अमर उजाला समाचार पत्र के कुछ पत्रकारों को इदरीस को आतंकवादी घोषित करने के महान कार्य के लिए राजस्थान पत्रिका समूह की ओर से केसी कुलिस अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार दिया जायेगा

कानपुर। भारत निवासी पाकिस्तानी नागरिक मो. इदरीस जो पिछले 15 वर्षो से भारत और पकिस्तान के रिश्तों की मार झेल रहा है, जिसे भारतीय न्यायालय वापस पकिस्तान जाने का आदेश दे चुकी है। गृह मंत्रालय जिसे राज्य की जिम्मेदारी बताता है और राज्य सरकार इसे केंद्र की जिम्मेदारी बता के पल्ला झाड़ लेता है। बस इसी तरह कई वर्षो से हमारे देश की सरकारें इदरीस की ज़िन्दगी के साथ चूहे बिल्ली का खेल, खेल रही हैं और मीडिया वाले समय-समय पर मरहम पट्टी लगाकर मजा लूट कर चले जाते हैं। बचता है तो सिर्फ इदरीस का बेचारापन और उसकी तन्हा ज़िन्दगी। जिसका कोई सहारा नहीं।
बताते चलें कि दो वर्ष पूर्व जब इदरीस एक मुसाफिर की तरह कानपुर की सड़कों पर दर बदर भटक रहा था, तब बीबीसी की टीम ने रिपोर्टिंग कर मामले को उठाया था और जिला प्रशासन पर सवालिया निशान लगाया था। जिसके बाद जिला प्रशासन ने आनन-फानन में पुलिस लाईन के कम्पाउंड में इदरीस के रुकने की व्यवस्था की थी। जहाँ पर प्रशासन के लोग इदरीस से कपड़े, बैग, मोबाईल कवर आदि बनाने में मदद लेते थे और उसके बदले में इदरीस की मदद करते थे। जिसमे पैसे से मदद, खाने -पीने में मदद और मोबाईल इत्यादि में भी मदद करते थे। इस तरह से इदरीस की ज़िन्दगी सड़क से एक कमरे वाले घर में व्यवस्थित होने लगी थी। यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि मो. इदरीस चमड़े के बैग, पर्स, कपड़े आदि का अच्छा कारीगर है, जिसकी कारीगरी के लोग मुरीद भी हैं। वो इसका पेशेवर कारीगर भी रह चुका है। अपने इसी हुनर को रोजगार की शक्ल देने के उद्देश्य से इदरीस ने एक बार फिर से प्रयास करना शुरू कर दिया था। जिसमें कई लोग उसकी मदद करने को भी तैयार थे। ऐसा लग रहा था शायद इदरीस की ज़िन्दगी फिर से पटरी पर लौट आएगी। पर शायद वक्त को यह मुनासिब नहीं लगा और उसे फिर से नर्ग की और धकेल दिया। जिसमें अमर उजाला समाचार पत्र के पत्रकारों ने अहम् भूमिका अदा की।
अमर उजाला ने अपनी पत्रकारिता चमकाने के लिए इदरीस को पाकिस्तानी जासूस घोषित कर दिया। जिसका आधार उन्होंने मोबाईल सिम को बनाया। यह वही अमर उजाला है जिसने कभी इदरीस के पक्ष में खबरें छापी थीं और इदरीस को बेक़सूर बताया था। कभी बेचारा लगने वाला इदरीस आज उन्हें आतंकवादी नजर आ रहा था और हमारे देश की सुरक्षा पर एक बड़ा खतरा भी।

17 जुलाई 2012 की हिन्दुस्तान कानपुर की रिपोर्ट

कैसी अजीब बात है मो. इदरीस जो 1987 से कानपुर में है, जिसे कानपुर का बच्चा-बच्चा जानता है, जो कभी परेड की सड़कों पर भिखारियों जैसा घूमा करता था, भूख और बीमारी के कारण अकेले रोया करता था। तब वह किसी को आतंकवादी नहीं लगा, तब वह मीडिया की नजर में जासूस नहीं था, तब हमारी सुरक्षा का भी कोई खतरा नहीं था। लेकिन जब उसे एक आशियाना मिल गया और वह अपनी ज़िन्दगी को संवारने का प्रयास करने लगा। तो हमारे समाज के संभ्रांत लोगों को तकलीफ होने लगी, उन्हें डर लगने लगा कि कहीं यह हमारे ऊपर आतंकवादी हमला न कर दे, और बस बुद्धिजीवियों की अंतरात्मा जाग गयी और शुरू हो गया मजा लूटने का खेल।
अखबार ने लगातार खबरें निकालीं और मौकापरस्तों ने नारे लगाने शुरू कर दिया और निक्कमे प्रशासन ने अपनी जान बचाने के लिए इदरीस को उठाकर जेल मे डाल दिया और उस पर लगा दिए गए गैर जमानती अपराध। जिससे कि इदरीस सड़ता रहे जेल में और प्रशासन सो सके चैन की नींद।
इदरीस आज भी जेल की कोठरी में अपनी बची ज़िन्दगी के दिन गिन रहा है और उसके नाम पर लोगों पुरूस्कार दिये जाने की घोषणा की जा रही है। इदरीस का क्या होगा यह तो शायद कोई भी नहीं बता सकता पर आपको यह बता दें अमर उजाला समाचार पत्र के कुछ पत्रकारों को इदरीस को आतंकवादी घोषित करने के महान कार्य के लिए राजस्थान पत्रिका समूह की ओर से केसी कुलिस अन्तराष्ट्रीय पुरस्कार दिया जायेगा।
ज़िंदगी भी एक अजीब पहेली है
कोई हँसता है तो कोई रोता है
एक की मौत पर दूसरे का घर बसता है !!
के एम् भाई
के एम् भाई PUCL कानपुर इकाई