पीड़ित महिला पत्रकार के पक्ष में न्यायपूर्ण कार्यवाई करो!!
साम्राज्यवादी-सामंतवादी संस्कृति को ध्वस्त करो!!
नई दिल्ली। क्रांतिकारी जनवादी मोर्चा (आरडीएफ) ने तहलका में काम करने वाले आम पत्रकार और पीड़िता जिन्होंने तरुण तेजपाल के खिलाफ बोलने का साहस किया के साथ अपनी एकजुटता प्रकट करते हुए) पीड़िता के पक्ष में न्याय की लड़ाई और दोषी को सजा दिलाने के संघर्ष में अपनी भागीदारी प्रस्तुत करते हुए मांग की है तरुण तेजपाल के घिनौने यौन अत्याचार का दोष तय किया जाए।

मोर्चा के अध्यक्ष वरवर राव और सह सचिव जी. एन. साई बाबा ने यहां संयुक्त रूप से जारी वक्तव्य में कहा कि पिछले दो वर्षों में महिला की सुरक्षा की जितनी दावेदारी राज्य सरकारों और संसदीय पार्टियों ने किया है उससे कई गुना महिला उत्पीड़न की घटनाएं घटीं। पिछले दिसम्बर में बलात्कार की हुई घटना से दिल्ली ही नहीं पूरा देश सड़क पर उतर पड़ा था। इसके बावजूद न तो बलात्कार की घटनाओं में कमी आ रही है और न ही उत्पीड़न की घटनाओं में गिरावट का संकेत मिल रहा है। यह तकलीफदेह हालात एक रोजमर्रा की खबर और जीवनचर्या का हिस्सा बनता हुआ लग रहा है। मानो यह सब कुछ होना समाज का अनिवार्य हिस्सा हो। किसी सांसद, विधायक, नौकरशाह आदि का इस तरह की घटनाओं में लिप्त होना इस तरह के विचार को बनाने में ने केवल मदद करता है बल्कि इस तरह के घिनौने समाज विरोधी कार्य को वैधानिकता भी प्रदान करता है। एक मीडियाकर्मी की लिप्तता इस भयावह स्थिति का एक ऐसा नमूना है जिसके नीचे वर्तमान साम्राज्यवादी-सामंतवादी आर्थिक-सामाजिक ढांचा सड़ रहा है और जिसका खामियाजा पूरा समाज और महिलाएं भुगत रही हैं।

मोर्चा पदाधिकारियों ने कहा कि तहलका संपादक ने गोवा में अपनी पत्रिका द्वारा आयोजित ‘थिंक फेस्टिवल’के दौरान अपनी पत्रिका की एक पत्रकार का लिफ्ट में जिस तरह लगातार यौन अत्याचार किया है वह शर्मनाक और उत्पीड़ित महिला और समाज के प्रति घोर अपराध है। यह महिला पत्रकार तरुण तेजपाल की बेटी की मित्र है और वह उसी की उम्र की है। ‘थिंक फेस्टीवल’का आयोजन खदान कारपोरेशन्स और माफिया के सहयोग से करने वाले तरुण तेजपाल खुद को ‘लोकतंत्र’का झंडाबरदार के तौर पर पेश करते रहे हैं। पत्रकारिता के पेशे में तहलका कायम करने के लिए स्टिंग ऑपरेशन के दौरान महिलाओं का ‘कॉलगर्ल’के तौर पर इस्तेमाल के दौरान भी उन पर कई आरोप लगे थे। पत्रकारिता और नैतिकता की बहस में यह मसला उस समय दब गया और उन महिलाओं के प्रति किए गए अपराध को न्याय के दायरे से ही नहीं पत्रकारिता की नैतिकता से भी बाहर ही रखा गया। उत्पीड़ित पत्रकार महिला और तरुण तेजपाल की बेटी के बीच हुए संदेशों और ई-मेल के माध्यम से तरुण तेजपाल की महिला के प्रति घिनौनी मानसिकता का काफी खुलासा होता है। इस घिनौने अपराध को लेकर तरुण तेजपाल ने जिस तरह बयानों को तोड़ा मरोड़ा है उससे भी उनके अपराध का पक्ष काफी कुछ बाहर आ जाता है। उन्होंने कहा कि तहलका की प्रबंध संपादक ‘शोमा चैधरी ने जिस तरह महिला विरोधी पक्ष लिया है, बचाव के नाम पर जो कुछ बयान दिया है वह चिंतनीय और कथित व्यवसायगत एकता के नाम पर पत्रकारिता को कलंकित करने का भी काम है।

श्री राव और श्री साईबाबा ने कहा कि तरुण तेजपाल को बचाने के लिए शोमा चौधरी ने जिस तरह का बयान और माहौल बनाया उसकी वजह से उत्पीड़ित महिला पत्रकार को एक बार फिर यातना से गुजरना पड़ा। इस तरह के बचाव की शह पर तरुण तेजपाल ने पैतरेबाजी कर उत्पीड़िता को एक बार फिर यातना का शिकार बनाया। पीड़िता को न्याय मिले इसके लिए जरूरी है कि तरूण तेजपाल के घिनौने कृत्य के खिलाफ उपयुक्त कार्यवाई हो और पीड़िता के खिलाफ माहौल बनाने वालों का दोष तय हो। उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण और नवउदारवादी संस्कृति का जिस तेजी से हमारे सामने एक मॉडल खड़ा हुआ है उसे हम कारपोरेट, संसद व विधायिका, मीडिया और साम्राज्यवादी गिरोहों के गठजोड़ में देख सकते हैं। इस गठजोड़ में अहम हिस्सा है महिला को बाजार में ‘सेक्स आब्जेक्ट’के रूप में उतारना। यह साम्राज्यवादी संस्कृति है जिसका गठजोड़ अपने देश में सामंतवादी ब्राह्मणवादी संस्कृति के साथ हुआ है। मीडिया संस्थानों के मालिकों, प्रबंधकों, संपादकों, ...में मुनाफे की होड़, संपदा निर्माण और सत्ताशाली होने का लोभ-लालच पत्रकारिता, लोकतंत्र, संस्कृति, आधुनिकता, जीवनशैली आदि आवरण में खतरनाक रूप से ऐसी संस्कृति को पेश कर रहा है जो पूरे समाज और महिला के लिए भयावह स्थिति बना रहा है। महिला उत्पीड़न का बढ़ता फैलाव और उच्चवर्गों का खुलेआम हिंसक व्यवहार एक ऐसी चुनौती है जिसे रोकने के लिए सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक मोर्चों पर संघर्ष को तेज करना होगा।