रिहाई मंच के कार्यकर्ताओं, लेखक-पत्रकार और कलाकारों पर मुकदमे की भर्त्सना
नई दिल्ली। 11 सितंबर 2015 :उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार की पुलिस द्वारा हाशिमपुरा हत्याकांड में आए फैसले के खिलाफ विगत 27 अप्रैल को रिहाई मंच के बैनर से प्रदर्शन करने वाले कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और लेखक-कलाकारों पर दंगा भड़काने की कोशिश और शांति भंग करने के आरोप में धारा 147, 143, 186, 188, 341 और 187 के तहत मुकदमा दर्ज करने की जन संस्कृति मंच ने कठोर शब्दों में भर्त्सना करते हुए कहा है कि जिन 16 लोगों पर मुकदमा किया गया है, उनमें रिहाई मंच से जुड़े वरिष्ठ अधिवक्ता मो. शोएब, शहनवाज आलम, राजीव यादव, जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष कौशल किशोर, कवि-पत्रकार अजय सिंह, सत्यम वर्मा, कलाकार धर्मेंद्र कुमार, प्रोफेसर रमेश दीक्षित, शकील कुरैशी, एडवोकेट शमी, श्री रामकृष्णम, इमरान सिद्दीकी, फहीम अहमद और रईस आदि शामिल हैं।
जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय सहसचिव सुधीर सुमन की ओर से जारी एक वक्तव्य में कहा गया है कि इस पूरे मामले में उत्तर प्रदेश सरकार और उसकी पुलिस स्पष्ट तौर पर अन्याय के पक्ष में खड़ी नजर आ रही है। हाशिमपुरा जनसंहार में पीएसी ने अल्पसंख्यक लोगों की पुलिस हिरासत में हत्या की थी। वर्षों बाद जो फैसला आया उसमें अदालत से तमाम दोषी बरी कर दिए गए। पिछली तमाम सरकारों की तरह अखिलेश सरकार ने भी नरसंहार के पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की दिशा में कुछ नहीं किया। अदालत के अन्यायपूर्ण फैसले के बाद रिहाई मंच ने इस साल अप्रैल माह में गंगा प्रसाद मेमोरियल सभागार, लखनऊ में जन सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया। इस सम्मेलन में मेरठ और मुरादाबाद में हुई सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों को भी शमिल होना था लेकिन प्रशासन ने शांति-व्यवस्था का बहाना बनाकर आखिरी वक्त में जन सम्मेलन के लिए सभागार देने से मना कर दिया। नतीजतन रिहाई मंच ने जन सम्मेलन सभागार के बाहर ही किया। पांच महीने के बाद अचानक 5 सितंबर को रिहाई मंच को मुकदमे की सूचना मिली। पता चला कि जन सम्मेलन में शिरकत करने वालों के खिलाफ 27 अप्रैल को अमीनाबाद थाने में पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी। न्याय मांगने वालों के खिलाफ प्रशासनिक अन्याय और साजिश का यह नया उदाहरण है। जनसंहार और दंगा पीड़ित मुसलमानों के प्रति उत्तर प्रदेश की सपा सरकार के संवेदहीन रवैये की यह एक और नजीर है। हाशिमपुरा से लेकर मुजफ्फरनगर तक अक्लियतों के कत्लेआम पर सपा सरकार का नजरिया साफ बताता है सत्ताएं किस कदर लगातार फासिस्ट और सांप्रदायिक होती जा रही हैं। इस मामले में भाजपा और सपा में कोई फर्क नजर नही आ रहा है।
जसम ने कहा है कि रिहाई मंच, जो भाजपा-सपा के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति और अल्पसंख्यकों पर हो रहे दमन व हिंसा के खिलाफ लगातार संघर्ष चला रहा है, जिसने अपने आंदोलनों के जरिए सपा सरकार को लगातार कटघरे में खड़ा किया है, ऐसा प्रतीत होता है कि उससे बदला लेने के लिए ही पुलिस के जरिए यह मुकदमा करवाया गया है। इस सरकार के शासनकाल में दंगा और कत्लेआम करने वाले और बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को फर्जी कांडों में फंसाने की साजिश रचने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है, लेकिन इंसाफ मांगने वाले कार्यकर्ताओं, लेखकों, पत्रकार, कवि, कलाकारों पर दंगा भड़काने का आरोप लगाया जा रहा है। इंसाफ, सांप्रदायिक सद्भाव और लोकतंत्र की रक्षा के लिए जरूरी यह है कि इस सरकार और इसके प्रशासन के अन्यायपूर्ण रवैये का व्यापक स्तर पर प्रतिवाद किया जाए। जसम ने मांग की है कि उत्तर प्रदेश सरकार इस मुकदमे को तत्काल वापस ले।