नेशनल दलित फ्रंट से पहले भी हो चुकी है यह कवायद
अंबरीश कुमार
लखनऊ, 25 फरवरी। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा उत्तर प्रदेश में नए सिरे से सोशल इंजीनियरिंग में जुट गई है और छोटे-छोटे दलों के जरिए बड़ी लड़ाई जीतने की कोशिश में है। अब पिछड़े और दलित नेताओं के जरिए भाजपा उत्तर प्रदेश में माहौल बना रही है। इसी कड़ी में राम विलास पासवान से लेकर उदितराज तक को साथ लिया जा रहा है। पर इससे पार्टी को मनोवैज्ञानिक फायदा तो जरूर मिलेगा पर जमीनी ताकत बढ़ेगी यह नहीं लगता। भाजपा को इस कवायद से उत्तर प्रदेश में कोई बड़ा फायदा होता नजर नहीं आ रहा है। यह पहल पासवान और उदितराज पहले भी कर चुके हैं पर एक भी सीट उन्हें इस प्रदेश से नहीं मिल पाई।
इन नेताओं ने उत्तर प्रदेश में नेशनल दलित फ्रंट के नाम से पहल की थी और नेशनल दलित फ्रंट ने 15 जनवरी 2009 को मायावती के जन्मदिन को खूनी दिवस के रूप में मनाया था। इस मौके पर दलित नेताओं ने फ्रंट के कार्यकर्ताओं के आहवान करते हुए कहा कि वे पूरे प्रदेश में मायावती के जन्मदिन के मौके पर खूनी दिवस मनाते हुए उनका पर्दाफाश करें। तब दलित फ्रंट सम्मेलन में कई राजनैतिक और सामाजिक प्रस्ताव पास किए गए। दलित नेताओं ने केन्द्र सरकार से गुजारिश की कि उत्तर प्रदेश में दलित उत्पीड़न कानून का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाए। साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार को इसमें छेड़छाड़ करने से रोका जाए। इस सम्मलेन में पासवान, राम दास अठावले और उदितराज एक मंच पर आए थे। राम विलास पासवान ने तब कहा था- मायावती दलितों की नहीं, दौलत की देवी बन गई हैं। उनके राज में सबसे ज्यादा अत्याचार दलितों पर हो रहा है।
पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा के जीते उम्मीदवारों में बारह पिछड़ी जाति के थे तो तीन दलित। इनमें एक जाटव, एक पासी और एक वाल्मीकि विधायक शामिल थे। यह आंकड़ा करीब दो सौ पिछड़े और दलित उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने के बाद का है। हालाँकि एक दौर में पिछड़ी जातियों में भाजपा का काफी दबदबा था पर वह धीरे धीरे कमजोर होता गया।पिछले चुनाव में उमा भारती से लेकर कुशवाहा तक के जरिए पार्टी ने कोशिश की पर नतीजा ऊपर बताया जा चुका है।अब यह कवायद दलित वोटों के लिए की जा रही है।बिहार में राम विलास पासवान का जो असर है वह उत्तर प्रदेश में नहीं है यह वास्तविकता है। उदितराज ने कम समय में इतना लम्बा राजनैतिक सफ़र तय कर लिया है कि अब उनका जो जनाधार कुछ क्षेत्रों में बन भी रहा था वह भी अब थम जाएगा। वे वीपी सिंह के आन्दोलन से चलते हुए मोदी के साथ पहुँच गए है। बीच बीच में उत्तर प्रदेश के कई राजनैतिक प्रयोग से जुड़ते निकलते रहे है।ऐसे में दलित वोटों को अब वे मायावती से खींच लाएंगे यह कोई मानने को तैयार नहीं है। मायावती आज भी दलितों की एकछत्र नेत्री है जिसकी जगह कोई नहीं ले सकता है। इसलिए इन दलित नेताओं से भाजपा माहौल तो बना सकती है पर वोट में उसे बदलना आसान नहीं है। वैसे भी उत्तर प्रदेश में अब छोटे-छोटे दल राजनीति के बड़े सौदागर माने जा रहे हैं इसलिए उनकी साख पर भी सवाल उठ रहा है।
पीस पार्टी से लेकर समानता दल समेत दर्जन भर छोटे-छोटे दल बड़े दलों से सौदेबाजी में यूँ ही नहीं व्यस्त हैं।
जनादेश न्यूज़ नेटवर्क