही दिया जाएगा ? क्या यह सरासर गुंडागर्दी नहीं है ? सपा अपनी क़ब्र खुद खोद रही है। उत्तर प्रदेश सरकार पूरी तरह बेलगाम होना चाहती है। मेरे दृष्टिकोण में हर विभाग के कामकाज मे पारदर्शिता होनी चाहिये। इस तरह तो सारे विभाग बेलगाम हो जायेंगे। जिसकी जो मर्ज़ी वो करेगा। जय हो अखिलेश सरकार। इससे तो यही लगता है की यूपी सरकार आपको यह समझना चाहती है की भविष्य में सरकार से कोई कुछ भी पूछने की जुर्रत ना करे चुपचाप सरकार को अपना काम करने दे अन्यथा सजा मिलेगी। यह तो हिटलरशाही और दुखद घटना है। क्या सरकार एवं न्यायपालिका को इस विषय पर ठोस कदम नहीं उठाना चाहिए ? सरकार से कोई कुछ ना पूछे अर्थात अंधेर नगरी चौपट राजा|।"
गोपाल प्रसाद कहते हैं इससे तो अच्छा है, सरकार सीधे- सीधे बोल दे कि हम RTI को नहीं मानते और किसी को कोई सूचना नही दी जायेगी। ऐसे बहाने बनाकर जनता को परेशान आखिर क्यों किया जा रहा है ? ऐसा लग रहा है कि उत्तरप्रदेश सच में उल्टा प्रदेश ही है। उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था और उत्तरप्रदेश के मनमाने की बात ही निराली है यूपी में मुलायम एवं अखिलेश सारे नियम अपने आप को बचाने के लिये आज़म ख़ान की देखरेख में बनवा रहे हैं। समाजवादी पार्टी का समाजवाद आरटीआई कानून का मजाक उड़ा रहा है। अब तो यूपी में सारे उल्टे प्रावधान की खोज करनी ही पड़ेगी। इन्हीं कारणों से लोग कहते हैं कि उप्र में कानून की बात ना ही करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा। आम जनता के सामने RTI रूपी हथियार को भी सरकार छीन लेने पर आमदा है। इस फिजूल के फैसले से आरटीआई एक्ट की उपयोगिता आखिर क्या रह जाएगी?
समाचारपत्रों में प्रकाशित समाचार के अनुसार उत्तरप्रदेश सरकार ने फिलहाल ड्राफ्ट रूल्स को आम लोगों के बीच रखा है और 20 मार्च, 2015 तक इस पर राय मांगी गई है। इसमें किसी अपील को वापस लेने को भी कानूनी बनाया गया है। दिल्ली के आरटीआई कार्यकर्ता गोपाल प्रसाद के अनुसार पूरे भारत में आरटीआई कार्यकर्ताओं पर 250 से भी ज्यादा हमले और उनकी हत्याओं की 25 से ऊपर वारदातें भी हुई हैं, जिसे गूगल सर्च करके भी देखा जा सकता है। उत्तर प्रदेश के ड्राफ्ट रूल्स आवेदक की मृत्यु होने की स्थिति में कमीशन को अपील या शिकायत को बंद करने की ताकत देते हैं। साथ ही इसमें कहा गया है कि किसी भी शिकायत को वापस भी लिया जा सकता है।' उत्तरप्रदेश सरकार कुछ भी कर ले, लोगों की आवाज को दबा नही सकती। यह सरासर सूचना के अधिकार को दमन करने का प्रयास हैं। अगर यूपी सरकार कोई ऐसी कानून बनाती है, तो इसको सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दिया जाना चाहिये। सत्ता के दुरुपयोग का यह सुंदर उदाहरण है और यही समाजवाद है। उप्र सरकार को पता है कि सबसे ज्यादा दंबगई और गुंडई यहीं होती है और वह भी छुटभैया नेता करते हैं इससे अच्छा है कि जनता की ही गर्दन पकड़ लो। ये लोग चाहते हैं कोई भी सरकार के और आज़म खान के खिलाफ कुछ ना पूछे। सभी एक बहाना है कोई काम नही करने का और किये हुआ गलत काम को छुपाने का। अभी तक हमारे प्रशासक जनता को उनके अधिकार देने की मानसिकता में नही आये हैं। वैसे जनता भी अपने अधिकारों के प्रति ना तो जागरूक है ना ही उन्हे लेने के लिये लड़ना चाहती है। उल्टा प्रदेश मे सबकुछ उल्टा ही होता है, यहां सब कुछ सम्भब है। उत्तर प्रदेश मे कानून सिर्फ नाम के लिये है। यूपी सरकार अपने आप को बचाने के लिये नियम लगा रही है, ताकि वहां भ्रष्टाचार पनप सके और किसी को कोई और जानकारी ना मिल सके। यह तो सरासर नाइंसाफी है। शिकायत वापस लेने से गुंडागर्दी को और बढ़ावा मिलेगा और एक्टिविस्ट की और हत्यायें होंगी।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि राज्य सूचना आयोग ने किसी आवेदक की अर्जी खारिज करने में कुछ नए आधार जोड़े हैं। ड्राफ्ट रूल्स में कहा गया है कि मांगी गई जानकारी गैर-उपलब्ध आंकड़ों का नए सिरे से संग्रह नहीं होना चाहिए। यह पूरी तरह से आईटीआई एक्ट के विपरीत है। सूचना से राहत की आस लगाने वाले आवेदकों के लिए ड्राफ्ट रूल्स में कागजी कार्रवाई को और बढ़ा दिया गया है। अगर उत्तरप्रदेश सरकार ऐसी कोई भी तबदीली करती है तो सामाजिक संगठनों को विशेष रूप से संघर्ष हेतु तैयारी कर लेनी चाहिए।


