इंदिरा जमाने से जो रिलायंस साम्राज्य की नींव पड़ी, वह अब भारत का व्हाइट हाउस है
इंदिरा जमाने से जो रिलायंस साम्राज्य की नींव पड़ी, वह अब भारत का व्हाइट हाउस है
एसी, नान एसी सबै बराबर और यही कानून का राज है, यही समान नागरिक संहिता है
बच्चों से कहना सीखें, भूख प्यास के लिए बेमतलब चिल्लाये नहीं, रिलायंस का बजरंगी आ जायेगा और खा जायेगा!
पलाश विश्वास
भद्र जनों, भद्रमाताओं और भद्रबहनों, यह इराक भारी बला है। हमने इस पहेली को पहले खाड़ी युद्ध से लगातार बूझने की कोशिश की है और तभी हमने कारपोरेट राज की कुंडली बना दी थी।
मध्यपूर्व के तलयुद्ध से झुलसाने के लिए भारतीय जनता को मुर्ग मसल्लम बनाने की कवायद में फायदा दरअसल किनका हुआ, इस पर गौर करने वाली बात है।
अमेरिका को भारत के आर पार अफगानिस्तान पर प्रक्षेपास्त्र बरसाने देने की इजाजत हो या मध्यपूर्व में बम वर्षा के लिए भारतीयठिकानों से अमेरिकी युद्धक विमानों को तेल भरने देने की इजाजत, या फिर भारत अमेरिकी परमाणु संधि या अमेरिका और इजराइल के नेतृत्व में पारमाणविक सैन्य गठजोड़, पहले खाड़ी युद्ध से लेकर अबतक लगातार भारतीय गणतंत्र के तेल में झुलसे मुक्त बाजार के रोस्टेड डिश बन जाने की इस कथा में करोड़पतियों अरबपतियों की वह कौन सी जमात है,जिसके पास बिलियन डालर के मकान हैं और राष्ट्रीय संसाधनों की लूटखसोट के जरिये जनिका कारोबार बिलियन बिलियन है?
उन राजनेताओं, अफसरों और मलाईदार लोगों की तो पहचान कर लें जिनके मुंह पर राम है तो बगल में छुरी!
भुगतान संतुलन की हरिकथा अनंत पहले खाड़ी युद्ध से शुरु है जो अद्यतन इराक संकट तक जारी है। भारत पर लंपट पूंजी के कारपोरेट राज का सिलसिला अब केसरिया हुआ है। फर्क बस इतना है। पहले भी हुआ है। अब फिर फिर हो रहा है।
आर्थिक नीतियों की निरंतरता संसद के भूगोल के बदलते रहने, सरकारें बदलते रहने और जनादेश वंचित अल्पमत सरकारों के सत्ता में लगातार बने रहते हुए जारी रही है।
रेलवे किराये के बारे में जैसा कहा जा रहा है, वही चरम सत्य है कि जनसंहारी नीतियों का सिलसिला जारी रहना है।
इंदिरा जमाने से जो रिलायंस साम्राज्य की नींव पड़ी, वह अब भारत का व्हाइट हाउस है।
देश ने बहुत बाद में चुनावी कवायद की मारकाट के मध्य नरेंद्र मोदी को चुना है लेकिन अंबानी बंधुओं ने पिछले लोकसभा चुनावों से काफी पहले नरेंद्र मोदी को भारत का चक्रवर्ती सम्राट चुना है।
रेल किराये कि फसल दरअसल रेलवे के विकास में नहीं, रिलायंस इंफ्रा के विकास में खपनी है। शेयरों के भाव यही बताते हैं जबकि रेल बजट में हाट केक बन गया रिलायंस इंफ्रा।
नगर महानगर के मेट्रो कायाकल्प के एकाधिकारवादी विश्वकर्मा फिर वही रिलायंस इंफ्रा।
शत प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जो होना है, वह रेल यात्रियों की सहूलियत के लिए नहीं, रेलवे के इंफ्रा के विकास के लिए, तो वह भी रिलायंस इंफ्रा है।
भारत में बनने वाली सरकारों का जनादेश बनाने वाली आम जनता का कोई कर्ज नहीं है। देश में समता और सामाजिक न्याय का नजारा वही रेल किराया और विनिवेश का रोडमैप है।
एसी, नान एसी सबै बराबर और यही कानून का राज है, यही समान नागरिक संहिता है।
कर प्रणाली की कुंडली रच दी गयी है।
भिखारी से लेकर देहव्यवसाय में जुटने वाली उत्पीड़न और नरकयंत्रणा की शिकार स्त्री से लेकर, मजदूर और चाय वाला जिस दर से विकास की कीमत चुकायेंगे, उसी दर से टैक्स भरेंगे अंबानी टाटा बिड़ला मित्तल जिंदल हिंदूजा वगैरह वगैरह।
रिलायंस का उधार अभी बाकी है। तेल गैस का न्यारा वारा अभी बाकी है।
बच्चों से कहना सीखें, भूख प्यास के लिए बेमतलब चिल्लाये नहीं, रिलायंस का बजरंगी आ जायेगा और खा जायेगा!
