इतिहास की सबसे बड़ी जरुरत: धनार्जन के स्रोतों का न्यायपूर्ण बंटवारा-दुसाध

भागलपुर, 26 अप्रैल : ’जनवरी में आई ऑक्सफाम की रिपोर्ट से यह तय हो गया है कि भारत टॉप की 10 % आबादी के हाथ में 90 % प्रतिशत से ज्यादा दौलत चली गयी है.पूरी दुनिया में धन का ऐसा असमान बंटवारा कहीं नहीं है. वैसे विषमता की इस भयावह तस्वीर के लिए आजाद भारत की तमाम सरकारें तो जिम्मेवार हैं ही , लेकिन इस मामले में मोदी सरकार का कोई जवाब ही नहीं है. ऐसे में आज धनार्जन के स्रोतों का न्यायपूर्ण बंटवारा आज इतिहास की सबसे बड़ी जरुरत बन गयी है.’

यह बातें आज दिल्ली से आये ‘डाइवर्सिटी मैन ऑफ़ इंडिया’ के नाम से मशहूर 72 किताबों के लेखक एच.एल. दुसाध ने स्थानीय ‘होटल आमंत्रण’ में आयोजित एक प्रेस वार्ता में कही.

धन के न्यायपूर्ण बंटवारे के लिए देशव्यापी हस्ताक्षर अभियान चला रहे दुसाध ने आगे कहा कि आज धन के भयावह असमान के बंटवारे की स्थिति इसलिए पैदा हुई है क्योंकि आजाद भारत के शासकों ने बहुजनों को धनार्जन के सभी स्रोतों में वाजिब हिस्सेदारी सुनिश्चित कराने की कोई योजना ही नहीं बनाया. लेकिन शासकों से कम जिम्मेवार दलित-आदिवासी,पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग के नेता और बुद्धिजीवी भी नहीं हैं. इन्होने धनार्जन के स्रोतों में अपनी वाजिब हिस्सेदारी की लड़ाई ही नहीं लड़ी.इसका सबसे बुरा असर दलित समुदाय पर पड़ा है. यह समुदाय धनार्जन के एक मात्र स्रोत नौकरियों पर निर्भर रहा जिसे शासकों ने 24 जुलाई 1991 को लागू नव उदारवादी अर्थनीति को हथियार बनाकर लगभग कागजों की शोभा बना दिया है.दुसाध ने यह भी कहा कि आज धन के एकमात्र स्रोत सरकारी नौकरियों के ख़त्म होने के बाद दलित समुदाय के शीघ्र ही विशुद्ध गुलामों की स्थिति में पहुँचने के लक्षण उजागर हो गए हैं. अगर यह वर्ग गुलामों की स्थिति में पहुचने से बचना चाहता है तो पुरे आरक्षित वर्ग के साथ संगठित होकर उसे धनार्जन के सभी स्रोतों के सवर्ण, ओबीसी,एससी /एसटी और धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों मध्य पुनर्वितरण की लड़ाई लड़ने के सिवाय कोई अन्य विकल्प नहीं है.


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