भारत को भारतीय कंपनी रिलायंस आठ डालर के हिसाब से गैस बेचती है तो बांग्लादेश में यही भारतीय कंपनी दो डालर के हिसाब से।
बहुसंस्कृति बहुभाषा वाले भारतवर्ष में हिंदी और हिंदुत्व को राज धर्म और राजभाषा बनाने वाले देश भक्त लोगों से पूछा जाना चाहिए कि क्या रिलायंस भारतीय मुद्रा में भुगतान लेने के लिए बाध्य नहीं है?
जब भारतीय कंपनियों को भरत सरकार भारतीय मुद्रा में भुगतान भी नहीं कर सकती तो पूरे भारत की अनेक भाषाओं और उससे ज्यादा बोलियों वाले लोगों पर राजभाषा हिन्दी थोंपने का तर्क क्या है?
धर्म ,भाषा और अस्मिता भावनाओं का खेल है तो कारोबार भी।
अब अर्थ व्यवस्था और मुक्तबाजार को भी बजरिये धर्म, भाषा, अस्मिता और पहचान भावनाओं का खेल बनाया जा रहा है।
मध्यपूर्व में तेलकुओं पर कब्जे के लिए जैसे जिहादी संगठनों को कारपोरेट दुनिया ने सत्ता दिलाने के लिए युद्ध गृहयुद्ध रचे, भारतीय उपमहाद्वीप में जिहादी धर्मांध तत्वों को सत्ता सौंपने के लिए अमेरिकी इजराइली निर्देशन में उसी गृहयुद्ध और युद्ध का भयानक कुरुक्षेत्र है सीमाओं के आर पार।
गीता उपदेश धारावाहिक है और कर्मफल सिद्धांत के जरिये समता और सामाजिक न्याय के नये प्रतिमान गढ़े जा रहे हैं रोज।
बापुओं का बलात्कारी प्रवचन और केदार आपदाएं भी धारावाहिक है।
शंबुक वध भी धारावाहिक।
एकलव्य की गुरुदक्षिणा धारावाहिक।
तो सीता का वनवास, पाताल प्रवेश और द्रोपदी का चीरहरण भी धारावाहिक।
रोज रचे जा रहे हैं उपनिषद।
रोज रचे जा रहे हैं पुराण।
रोज रची जा रही है स्मृतियां।
रोज गढ़े जा रहे है मिथक।
वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति।
रोज असुर वध हो रहा है।
रोज मारे जा रहे हैं असुर, राक्षस, दानव, दैत्य और तरह तरह के अनार्य।
नस्ली नरसंहार भी अबाध है अबाध पूंजी की तरह।
पौराणिक सेक्स कथाएं पवित्र भाव से रोज दोहरायी जा रही हैं फ्री सेंसेक्स के उतार चढ़ाव की तरह।
तेलकुंओं मे आग लगते ही बांग्लादेश में दो डालर भाव से गैस हासिल करने वाली सरकार ने रातोंरात गैस सिलिंडर की कामत बारह सौ, बारह नहीं बारह सौ रुपये बढ़ा दिये।
नमोमय भारत में कारपोरेट जलवा का नजारा यह है कि दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में जल्द ही बिजली की दरों में इजाफा होने वाला है। यह इजाफा 10 फीसदी से 35 फीसदी के बीच हो सकता है और नई दरें जुलाई व अगस्त से लागू होंगी।
अब तेरा क्या होगा रे कालिया,तेरी सरकार तो वही गैस आठ डालर के भाव से खरीदती है और पूर्ववर्ती सरकार ने गैस दरों मे पहली अप्रैल से ही दोगुणी वृद्धि का फतवा दे दिया था!
जैसे रेल किराये में वृद्धि पत्थर की लकीर है तो लकीर के फकीर कालिया की तकदीर बदलने के लिए ऐसे इराक संकट को दुहेंगे नहीं तो रिलायंस के कर्ज का क्या होगा रे भाआई?
एक लाख करोड़ जो जनादेश बनाने में खर्च हुए कारपोरेट कंपनियों के, उस खर्च का क्या कालिया का बाप भरेगा?


